मैं , लेखनी और ज़िन्दगी
Writer and Poet. Play with words to express feelings.
Monday, September 10, 2012
मुक्तक
मयखाने की चौखट को कभी मदिर न समझना तुम
मयखाने जाकर पीने की मेरी आदत नहीं थी ...
चाहत से जो देखा मेरी ओर उन्होंने
आँखों में कुछ छलकी मैंने थोड़ी पी थी.
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
2 comments:
दिगम्बर नासवा
September 13, 2012 at 5:56 AM
क्या बात है ...
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Rajendra kumar
January 28, 2013 at 2:58 AM
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
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क्या बात है ...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
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