बह हमसे बोले हसंकर कि आज है
दीवाली
उदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा
नहीं ताली
मैं कैसें उनसे बोलूं कि जेब मेरी
ख़ाली
जब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ ताली
बो बोले मुस्कराके धन से क्यों न
खेलते तुम
देखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते
तुम
इन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते हम
जिसके ना पास दौलत उससे न बोलते हम
मैंने जो देखा उनको खड़ें बो मुस्करा रहे थे
दीवाली के दिन तो बो दौलत लुटा रहे थे
मैनें कहा ,सच्चाई मेरी पूजा इंसानियत से
नाता
तुम जो कुछ भी कह रहे हो ,नहीं है मुझको भाता
बो बोले हमसे हसकर ,कहता हूँ बो तुम सुन लो
दुनियां में मिलता सबकुछ खुशियों से दामन भर
लो
बातों में है क्या रक्खा मौके पे बात
बदल लो
पैसों कि खातिर दुनियां में सब से तुम सौदा
कर लो
बो बोले हमसे हंसकर ,हकीकत भी तो यही है
इंसानों क़ी है दुनिया पर इंसानियत नहीं है