समय के इस दौर में
जब समय ही समय था
समय जानने के लिए घड़ी नहीं थी
आज समय जानने के लिए
मोबाइल ,घड़ी क्या क्या नहीं है
किन्तु क्या दौर है
माँ बाप के पास बच्चों के लिए समय नहीं है
और बच्चों के लिए माँ बाप के लिए समय नहीं है
सब अपने अपने घेरे में कैद हैं
सब अपने अपने तरीके से
समय की कमी से जूझ रहें हैं
साथ ही साथ बोर भी हो रहें हैं
हर कोई एकांतबास से रुबरु हो रहा है
समय के इस दौर में
मदन मोहन सक्सेना
जब समय ही समय था
समय जानने के लिए घड़ी नहीं थी
आज समय जानने के लिए
मोबाइल ,घड़ी क्या क्या नहीं है
किन्तु क्या दौर है
माँ बाप के पास बच्चों के लिए समय नहीं है
और बच्चों के लिए माँ बाप के लिए समय नहीं है
सब अपने अपने घेरे में कैद हैं
सब अपने अपने तरीके से
समय की कमी से जूझ रहें हैं
साथ ही साथ बोर भी हो रहें हैं
हर कोई एकांतबास से रुबरु हो रहा है
समय के इस दौर में
मदन मोहन सक्सेना