Thursday, November 21, 2013

कलाम

मित्रों कभी मैनें एक शायर का कलाम पढ़ा था उससे  प्रेरित होकर एक शेर लिखा है आपके विचारों कि प्रतीक्षा रहेगी।

अँधेरा भी भला है मैं उस कि कद्र करता हूँ
शबे महताब में अक्सर हुयीं है चोरियां मेरी  (अज्ञात)

अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
 
ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल  (मदन मोहन सक्सेना)

Wednesday, November 20, 2013

पति पत्नी




चुनाब का दौर चल रहा है एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का खेल चालू है।  पेपर मीडिया जिधर देखो मनमुटाब  ही ज्यादा नजर आ रहा है। मन कि खीझ मिटाने  के लिए कुछ हल्का फुल्का जोक का आईडिया बुरा तो नहीं है 

सुख आदमी को उतना मिलेगा जितना उसने पुण्य किया होगा
लेकिन   शांति आदमी को उतनी ही मिलेगी जितनी उसकी बीवी की मर्ज़ी होगी

पति के जन्मदिन पर पत्नी ने पूछा, क्या गिफ्ट दूँ?
पति: तुम मुझे प्यार करो, इज्ज़त करो और मेरा कहना मानो, यही काफ़ी है।
पत्नी: नहीं मैं तो 'गिफ्ट' ही दूंगी।




मदन मोहन सक्सेना।

Thursday, November 14, 2013

क्या करें बेचारें (बाल दिबस)



















आज बाल दिबस है
यानि पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म दिन है
बच्चों ने स्कूल में खूब धमाल किया
और चाचा नेहरू को याद किया
बच्चों को पता है
गांधी (इंद्रा ,राजीव ) के बारे में
भगत सिहं किस  का नाम था
राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्लाह  ने क्या किया ,नहीं पता
ये उधम सिहं कौन ?
ये खुदी राम बोस कौन 
ये बाबू गेणू कौन
ये नाना साहब पेशवा कौन
ये झांसी की रानी कौन 
ये महाराजा रंजीत सिहं कौन
ये मंगल पांडे कौन
ये सुभाष चंद्र बोस कौन
ये लाला लाजपत राय कौन
ये महाराणा प्रताप कौन
ये विपिन चंद्र पाल कौन
ये बाल गंगाधर तिलक कौन
ये चंद्र शेखर आजाद कौन
आज के बच्चें  इनमे से किसी को नहीं जानते
कब इनका जन्मदिन आकर चला जाता है
न मीडिया को याद रहता है
मीडिया बॉलीवूड और क्रिकेट कि चकाचौंध में मशगूल रहता है
न ही इस देश कि जनता को नमन करने का ख्याल रहता है
क्या करे दो जून कि रोटी का जुगाड़ करने में ही
मशगूल रहतें हैं
आज के बच्चें सिर्फ़ नेहरु- गांधी खानदान को ही जानते हैं
क्या करें बेचारें



मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, November 13, 2013

जग की रीत

 
जग की रीत

पाने को आतुर रहतें हैं खोने को तैयार नहीं है
जिम्मेदारी ने मुहँ मोड़ा ,सुबिधाओं की जीत हो रही


साझा करने को ना मिलता , सब अपने गम में ग़मगीन हैं
स्वार्थ दिखा जिसमें भी यारों उससे केवल प्रीत हो रही


कहने का मतलब होता था , अब ये बात पुरानी है
जैसा देखा बैसी बातें .जग की अब ये रीत हो रही


अब खेलों में है राजनीति और राजनीति ब्यापार हुई
मुश्किल अब है मालूम होना ,किस से किसकी मीत हो रही


क्यों अनजानापन लगता है अब, खुद के आज बसेरे में
संग साथ की हार हुई और तन्हाई की जीत हो रही

 
प्रस्तुति: मदन मोहन सक्सेना

Monday, November 11, 2013

चुनौती

केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कल स्वीकार किया कि प्रधानमंत्री पद के भाजपा के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को कांग्रेस पार्टी चुनौती देने वाले नेता के तौर पर देखती है।
और आज गृह मंत्री शिंदे ने कहा मोदी चुनौती नहीं हैं
बिश्बास करना मुश्किल है कौन सही कह रहा है

Thursday, November 7, 2013

चित्रगुप्त पूजा और महत्त्ब


चित्रगुप्त पूजा और महत्त्ब

भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज के सहयोगी हैं. इनकी कथा इस प्रकार है कि सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अत: ये ब्रह्मा कहलाये. इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया. इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था. धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरूष उत्पन्न हुआ. इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कायस्थ जाति को उत्पन्न करनेवाले भगवान चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन हुआ।  इसी दिन कायस्थ जाति के लोग अपने घरों में भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं। उन्हें मानने वाले इस दिन कलम और दवात का इस्तेमाल नहीं करते।  के आखिर में वे सम्पूर्ण आय-व्यय का हिसाब लिखकर भगवान को समर्पित करते हैं। चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन ही हुआ. इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि रचयिता भगवान ब्रह्मा ने एक बार सूर्य के समान अपने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा कि वह किसी विशेष प्रयोजन से समाधिस्थ हो रहे हैं और इस दौरान वह यत्नपूर्वक सृष्टि की रक्षा करें।  
इसके बाद ब्रह्माजी ने 11 हजार वर्ष की समाधि ले ली। जब उनकी समाधि टूटी तो उन्होंने देखा कि उनके सामने एक दिव्य पुरुष, कलम दवात लिए खडा है। बह्माजी ने उससे उसका परिचय पूछा तो वह बोला, मैं आप के शरीर से ही उत्पन्न हुआ हूं। आप मेरा नामकरण करने योग्य है और मेरे  लिये कोई काम है तो बतायें। व्रह्माजी ने हंसकर कहा, मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुए हो, इसलिये  कायस्थ तुम्हारी संज्ञा है और तुम पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से विख्यात होगे। धर्म-अधर्म पर धर्मराज की यमपुरी में विचार तुम्हारा काम होगा। अपने वर्ण में जो उचित है उसका पालन करने के साथ-साथ तुम संतान उत्पन्न करो। इसके बाद ब्रह्माजी चित्रगुप्त को आशीर्वाद देकर अंतर्धान हो गये। बाद में चित्रगुप्त का विवाह एरावती और सुदक्षणा से हुआ।   सुदक्षणा से उन्हें श्रीरीवास्तव, सूरजध्वज, निगम, और कुलश्रेष्ठ नामक चार पुत्र प्राप्त हुये, जबकि एरावती से आठ पुत्र रत्न प्राप्त हुये जो पृथ्वी पर माथुर, कर्ण, सक्‍सेना, गौड़, अस्थाना, अम्बष्ठ, भटनागर और बाल्मीक नाम से विख्यात हुये।चित्रगुप्त ने अपने पुत्रों को धर्म साधने की शिक्षा दी और कहा कि वे देवताओं का पूजन, पितरों का श्राद्ध तथा तर्पण और ब्राह्मणों का पालन यत्न पूर्वक करें। इसके बाद चित्रगुप्त स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गये और यमराज की यमपुरी में मनुष्य के पाप-पुण्य का विवरण तैयार करने का काम करने लगे।
जो भी प्राणी धरती पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है क्योकि यही विधि का विधान है. विधि के इस विधान से स्वयं भगवान भी नहीं बच पाये और मृत्यु की गोद में उन्हें भी सोना पड़ा. चाहे भगवान राम हों, कृष्ण हों, बुध और जैन सभी को निश्चित समय पर पृथ्वी लोक आ त्याग करना पड़ता है. मृत्युपरान्त क्या होता है और जीवन से पहले क्या है यह एक ऐसा रहस्य है जिसे कोई नहीं सुलझा सकता. लेकिन जैसा कि हमारे वेदों एवं पुराणों में लिखा और ऋषि मुनियों ने कहा है उसके अनुसार इस मृत्युलोक के उपर एक दिव्य लोक है जहां न जीवन का हर्ष है और न मृत्यु का शोक वह लोक जीवन मृत्यु से परे है.
इस दिव्य लोक में देवताओं का निवास है और फिर उनसे भी Šৠपर विष्णु लोक, ब्रह्मलोक और शिवलोक है. जीवात्मा जब अपने प्राप्त शरीर के कर्मों के अनुसार विभिन्न लोकों को जाता है. जो जीवात्मा विष्णु लोक, ब्रह्मलोक और शिवलोक में स्थान पा जाता है उन्हें जीवन चक्र में आवागमन यानी जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है और वे ब्रह्म में विलीन हो जाता हैं अर्थात आत्मा परमात्मा से मिलकर परमलक्ष्य को प्राप्त कर लेता है.
जो जीवात्मा कर्म बंधन में फंसकर पाप कर्म से दूषित हो जाता हैं उन्हें यमलोक जाना पड़ता है. मृत्यु काल में इन्हे आपने साथ ले जाने के लिए यमलोक से यमदूत आते हैं जिन्हें देखकर ये जीवात्मा कांप उठता है रोने लगता है परंतु दूत बड़ी निर्ममता से उन्हें बांध कर घसीटते हुए यमलोक ले जाते हैं. इन आत्माओं को यमदूत भयंकर कष्ट देते हैं और ले जाकर यमराज के समक्ष खड़ा कर देते हैं. इसी प्रकार की बहुत सी बातें गरूड़ पुराण में वर्णित है.
यमराज के दरवार में उस जीवात्मा के कर्मों का लेखा जोखा होता है. कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले भगवान हैं चित्रगुप्त. यही भगवान चित्रगुप्त जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवों के सभी कर्मों को अपनी पुस्तक में लिखते रहते हैं और जब जीवात्मा मृत्यु के पश्चात यमराज के समझ पहुचता है तो उनके कर्मों को एक एक कर सुनाते हैं और उन्हें अपने कर्मों के अनुसार क्रूर नर्क में भेज देते हैं.
 भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और जल है. ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है. कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है. इस दिन भगवान चित्रगुप्त और यमराज की मूर्ति स्थापित करके अथवा उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धा पूर्वक सभी प्रकार से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर एवं भांति भांति के पकवान, मिष्टान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा करें. और फिर जाने अनजाने हुए अपराधों के लिए इनसे क्षमा याचना करें. यमराज और चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है.

 मदन मोहन सक्सेना।




Saturday, November 2, 2013

बस इतना ही

बस इतना ही


कल दीपाबली का दिन
रबिबार की  सुबह
खूब सारी शॉपिंग
बढ़िया बढ़िया खाना
ढेर सारी मस्ती अपनों के साथ
साथ ही साथ लक्ष्मी और गणेश का पूजन
और क्या चाहियें
मित्रों और अपनों कि शुभकामनायें
बस इतना ही काफी है।
शुभ रात्रि
दीपावली मुबारक 

मदन मोहन सक्सेना

Thursday, October 31, 2013

धनतेरस का पर्ब (परम्पराओं का पालन या रहीसी का दिखाबा )


धनतेरस का पर्ब (परम्पराओं का पालन या रहीसी का दिखाबा )







आज   यानि शुक्रबार ,दिनांक नवम्बर एक दो हज़ार तेरह को पुरे भारत बर्ष में धनतेरस मनाई जायेगी। सबाल ये है कि आज के समय में कितनी जरुरत है धनतेरस को मनाने की।रीति रिवाजों से जुडा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है। एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं।धनतेरस के दिन सोना, चांदी के अलावा बर्तन खरीदने की परम्परा है। इस पर्व पर बर्तन खरीदने की शुरुआत कब और कैसे हुई, इसका कोई निश्चित प्रमाण तो नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि जन्म के समय धन्वन्तरि के हाथों में अमृत कलश था। इस अमृत कलश को मंगल कलश भी कहते हैं और ऐसी मान्यता है कि देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने इसका निर्माण किया था। यही कारण है आम जन इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं।  
आधुनिक युग की तेजी से बदलती जीवन शैली में भी धनतेरस की परम्परा आज भी कायम है और समाज के सभी वर्गों के लोग कई महत्वपूर्ण चीजों की खरीदारी के लिए पूरे साल इस पर्व का बेसब्री से इंतजार करते हैं।  हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी केदिन धन्वतरि त्रयोदशी मनायी जाती है। जिसे आम बोलचाल में 'धनतेरस' कहा जाता है। यह मूलत: धन्वन्तरि जयंती का पर्व है और आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरि के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।          
आने वाली पीढियां अपनी परम्परा को अच्छी तरह समझ सकें। इसके लिए भारतीय संस्कृति के हर पर्व से जुडी कोई न कोई लोक कथा अवश्य है। दीपावली से पहले मनाए जाने वाले धनतेरस पर्व से भी जुडी एक लोककथा है, जो कई युगों से कही, सुनी जा रही है।  पौराणिक कथाओं में धन्वन्तरि के जन्म का वर्णन करते हुए बताया गया है कि देवता और असुरों के समुद्र मंथन से धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। वह अपने हाथों में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। इस कारण उनका नाम पीयूषपाणि धन्वन्तरि विख्यात हुआ। उन्हें विष्णु का अवतार भी माना जाता है।            
परम्परा के अनुसार धनतेरस की संध्या को मृत्यु के देवता कहे जाने वाले यमराज के नाम का दीया घर की देहरी पर रखा जाता है और उनकी पूजा करके प्रार्थना की जाती है कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं। देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से प्रेरित है।           
यम के नाम से दीया निकालने के बारे में भी एक पौराणिक कथा है, एक बार राजा हिम ने अपने पुत्र की कुंडली बनवायी। इसमें यह बात सामने आयी कि शादी के ठीक चौथे दिन सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। हिम की पुत्रवधू को जब इस बात का पता चला तो उसने निश्चय किया कि वह हर हाल में अपने पति को यम के कोप से बचाएगी। शादी के चौथे दिन उसने पति के कमरे के बाहर घर के सभी जेवर और सोने-चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर उसे पहाड़ का रूप दे दिया और खुद रात भर बैठकर उसे गाना और कहानी सुनाने लगी ताकि उसे नींद नहीं आए।     
रात के समय जब यम सांप के रूप में उसके पति को डंसने आए तो वह सांप आभूषणों के पहाड़ को पार नहीं कर सका और उसी ढ़ेर पर बैठकर गाना सुनने लगा। इस तरह पूरी रात बीत गई और अगली सुबह सांप को लौटना पड़ा। इस तरह उसने अपने पति की जान बचा ली। माना जाता है कि तभी से लोग घर की सुख, समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं ताकि यम उनके परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए।       
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है 'पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया' इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है, जो भारतीय संस्कृति के सर्वथा अनुकूल है।  धनतेरस के दिन सोने और चांदी के बर्तन, सिक्के तथा आभूषण खरीदने की परम्परा रही है। सोना सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है। मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिक्के भी खरीदते हैं।  दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है इसलिए इस दिन अब बर्तनों और आभूषणों के अलावा वाहन मोबाइल आदि भी खरीदे जाने लगे हैं। वर्तमान समय में देखा जाए तो मध्यम वर्गीय परिवारों में धनतेरस के दिन वाहन खरीदने का फैशन सा बन गया है। इस दिन ये लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं। कई लोग तो इस दिन कम्प्यूटर और बिजली के उपकरण भी खरीदते हैं।             
रीति रिवाजों से जुडा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है। एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं।



मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, October 29, 2013

भावनात्मक भाषण की मजबूरी

भावनात्मक भाषण की मजबूरी

 

गरीवी समस्या नहीं है बल्कि मानसिक बीमारी है
कोई इज्ज़त की बात नहीं करता है
हमारे पास छुपाने को कुछ नहीं है
मेरी दादी पिता को मार दिया
मुझे भी मार देंगें ,किन्तु मुझे डर नहीं है
ये कुछ बाक्य  हैं
जिसे हम आप अक्सर आये दिन मीडिया के माध्यम से सुनते रहते हैं
जनता सुनना चाहती हैं
कीमत नियंत्रित कैसे रहें ,इसके लिए क्या करेंगें
समाज की बेटियाँ
दरिंदों से कैसे सुरक्षित रहेंगी ,इसका क्या इंतजाम किया है
देश की सुरक्षा में लगे जबान की जिंदगी की अहमियत
कब हमें समझ आएगी
पारदर्शी प्रशासन की बात असल में
कब साकार होगी
भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए सख्त कानून कब बनेगा या नहीं भी
नेता ,ब्यापारी और संतों का गठजोड़ कभी ख़त्म होगा भी या नहीं
पाँच ,दस और पैतीस रुपये में गुजारा करने बाले आम लोग
सौ रुपये कीमत बाली प्याज कब तक
खरीदने को मजबूर रहेंगें।
युबा को राजनीती में आने की बात करने बाले
क्या ये भी बतायेंगें कि
केन्द्रीय मंत्रिमंडल में अधिकतर बुजुर्गों की संख्या
किस बजह से है।
युबा की बेहतरी के लिए क्या क्या योजना है।
देश की अबाम जानना चाहती है।





प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, October 22, 2013

इजाफ़ा




























क्या बतायें आज कल ये हाल अपना हो गया है 
पैर ढकता हूँ जब मैं, बाहर सर फिर हो गया है  .



 इजाफ़ा



आलू, टमाटर ,फल की कीमत में इजाफ़ा हो गया
इजाफ़ा होकर प्याज सौ रुपए हो गया 
दूध में प्रति लीटर दो रुपए इज़ाफा  हो गया 
पेट्रोल दस रुपए महँगा हो गया 
डीजल ,एल पी जी गैस में इजाफा हो गया 
बस ,ट्रेन और हबाई किराया में इज़ाफा किया गया 
मोबाइल कम्पनियों ने कॉल रेट में इजाफ़ा  किया 
बिजली कम्पनियों ने बिजली की दरों में इजाफ़ा कर दिया 
सेट टॉप बॉक्स की दरों में इजाफ़ा किया गया 
स्कूल फीस , कोचिंग फीस में इजाफ़ा किया गया 
आज कल आम आदमी को ये सब सुनना 
आम हो गया है।

क्या बतायें आज कल ये हाल अपना हो गया है 
पैर ढकता हूँ जब मैं, बाहर सर फिर हो गया है  .






मदन मोहन सक्सेना

Thursday, October 17, 2013

संत , स्वप्न और स्वर्ण भण्डार























संत , स्वप्न और स्वर्ण भण्डार

एक संत ने स्वप्न  देखा 
एक राजा के किले के तहखाने के अन्दर 
स्वर्ण का अपूर्ब भंडार 
संत का सपना 
कि यदि ये भंडार देश का हो जाये 
तो देश का खजाना ही नहीं भरेगा 
बल्कि  धन के अभाब में 
ना होने बाले कई कार्य हो पायेंगें 
इन कामों से जनता का भला हो पायेगा
संत का स्वप्न 
अब शासकों  का स्वप्न बन गया 
जल्दी जल्दी 
भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण हरकत में आ गया 
रातों रातों 
अनजान सा क़स्बा 
माडिया की चकाचौंद से जगमगाने लगा 
लोगो के स्वप्न भी हिलोरे मारने लगे 
कि स्वर्ण भण्डार से 
उनका भी कुछ भला हो जायेगा 
स्वर्ण की हिफाज़त के लिए 
सुरक्षा बल की तैनाती होने लगी 
जनता ,मीडिया ,संत , नेता 
सभी 
अपनी बास्तबिक परेशानियों को भूलकर
स्वप्न में मिले स्वर्ण को 
पाने के लिए  मशगूल हो गए 


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

लाचार अबाम



















मंगलबार को एक घटना देखी 
टी बी पर
समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव ने 
लोहिया ग्राम के विकास कार्यो की जांच के लिए 
शामली के अफसरों संग दौरा किया 
कार्यक्रम के दौरान बिजली के पंखों की व्यवस्था नहीं की गई
दौरे के दौरान कुछ बच्चों से पंखे से हवा कराई गई
लेकिन अफसरों ने बच्चों पर रहम नहीं किया और मस्ती में हवा खाते रहे
लखनऊ से आए वरिष्ठ अफसर को भी कुछ नजर नहीं आया
ये दर्शाता है कि 
हमारे अफसर जिनकी जिम्मेदारी है 
समाज के सुधार और ब्यबस्था चुस्त दुरुस्त करने की
कितने सम्बेदन हीन हैं 
देखा उस दिन 
मूक बने जनता के प्रतिनिधियों को
बातानुकुलित कमरों में रहने के आदी लोगों को जरा सी गर्मी में परेशानी को
सोती हुयी लाचार अबाम को 
बेलगाम अफसरशाही को 
सब कुछ करने को मजबूर गरीबी को 
सड़े गले भ्रष्ट तंत्र को 
जिसमें बचपन , आचार विचार , जबाबदेही 
की कोई हैसियत नहीं है। 



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना




Sunday, October 13, 2013

तूफान का मुकाबला

 

















शांति से कौन रहना नहीं चाहता
या कहिये किसको शांति से रहना पसंद नहीं
पर कभी कभी
मानबीय और प्राकतिक कारणों से
शांति भंग होकर तूफान आ जाता है
अभी हाल में ही
देश के कुछ हिस्सों ने
भीषण चक्रवाती तूफान फैलिन
का अनुभव किया
मौसम बैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार ही
शनिवार रात ओडिशा के तट पर पहुंचा
इस तूफान को गत वर्षों में आया सबसे भीषण तूफान माना जा रहा है
लेकिन इससे पहले के मुकाबले तबाही काफी कम रही
क्योंकि
भारतीय मौसम बैज्ञानिकों ने
इस का सटीक अनुमान पहले से लगा लिया था
मीडिया ने भी जागरूक करने का कम किया
केंद्र सरकार की और राज्य सरकार की एजेंसियों ने
बेहतर तालमेल से
लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंच दिया

और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकार (एनडीएमए) ने बेहतर कार्य किया
संकट की इस घडी में सब ने
जिस तरह से आपसी तालमेल से तूफान का
मुकाबला किया
निसंदेह गर्ब का बिषय है
उम्मीद की जानी चाहियें कि
आने बाले कल में भी
हम सब एक रहेंगें
ताकि किसी भी तूफान का मुकाबला कर
सुख शांति से सभी भारत बासी
अपने देश में रह सकें .






प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

Thursday, October 10, 2013

सोच पर तरस















सोच पर तरस

तरस आता है
मुझे उन लोगों की सोच पर
जो लोग आंतकबादी की पहचान भी धर्म से करने लगते हैं
और
संतों के दुराचरण में भी
हिन्दू धर्म और सनातन धर्म को बीच में ले आते हैं
धर्म लोगों को
आपस में मिलजुल कर रहने की सीख देता है
आतंक ,यौनाचार
करने बाला सिर्फ
मानबता का अपराधी है
उसका कोई धर्म नहीं होता है


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, October 1, 2013

समय समय का फेर

















 










समय समय की बात है समय समय का फेर
पशुओं को भी लग रहा देर सही ना अंधेर

बात बात पर लालूजी हँसते और मुसकाय
सजा सुनी ज्यों ही तभी दिल बैठा सा जाय

पहले लालू जी चले और पीछे चले मसूद
सख्ती से अब कोर्ट की कम होने लगा बजूद

चारा का तो हो गया कोयला का क्या होय
बोया (खाया )जैसा आपने फल भी बैसा होय

जनता की ये जीत है या भ्रष्टाचार की हार
जुगत मिलाने के लिए फिर नेता अब तैयार

 


मदन मोहन सक्सेना .



 




Thursday, September 26, 2013

क्रिया कलाप


















 






चाल ,चरित्र और चेहरा की बात करने बाले
आम आदमी के साथ होने का दाबा करने बाले
धर्म निरपेक्ष्ता का राग अलापने बाले
दलित चेतना की बात करने बाले
समाज बाद की दुहाई देने बाले
किसान ,गरीब ,शोषित की याद रखने बाले
सब ने मिलकर
कुछ ही पल में
मुख्य सुचना आयुक्त्य द्वारा
आम जनता को दिए गए जानकारी के अधिकार को
जबरदस्ती छीन लिया
अब जनता नहीं जान  सकेगी
कितनी परेशानी से
जनता के हितैषी
कैसे कैसे क्रिया कलाप
जनता के हित के लिए किया करते हैं .


मदन मोहन सक्सेना

Thursday, September 12, 2013

आँख मिचौली

























आँख मिचौली



जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा 
शहर में ठिकाना खोजा 
पता नहीं आजकल 
हर कोई मुझसे 
आँख मिचौली का खेल क्यों खेला  करता है 
जिसकी जब जरुरत होती है 
बह बहाँ से गायब मिलता है 
और जब जिसे जहाँ नहीं होना चाहियें 
जबरदस्ती कब्ज़ा जमा लेता है
कल की ही बात है 
मेरी बहुत दिनों के बात उससे मुलाकात हुयी 
सोचा गिले शिक्बे दूर कर लूँ 
पहले गाँव में तो उससे रोज का मिलना जुलना होता था
जबसे मुंबई में इधर क्या आया 
या कहिये
मुंबई जैसेबड़े शहरों की दीबारों के बीच आकर फँस  गया 
पूछा 
क्या बात है
आजकल आती नहीं हो इधर।
पहले तो हमारे  आंगन भर-भर आती थी
दादी की तरह छत पर पसरी रहती थी हमेशा
तंग दिल पड़ोसियों ने
अपनी इमारतों की दीवार क्या ऊँची की
तुम तो इधर का रास्ता ही भूल गयी
तुम्हें अक्सर सुबह देखता हूं
कि पड़ी रहती हो 
तंगदिल और धनी लोगों
के छज्जों पर
हमारी छत तो
अब तुम्हें भाती ही नहीं है 
क्या करें 
बहुत मुश्किल होती है 
जब कोई अपना (बर्षों से परिचित) 
आपको आपके हालत पर छोड़कर 
चला जाता है 
लेकिन याद रखो
ऊँची इमारतों के ऊँचे लोग 
बड़ी सादगी से लूटते हैं
फिर चाहे वो दौलत  हो या  इज्जत हो
महीनों के  बाद मिली हो 
इसलिए सारी शिकायतें सुना डाली
उसने कुछ बोला नहीं
बस हवा में खुशबु घोल कर 
खिड़की के पीछे चली गई
सोचा कि उसे पकड़कर आगोश में भर लूँ
धत्त तेरी की 
फिर गायब 
ये महानगर की धूप भी न 
बिलकुल तुम पर गई है 
हमेशा आँख मिचौली का खेल खेला  करती है 
बिना ये जाने 
कि इस समय इस का मौका है भी या नहीं 





 मदन मोहन सक्सेना 

Wednesday, September 4, 2013

शिक्षा शिक्षक और हम


 


















आज शिक्षक दिवस है
यानि
भारत के पूर्व राष्ट्रपति और दार्शनिक तथा शिक्षाविद डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन
प्रश्न है कि आज शिक्षक दिबस की कितनी जरुरत है
शिक्षक लोग आज के दिन
बच्चों से मिले तोहफे से खुश हो जाते हैं
और बच्चे शिक्षक को खुश देख कर खुश हो जातें हैं
शिक्षा का मतलब सिर्फ जानकारी देना ही नहीं है
जानकारी और तकनीकी गुर का अपना महत्व है
लेकिन बौद्धिक झुकाव और लोकतांत्रिक भावना का भी महत्व है
इन भावनाओं के साथ छात्र उत्तरदायी नागरिक बनते हैं
जब तक शिक्षक ,शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होगा
तब तक शिक्षा को अपना उद्देश्य नहीं मिल पायेगा
हमारी संस्कृति में
शिक्षक और गुरु का दर्जा तो भगवान से भी ऊपर माना गया है
लेकिन
आज का गुरु गुरु कहलाने लायक है इस पर प्रश्नचिह्न हैं
कितने ही गुरु ऐसे हैं जिन पर घिनौने अपराधों के आरोप लगे हुए हैं
शिक्षक भी गुरु के पद से तो उतर ही चुका है
अब वह शिक्षक भी रह पाएगा इसमें संदेह है
परिणाम ये हुआ है कि
आज न तो छात्रों के लिए कोई शिक्षक
उनका आर्दश , उनका मार्गदर्शक गुरू और जीवनभर की प्रेरणा बन पाता है
और न ही शिक्षक बनने को उत्सुक भी हैं
बही घिसी पिटी शिक्षा प्रणाली को उम्र भर खुद ढोता है
और छात्रों की पीठ पर लादता हुआ
एक शिक्षक
अब इस आस में कभी नहीं रहता कि उसका कोई छात्र
देश और समाज के निर्माण में कोई बडी सकारात्मक  भूमिका निभाएगा
सवाल ये कि इन सब के लिए कौन जिम्मेदार है
शिक्षक , शिक्षा ब्यबस्था या समाज
शिक्षक को जिस सम्मान से देखा जाना चाहियें
जो सुबिधाएं शिक्षक को  मिलनी चाहियें ,क्या मिल रहीं हैं
अगर नहीं
तो आज के भौतिक बादी युग में कौन शिक्षक बनना चाहेंगा
यदि शिक्षक संतुष्ट नहीं रहेगा
तो हमारे बच्चों का भबिष्य क्या होगा
देश सेबा में उनका कितना योगदान होगा
और हम किस दिशा में जा रहें हैं
समझना ज्यादा मुश्किल नहीं हैं।

शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामना :




प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना



Friday, August 30, 2013

हे राम आशाराम




















हे राम 
आशाराम 
राम राम 
जमीनों  का अतिक्रमण
लड़कियों का यौन शोषण 
भ्रष्‍ट तरीको से पैसा  कमाना
आस्था के नाम पर भावनाओं  से खिलवाड़
क्या ऐसे  होते हैं बाबा
सभी अपने नैनों को खोले 
चंगुल से आज़ाद हो जाओ
कि कहीं अगला नंबर आपका ना हो
क्या हमें जरूरत है ऐसे  डोंगी  की 
जाना है तो नारायण की शरण में जाओ
शिव की शरण में जाओ 
और अपना जीवन सफल बनाओ
हमारे पास ज्ञान के लिये गीता है 
वेद है 
फिर भी हम  बाबाओ के जाल में कैसे फंस जाते है
दुनिया को मोहमाया से मुक्त होने का संदेश देने वाला
खुद समधी का बहाना बना कर
पुलिस से बचना चाह रहा है 
क्या बहाना लगाया है पुलिस से बचने का !
ये बापू और वो बापू 
गुजरात की ही धरती पर के दो अलग अलग उदाहरण 
एक बेचारी नाबालिक लड़की के साथ
जिसका सारा परिवार इसको भगवान मानता हो
लड़की के पिता ने अपनी जमीन आश्रम  के लिये दे दी हो 
वो ही बाप आज कानून का दरवाज़ा खटखता रहा है
सी बी आई  जांच की मांग करता है 
और कह रहा है 
अगर पिता गलत है तो फाँसी  दे दो 
नही तो  बाबा को
अंधविश्वास को समाज मे फ़ैलाने बाला 
लोगों को बहकाने वाला  आज बाबा बना बेठा है 
और अंधविश्वास के खिलाफ मुहिम चलाने  वाले 
दाभोलकर जैसे  समाजसुधारो को मौत के घाट उतार दिया जाता है
और पुलिस उन हत्यारो को पकड भी नही पाती
क्योंकि हिन्दुस्तान की पब्लिक भी बेबकूफ है
तभी तो इन दुष्टो का धंधा खूब फूलता फलता है
हे राम 
आशाराम 
राम राम



 मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, August 20, 2013

हे ईश्वर






























हे ईश्वर 
आखिर तू ऐसा क्यूँ करता है ?
अशिक्षित ,गरीब ,सरल लोग 
तो अपनी ब्यथा सुनाने के लिए 
तुझसे मिलने के लिए ही आ रहे थे 
बे सुनाते भी तो भला किस को 
आखिर कौन उनकी सुनता ?
और सुनता भी 
तो कौन उनके कष्टों को दूर करता ?
उन्हें बिश्बास  था कि तू तो रहम करेगा 
किन्तु 
सुनने की बात तो दूर 
बह लोग बोलने के लायक ही नहीं रहे 
जिसमें औरतें ,बच्चें और कांवड़िए भी शामिल थे 
जो कात्यायनी मंदिर में जल चढ़ाने जा रहे थे
क्योंकि उनका बिश्बास था कि 
सावन का आखिरी सोमवार होने से  शिब अधिक प्रसन्न होंगें। 
कभी केदार नाथ में तूने सीधे सच्चें  लोगों का इम्तहान लिया 
क्योंकि उनका बिश्बास था कि चार धाम की यात्रा करने से 
उनके सभी कष्टों का निबारण हो जायेगा।
और कभी कुम्भ मेले में सब्र की परीक्षा ली 
क्योंकि उनका बिश्बास था कि गंगा में डुबकी लगाने से 
उनके पापों की गठरी का बोझ कम होगा 
उनको  क्या पता था कि
भक्त और भगबान के बीच का रास्ता 
इतना काँटों भरा होगा 
हे इश्वर 
आखिर तू ऐसा क्यों करता है। 
उन्हें  क्या पता था कि 
जीबन के कष्ट  से मुक्ति पाने के लिए 
ईश्वर  के दर पर जाने की बजाय 
आज के समय में 
चापलूसी , भ्रष्टाचार ,धूर्तता का होना ज्यादा फायदेमंद है 
सत्य और इमानदारी की राह पर चलने बाले की 
या तो नरेन्द्र दाभोलकर की तरह हत्या कर दी जाती है 
या फिर दुर्गा नागपाल की तरह 
बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। 

हे ईश्वर 
आखिर तू ऐसा क्यों करता है।



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

Wednesday, August 7, 2013

फिर एक बार आखिर कब तक

फिर एक बार 
सीमा का अतिक्रमण 
फिर एक बार पड़ोसी  देश की कायराना हरकत 
फिर एक बार हमारे सैनिकों की  शहादत 
फिर से पक्ष बिपक्ष का हंगामा 
फिर से आँकड़ों की बाजीगरी का खेल 
फिर से एक बार 
घटना की निंदा करने बाले बयानों की बहार 
फिर से 
भारत माता के सच्चे पुत्र की मौत 
यानि 
माता  पिता का पुत्र खोना 
बेटी का पिता खोना 
बहन का भाई खोना 
पत्नी का सब कुछ खोना 
फिर एक बार जिंदगी की कीमत मुआबजे से लगाना 
फिर एक बार 
आखिर कब तक

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 


Friday, August 2, 2013

सफ़र जिंदगी का



















बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके
जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है



कल तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआ
इक शख्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान है


इक दर्द का एहसास हमको हर समय मिलता रहा
ये बक्त की साजिश है या फिर बक्त का एहसान है

 
गर कहोगें दिन को दिन तो लोग जानेगें गुनाह
अब आज के इस दौर में दिखते नहीं इन्सान है

 
गैर बनकर पेश आते, बक्त पर अपने ही लोग
अपनो की पहचान करना अब नहीं आसान है

 
प्यासा पथिक और पास में बहता समुन्द्र देखकर
जिंदगी क्या है मदन , कुछ कुछ हुयी पहचान है



 

मदन मोहन सक्सेना

Monday, July 29, 2013

अंतर्मन की बेदना

अंतर्मन की बेदना 

परिबर्तन संसार का नियम है 
ज्यों समय बदलता है ,मौसम बदलता है 
बचपन जबानी में और जबानी बृद्धा अबस्था में 
तब्दील हो जाती है 
समय के चक्र के साथ 
अपने बेगाने में रूपान्तरित हो जाते हैं 
अजबनी अपनेपन का अहसास करातें हैं 
कभी दुनिया  पराई ब जालिम लगती है
तो कभी रंगीनियों का साक्षात्  प्रतिबिम्ब नजर आती है 
समय के इस चक्र में फँसा हुआ 
मैं अपने को पहचानने के लिए 
खुद से संपर्क स्थापित करना चाहता हूँ 
इसलिये दिन में दो बार 
और कभी कभी उससे अधिक बार 
आइनें में खुद को निहारता रहता हूँ 
जब मैनें खुद को सतही तौर  पर
जाननें की कोशिश की 
मैं खुद के अंत: सागर में तैरने लगता हूँ 
जब खुद को गहराई से जानने की 
तो असीम बिस्तार बाले अन्तासागर के गर्त में 
खुद को डूबा हुआ सा पाता हूँ 
अक्सर मेरे साथ ये होता है 
जो कहना चाहता हूँ ,बह कह नहीं पाता हूँ 
और जो कहता हूँ ,बह कहा मेरा नहीं लगता है 
मैं जो हूँ ,क्या बह नहीं हूँ 
और जो मैं नहीं हूँ ,क्या  मैं बह  हूँ
ये विचार मेरे अंतर्मन में गूंजता रहता है 
अपने अंतर्मन की बेदना को अभिब्यक्त 
करने के लिए मैंने लेखनी का कागज से स्पर्श  किया


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

Friday, July 19, 2013

मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र




















मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र ,तुझे खोजती है मेरी नजर
तुम्हें हो ख़बर की न हो ख़बर ,मुझे सिर्फ तेरी तलाश है

मेरे साथ तेरा प्यार है ,तो जिंदगी में बहार है
मेरी जिंदगी तेरे दम से है ,इस बात का एहसाश है

तेरे इश्क का है ये असर ,मुझे सुबह शाम की ना  ख़बर
मेरे दिल में तू रहती सदा , तू ना दूर है और ना पास है

ये तो हर किसी का ख्याल   है ,तेरे रूप की न मिसाल है
कैसें कहूँ  तेरी अहमियत, मेरी जिंदगी में खास है

तेरी झुल्फ जब लहरा गयी , काली घटायें छा गयी
हर पल तुम्हें देखा करू ,आँखों में फिर भी प्यास है

 


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 


Thursday, July 18, 2013

परमाणु पुष्प में पूर्ब प्रकाशित मेरी कबिता और ग़ज़ल

कवर पेज
रचनाएँ


परमाणु पुष्प में पूर्ब प्रकाशित मेरी कबिता और ग़ज़ल:
 *************************************************************************************


अपने अनुभबों,एहसासों ,बिचारों को
यथार्थ रूप में
अभिब्यक्त करने के लिए
जब जब मैनें लेखनी का कागज से स्पर्श किया
उस समय  मुझे एक बिचित्र प्रकार के
समर से आमुख होने का अबसर मिला
लेखनी अपनी परम्परा प्रतिष्टा मर्यादा  के लिए प्रतिबद्ध थी
जबकि मैं यथार्थ चित्रण के लिए बाध्य था 
इन दोनों के बीच कागज मूक दर्शक सा था 
ठीक उसी तरह जैसे 
आजाद भारत की इस जमीन पर 
रहनुमाओं तथा अन्तराष्ट्रीय बित्तीय संस्थाओं के बीच हुए 
जायज और दोष पूर्ण अनुबंध    को 
अबाम   को मानना अनिबार्य सा है 
जब जब लेखनी के साथ समझौता किया 
हकीकत के साथ साथ  कल्पित बिचारों को न्योता दिया 
सत्य से अलग हटकर लिखना चाहा
उसे पढने बालों ने खूब सराहा 
ठीक उसी तरह जैसे 
बेतन ब्रद्धि   के बिधेयक को पारित करबाने में
बिरोधी पछ   के साथ साथ  सत्ता पछ  के राजनीतिज्ञों 
का बराबर का योगदान रहता है 
आज मेरी प्रत्येक रचना 
बास्तबिकता  से कोसों दूर
कल्पिन्कता का राग अलापती हुयी 
आधारहीन तथ्यों पर आधारित 
कृतिमता के आबरण में लिपटी हुयी
निरर्थक बिचारों से परिपूरण है 
फिर भी मुझको आशा रहती है कि
पढने बालों को ये 
रुचिकर सरस ज्ञानर्धक लगेगी 
ठीक उसी तरह जैसे
हमारे रहनुमा बिना किसी सार्थक प्रयास के
जटिलतम समस्याओं का समाधान 
प्राप्त होने कि आशा 
आये दिन करते रहतें हैं
अब प्रत्येक रचना को
लिखने के बाद 
जब जब पढने  का अबसर मिलता है 
तो लगता है कि 
ये लिखा मेरा नहीं है 
मुझे जान पड़ता है कि
 मेरे खिलाफ
ये सब कागज और लेखनी कि
सुनियोजित साजिश का हिस्सा है
इस लेखांश में मेरा तो नगण्य हिस्सा है
मेरे  हर पल कि बिबश्ता का किस्सा है
ठीक उसी तरह जैसे
भेद भाब पूर्ण किये गए फैसलों
दोषपूर्ण नीतियों के  नतीजें आने  पर
उसका श्रेय 
कुशल राजनेता 
पूर्ब बर्ती सरकारों को दे कर के
अपने कर्तब्यों कि इतिश्री कर लेते हैं


 प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना
******************************************************************************
नरक की अंतिम जमीं तक गिर चुके है आज जो
नापने को कह रहे , हमसे बह दूरियां  आकाश की ..

इस कदर भटकें हैं युबा आज की इस दौर में
खोजने से मिलती नहीं अब गोलियां सल्फ़ास की

आज हम महफूज है क्यों दुश्मनों के बीच में
दोस्ती आती नहीं है रास अब बहुत ज्यादा पास की

बँट  गयी सारी जमी ,फिर बँट  गया ये आसमान
क्यों आज फिर हम बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की

हर जगह महफ़िल सजी पर दर्द भी मिल जायेगा
हर कोई कहने लगा अब आरजू बनवास की

मौत के साये में जीती चार पल की जिंदगी
क्या मदन ये सारी दुनिया, है बिरोधाभास की

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 


मदन मोहन सक्सेना .