समय के इस दौर में
जब समय ही समय था
समय जानने के लिए घड़ी नहीं थी
आज समय जानने के लिए
मोबाइल ,घड़ी क्या क्या नहीं है
किन्तु क्या दौर है
माँ बाप के पास बच्चों के लिए समय नहीं है
और बच्चों के लिए माँ बाप के लिए समय नहीं है
सब अपने अपने घेरे में कैद हैं
सब अपने अपने तरीके से
समय की कमी से जूझ रहें हैं
साथ ही साथ बोर भी हो रहें हैं
हर कोई एकांतबास से रुबरु हो रहा है
समय के इस दौर में
मदन मोहन सक्सेना
जब समय ही समय था
समय जानने के लिए घड़ी नहीं थी
आज समय जानने के लिए
मोबाइल ,घड़ी क्या क्या नहीं है
किन्तु क्या दौर है
माँ बाप के पास बच्चों के लिए समय नहीं है
और बच्चों के लिए माँ बाप के लिए समय नहीं है
सब अपने अपने घेरे में कैद हैं
सब अपने अपने तरीके से
समय की कमी से जूझ रहें हैं
साथ ही साथ बोर भी हो रहें हैं
हर कोई एकांतबास से रुबरु हो रहा है
समय के इस दौर में
मदन मोहन सक्सेना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (20-06-2015) को "समय के इस दौर में रमज़ान मुबारक हो" {चर्चा - 2012} पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
समय खुद समय ढूँढ रहा है :)
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...