चित्रगुप्त पूजा और महत्त्ब
भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज
के सहयोगी हैं. इनकी कथा इस प्रकार है कि सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से
जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से
एक कमल निकला जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की
रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अत: ये ब्रह्मा कहलाये.
इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा,
स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया. इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ
जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को
सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था. धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग
ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की
तपस्या के बाद एक पुरूष उत्पन्न हुआ. इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया
से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा.पौराणिक
मान्यताओं के अनुसार कायस्थ जाति को उत्पन्न करनेवाले भगवान चित्रगुप्त का
जन्म यम द्वितीया के दिन हुआ। इसी दिन कायस्थ जाति के लोग अपने घरों में
भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं। उन्हें मानने वाले इस दिन कलम और दवात
का इस्तेमाल नहीं करते। के आखिर में वे सम्पूर्ण आय-व्यय का हिसाब लिखकर भगवान को
समर्पित करते हैं। चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन ही हुआ. इसका कोई
निश्चित प्रमाण नहीं है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि रचयिता भगवान
ब्रह्मा ने एक बार सूर्य के समान अपने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा कि वह
किसी विशेष प्रयोजन से समाधिस्थ हो रहे हैं और इस दौरान वह यत्नपूर्वक
सृष्टि की रक्षा करें।
इसके बाद ब्रह्माजी ने 11 हजार वर्ष की समाधि ले ली। जब उनकी समाधि टूटी तो
उन्होंने देखा कि उनके सामने एक दिव्य पुरुष, कलम दवात लिए खडा है।
बह्माजी ने उससे उसका परिचय पूछा तो वह बोला, मैं आप के शरीर से ही उत्पन्न
हुआ हूं। आप मेरा नामकरण करने योग्य है और मेरे लिये कोई काम है तो
बतायें। व्रह्माजी ने हंसकर कहा, मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुए हो, इसलिये
कायस्थ तुम्हारी संज्ञा है और तुम पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से विख्यात
होगे।
धर्म-अधर्म पर धर्मराज की यमपुरी में विचार तुम्हारा काम होगा। अपने वर्ण
में जो उचित है उसका पालन करने के साथ-साथ तुम संतान उत्पन्न करो। इसके बाद
ब्रह्माजी चित्रगुप्त को आशीर्वाद देकर अंतर्धान हो गये। बाद में
चित्रगुप्त का विवाह एरावती और सुदक्षणा से हुआ।
सुदक्षणा से उन्हें श्रीरीवास्तव, सूरजध्वज, निगम, और कुलश्रेष्ठ नामक चार
पुत्र प्राप्त हुये, जबकि एरावती से आठ पुत्र रत्न प्राप्त हुये जो पृथ्वी
पर माथुर, कर्ण, सक्सेना, गौड़, अस्थाना, अम्बष्ठ, भटनागर और बाल्मीक नाम
से विख्यात हुये।चित्रगुप्त ने अपने पुत्रों को धर्म साधने की शिक्षा दी और कहा कि वे
देवताओं का पूजन, पितरों का श्राद्ध तथा तर्पण और ब्राह्मणों का पालन यत्न
पूर्वक करें। इसके बाद चित्रगुप्त स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गये और यमराज
की यमपुरी में मनुष्य के पाप-पुण्य का विवरण तैयार करने का काम करने लगे।
जो भी प्राणी धरती पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है क्योकि यही
विधि का विधान है. विधि के इस विधान से स्वयं भगवान भी नहीं बच पाये और
मृत्यु की गोद में उन्हें भी सोना पड़ा. चाहे भगवान राम हों, कृष्ण हों,
बुध और जैन सभी को निश्चित समय पर पृथ्वी लोक आ त्याग करना पड़ता है.
मृत्युपरान्त क्या होता है और जीवन से पहले क्या है यह एक ऐसा रहस्य है
जिसे कोई नहीं सुलझा सकता. लेकिन जैसा कि हमारे वेदों एवं पुराणों में लिखा
और ऋषि मुनियों ने कहा है उसके अनुसार इस मृत्युलोक के उपर एक दिव्य लोक
है जहां न जीवन का हर्ष है और न मृत्यु का शोक वह लोक जीवन मृत्यु से परे
है.
इस दिव्य लोक में देवताओं का निवास है और फिर उनसे भी Šৠपर विष्णु लोक,
ब्रह्मलोक और शिवलोक है. जीवात्मा जब अपने प्राप्त शरीर के कर्मों के
अनुसार विभिन्न लोकों को जाता है. जो जीवात्मा विष्णु लोक, ब्रह्मलोक और
शिवलोक में स्थान पा जाता है उन्हें जीवन चक्र में आवागमन यानी जन्म मरण से
मुक्ति मिल जाती है और वे ब्रह्म में विलीन हो जाता हैं अर्थात आत्मा
परमात्मा से मिलकर परमलक्ष्य को प्राप्त कर लेता है.
जो जीवात्मा कर्म बंधन में फंसकर पाप कर्म से दूषित हो जाता हैं उन्हें
यमलोक जाना पड़ता है. मृत्यु काल में इन्हे आपने साथ ले जाने के लिए यमलोक
से यमदूत आते हैं जिन्हें देखकर ये जीवात्मा कांप उठता है रोने लगता है
परंतु दूत बड़ी निर्ममता से उन्हें बांध कर घसीटते हुए यमलोक ले जाते हैं.
इन आत्माओं को यमदूत भयंकर कष्ट देते हैं और ले जाकर यमराज के समक्ष खड़ा
कर देते हैं. इसी प्रकार की बहुत सी बातें गरूड़ पुराण में वर्णित है.
यमराज के दरवार में उस जीवात्मा के कर्मों का लेखा जोखा होता है. कर्मों
का लेखा जोखा रखने वाले भगवान हैं चित्रगुप्त. यही भगवान चित्रगुप्त जन्म
से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवों के सभी कर्मों को अपनी पुस्तक में लिखते रहते
हैं और जब जीवात्मा मृत्यु के पश्चात यमराज के समझ पहुचता है तो उनके
कर्मों को एक एक कर सुनाते हैं और उन्हें अपने कर्मों के अनुसार क्रूर नर्क
में भेज देते हैं.
भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और जल है. ये
कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय
मिलती है. कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का
विधान है. इस दिन भगवान चित्रगुप्त और यमराज की मूर्ति स्थापित करके अथवा
उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धा पूर्वक सभी प्रकार से फूल, अक्षत, कुमकुम,
सिन्दूर एवं भांति भांति के पकवान, मिष्टान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा
करें. और फिर जाने अनजाने हुए अपराधों के लिए इनसे क्षमा याचना करें. यमराज
और चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है.
मदन मोहन सक्सेना।
अद्भुत जानकारी...धन्यवाद...
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