Wednesday, November 13, 2013
Monday, November 11, 2013
चुनौती
केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कल स्वीकार किया कि प्रधानमंत्री पद
के भाजपा के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को कांग्रेस पार्टी चुनौती देने वाले
नेता के तौर पर देखती है।
और आज गृह मंत्री शिंदे ने कहा मोदी चुनौती नहीं हैं
बिश्बास करना मुश्किल है कौन सही कह रहा है
और आज गृह मंत्री शिंदे ने कहा मोदी चुनौती नहीं हैं
बिश्बास करना मुश्किल है कौन सही कह रहा है
Thursday, November 7, 2013
चित्रगुप्त पूजा और महत्त्ब
चित्रगुप्त पूजा और महत्त्ब
भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज
के सहयोगी हैं. इनकी कथा इस प्रकार है कि सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से
जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से
एक कमल निकला जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की
रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अत: ये ब्रह्मा कहलाये.
इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा,
स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया. इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ
जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को
सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था. धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग
ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की
तपस्या के बाद एक पुरूष उत्पन्न हुआ. इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया
से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा.पौराणिक
मान्यताओं के अनुसार कायस्थ जाति को उत्पन्न करनेवाले भगवान चित्रगुप्त का
जन्म यम द्वितीया के दिन हुआ। इसी दिन कायस्थ जाति के लोग अपने घरों में
भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं। उन्हें मानने वाले इस दिन कलम और दवात
का इस्तेमाल नहीं करते। के आखिर में वे सम्पूर्ण आय-व्यय का हिसाब लिखकर भगवान को
समर्पित करते हैं। चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन ही हुआ. इसका कोई
निश्चित प्रमाण नहीं है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि रचयिता भगवान
ब्रह्मा ने एक बार सूर्य के समान अपने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा कि वह
किसी विशेष प्रयोजन से समाधिस्थ हो रहे हैं और इस दौरान वह यत्नपूर्वक
सृष्टि की रक्षा करें।
इसके बाद ब्रह्माजी ने 11 हजार वर्ष की समाधि ले ली। जब उनकी समाधि टूटी तो
उन्होंने देखा कि उनके सामने एक दिव्य पुरुष, कलम दवात लिए खडा है।
बह्माजी ने उससे उसका परिचय पूछा तो वह बोला, मैं आप के शरीर से ही उत्पन्न
हुआ हूं। आप मेरा नामकरण करने योग्य है और मेरे लिये कोई काम है तो
बतायें। व्रह्माजी ने हंसकर कहा, मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुए हो, इसलिये
कायस्थ तुम्हारी संज्ञा है और तुम पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से विख्यात
होगे।
धर्म-अधर्म पर धर्मराज की यमपुरी में विचार तुम्हारा काम होगा। अपने वर्ण
में जो उचित है उसका पालन करने के साथ-साथ तुम संतान उत्पन्न करो। इसके बाद
ब्रह्माजी चित्रगुप्त को आशीर्वाद देकर अंतर्धान हो गये। बाद में
चित्रगुप्त का विवाह एरावती और सुदक्षणा से हुआ।
सुदक्षणा से उन्हें श्रीरीवास्तव, सूरजध्वज, निगम, और कुलश्रेष्ठ नामक चार
पुत्र प्राप्त हुये, जबकि एरावती से आठ पुत्र रत्न प्राप्त हुये जो पृथ्वी
पर माथुर, कर्ण, सक्सेना, गौड़, अस्थाना, अम्बष्ठ, भटनागर और बाल्मीक नाम
से विख्यात हुये।चित्रगुप्त ने अपने पुत्रों को धर्म साधने की शिक्षा दी और कहा कि वे
देवताओं का पूजन, पितरों का श्राद्ध तथा तर्पण और ब्राह्मणों का पालन यत्न
पूर्वक करें। इसके बाद चित्रगुप्त स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गये और यमराज
की यमपुरी में मनुष्य के पाप-पुण्य का विवरण तैयार करने का काम करने लगे।
जो भी प्राणी धरती पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है क्योकि यही
विधि का विधान है. विधि के इस विधान से स्वयं भगवान भी नहीं बच पाये और
मृत्यु की गोद में उन्हें भी सोना पड़ा. चाहे भगवान राम हों, कृष्ण हों,
बुध और जैन सभी को निश्चित समय पर पृथ्वी लोक आ त्याग करना पड़ता है.
मृत्युपरान्त क्या होता है और जीवन से पहले क्या है यह एक ऐसा रहस्य है
जिसे कोई नहीं सुलझा सकता. लेकिन जैसा कि हमारे वेदों एवं पुराणों में लिखा
और ऋषि मुनियों ने कहा है उसके अनुसार इस मृत्युलोक के उपर एक दिव्य लोक
है जहां न जीवन का हर्ष है और न मृत्यु का शोक वह लोक जीवन मृत्यु से परे
है.
इस दिव्य लोक में देवताओं का निवास है और फिर उनसे भी Šৠपर विष्णु लोक,
ब्रह्मलोक और शिवलोक है. जीवात्मा जब अपने प्राप्त शरीर के कर्मों के
अनुसार विभिन्न लोकों को जाता है. जो जीवात्मा विष्णु लोक, ब्रह्मलोक और
शिवलोक में स्थान पा जाता है उन्हें जीवन चक्र में आवागमन यानी जन्म मरण से
मुक्ति मिल जाती है और वे ब्रह्म में विलीन हो जाता हैं अर्थात आत्मा
परमात्मा से मिलकर परमलक्ष्य को प्राप्त कर लेता है.
जो जीवात्मा कर्म बंधन में फंसकर पाप कर्म से दूषित हो जाता हैं उन्हें
यमलोक जाना पड़ता है. मृत्यु काल में इन्हे आपने साथ ले जाने के लिए यमलोक
से यमदूत आते हैं जिन्हें देखकर ये जीवात्मा कांप उठता है रोने लगता है
परंतु दूत बड़ी निर्ममता से उन्हें बांध कर घसीटते हुए यमलोक ले जाते हैं.
इन आत्माओं को यमदूत भयंकर कष्ट देते हैं और ले जाकर यमराज के समक्ष खड़ा
कर देते हैं. इसी प्रकार की बहुत सी बातें गरूड़ पुराण में वर्णित है.
यमराज के दरवार में उस जीवात्मा के कर्मों का लेखा जोखा होता है. कर्मों
का लेखा जोखा रखने वाले भगवान हैं चित्रगुप्त. यही भगवान चित्रगुप्त जन्म
से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवों के सभी कर्मों को अपनी पुस्तक में लिखते रहते
हैं और जब जीवात्मा मृत्यु के पश्चात यमराज के समझ पहुचता है तो उनके
कर्मों को एक एक कर सुनाते हैं और उन्हें अपने कर्मों के अनुसार क्रूर नर्क
में भेज देते हैं.
भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और जल है. ये
कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय
मिलती है. कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का
विधान है. इस दिन भगवान चित्रगुप्त और यमराज की मूर्ति स्थापित करके अथवा
उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धा पूर्वक सभी प्रकार से फूल, अक्षत, कुमकुम,
सिन्दूर एवं भांति भांति के पकवान, मिष्टान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा
करें. और फिर जाने अनजाने हुए अपराधों के लिए इनसे क्षमा याचना करें. यमराज
और चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है.
मदन मोहन सक्सेना।
Saturday, November 2, 2013
Thursday, October 31, 2013
धनतेरस का पर्ब (परम्पराओं का पालन या रहीसी का दिखाबा )
धनतेरस का पर्ब (परम्पराओं का पालन या रहीसी का दिखाबा )
आज यानि शुक्रबार ,दिनांक नवम्बर एक दो हज़ार तेरह को पुरे भारत बर्ष में धनतेरस मनाई जायेगी। सबाल ये है कि आज के समय में कितनी जरुरत है धनतेरस को मनाने की।रीति रिवाजों से जुडा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया
है। एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर
वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद
कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग
अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते
हैं।धनतेरस के दिन सोना, चांदी के अलावा बर्तन खरीदने की परम्परा है। इस पर्व
पर बर्तन खरीदने की शुरुआत कब और कैसे हुई, इसका कोई निश्चित प्रमाण तो
नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि जन्म के समय धन्वन्तरि के हाथों में
अमृत कलश था। इस अमृत कलश को मंगल कलश भी कहते हैं और ऐसी मान्यता है कि
देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने इसका निर्माण किया था। यही कारण है आम जन
इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं।
आधुनिक युग की तेजी से बदलती जीवन शैली में भी धनतेरस की परम्परा आज भी
कायम है और समाज के सभी वर्गों के लोग कई महत्वपूर्ण चीजों की खरीदारी के
लिए पूरे साल इस पर्व का बेसब्री से इंतजार करते हैं। हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी केदिन धन्वतरि
त्रयोदशी मनायी जाती है। जिसे आम बोलचाल में 'धनतेरस' कहा जाता है। यह
मूलत: धन्वन्तरि जयंती का पर्व है और आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरि के जन्म
दिवस के रूप में मनाया जाता है।
आने वाली पीढियां अपनी परम्परा को अच्छी तरह समझ सकें। इसके लिए भारतीय संस्कृति के हर पर्व से जुडी कोई न कोई लोक कथा अवश्य है। दीपावली से पहले मनाए जाने वाले धनतेरस पर्व से भी जुडी एक लोककथा है, जो कई युगों से कही, सुनी जा रही है। पौराणिक कथाओं में धन्वन्तरि के जन्म का वर्णन करते हुए बताया गया है कि देवता और असुरों के समुद्र मंथन से धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। वह अपने हाथों में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। इस कारण उनका नाम पीयूषपाणि धन्वन्तरि विख्यात हुआ। उन्हें विष्णु का अवतार भी माना जाता है।
परम्परा के अनुसार धनतेरस की संध्या को मृत्यु के देवता कहे जाने वाले यमराज के नाम का दीया घर की देहरी पर रखा जाता है और उनकी पूजा करके प्रार्थना की जाती है कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं। देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से प्रेरित है।
यम के नाम से दीया निकालने के बारे में भी एक पौराणिक कथा है, एक बार राजा हिम ने अपने पुत्र की कुंडली बनवायी। इसमें यह बात सामने आयी कि शादी के ठीक चौथे दिन सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। हिम की पुत्रवधू को जब इस बात का पता चला तो उसने निश्चय किया कि वह हर हाल में अपने पति को यम के कोप से बचाएगी। शादी के चौथे दिन उसने पति के कमरे के बाहर घर के सभी जेवर और सोने-चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर उसे पहाड़ का रूप दे दिया और खुद रात भर बैठकर उसे गाना और कहानी सुनाने लगी ताकि उसे नींद नहीं आए।
रात के समय जब यम सांप के रूप में उसके पति को डंसने आए तो वह सांप आभूषणों के पहाड़ को पार नहीं कर सका और उसी ढ़ेर पर बैठकर गाना सुनने लगा। इस तरह पूरी रात बीत गई और अगली सुबह सांप को लौटना पड़ा। इस तरह उसने अपने पति की जान बचा ली। माना जाता है कि तभी से लोग घर की सुख, समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं ताकि यम उनके परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए।
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है 'पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया' इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है, जो भारतीय संस्कृति के सर्वथा अनुकूल है। धनतेरस के दिन सोने और चांदी के बर्तन, सिक्के तथा आभूषण खरीदने की परम्परा रही है। सोना सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है। मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिक्के भी खरीदते हैं। दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है इसलिए इस दिन अब बर्तनों और आभूषणों के अलावा वाहन मोबाइल आदि भी खरीदे जाने लगे हैं। वर्तमान समय में देखा जाए तो मध्यम वर्गीय परिवारों में धनतेरस के दिन वाहन खरीदने का फैशन सा बन गया है। इस दिन ये लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं। कई लोग तो इस दिन कम्प्यूटर और बिजली के उपकरण भी खरीदते हैं।
रीति रिवाजों से जुडा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है। एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं।
आने वाली पीढियां अपनी परम्परा को अच्छी तरह समझ सकें। इसके लिए भारतीय संस्कृति के हर पर्व से जुडी कोई न कोई लोक कथा अवश्य है। दीपावली से पहले मनाए जाने वाले धनतेरस पर्व से भी जुडी एक लोककथा है, जो कई युगों से कही, सुनी जा रही है। पौराणिक कथाओं में धन्वन्तरि के जन्म का वर्णन करते हुए बताया गया है कि देवता और असुरों के समुद्र मंथन से धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। वह अपने हाथों में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। इस कारण उनका नाम पीयूषपाणि धन्वन्तरि विख्यात हुआ। उन्हें विष्णु का अवतार भी माना जाता है।
परम्परा के अनुसार धनतेरस की संध्या को मृत्यु के देवता कहे जाने वाले यमराज के नाम का दीया घर की देहरी पर रखा जाता है और उनकी पूजा करके प्रार्थना की जाती है कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं। देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से प्रेरित है।
यम के नाम से दीया निकालने के बारे में भी एक पौराणिक कथा है, एक बार राजा हिम ने अपने पुत्र की कुंडली बनवायी। इसमें यह बात सामने आयी कि शादी के ठीक चौथे दिन सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। हिम की पुत्रवधू को जब इस बात का पता चला तो उसने निश्चय किया कि वह हर हाल में अपने पति को यम के कोप से बचाएगी। शादी के चौथे दिन उसने पति के कमरे के बाहर घर के सभी जेवर और सोने-चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर उसे पहाड़ का रूप दे दिया और खुद रात भर बैठकर उसे गाना और कहानी सुनाने लगी ताकि उसे नींद नहीं आए।
रात के समय जब यम सांप के रूप में उसके पति को डंसने आए तो वह सांप आभूषणों के पहाड़ को पार नहीं कर सका और उसी ढ़ेर पर बैठकर गाना सुनने लगा। इस तरह पूरी रात बीत गई और अगली सुबह सांप को लौटना पड़ा। इस तरह उसने अपने पति की जान बचा ली। माना जाता है कि तभी से लोग घर की सुख, समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं ताकि यम उनके परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए।
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है 'पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया' इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है, जो भारतीय संस्कृति के सर्वथा अनुकूल है। धनतेरस के दिन सोने और चांदी के बर्तन, सिक्के तथा आभूषण खरीदने की परम्परा रही है। सोना सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है। मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिक्के भी खरीदते हैं। दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है इसलिए इस दिन अब बर्तनों और आभूषणों के अलावा वाहन मोबाइल आदि भी खरीदे जाने लगे हैं। वर्तमान समय में देखा जाए तो मध्यम वर्गीय परिवारों में धनतेरस के दिन वाहन खरीदने का फैशन सा बन गया है। इस दिन ये लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं। कई लोग तो इस दिन कम्प्यूटर और बिजली के उपकरण भी खरीदते हैं।
रीति रिवाजों से जुडा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है। एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं।
मदन मोहन सक्सेना
Tuesday, October 29, 2013
भावनात्मक भाषण की मजबूरी
भावनात्मक भाषण की मजबूरी
गरीवी समस्या नहीं है बल्कि मानसिक बीमारी है
कोई इज्ज़त की बात नहीं करता है
हमारे पास छुपाने को कुछ नहीं है
मेरी दादी पिता को मार दिया
मुझे भी मार देंगें ,किन्तु मुझे डर नहीं है
ये कुछ बाक्य हैं
जिसे हम आप अक्सर आये दिन मीडिया के माध्यम से सुनते रहते हैं
जनता सुनना चाहती हैं
कीमत नियंत्रित कैसे रहें ,इसके लिए क्या करेंगें
समाज की बेटियाँ
दरिंदों से कैसे सुरक्षित रहेंगी ,इसका क्या इंतजाम किया है
देश की सुरक्षा में लगे जबान की जिंदगी की अहमियत
कब हमें समझ आएगी
पारदर्शी प्रशासन की बात असल में
कब साकार होगी
भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए सख्त कानून कब बनेगा या नहीं भी
नेता ,ब्यापारी और संतों का गठजोड़ कभी ख़त्म होगा भी या नहीं
पाँच ,दस और पैतीस रुपये में गुजारा करने बाले आम लोग
सौ रुपये कीमत बाली प्याज कब तक
खरीदने को मजबूर रहेंगें।
युबा को राजनीती में आने की बात करने बाले
क्या ये भी बतायेंगें कि
केन्द्रीय मंत्रिमंडल में अधिकतर बुजुर्गों की संख्या
किस बजह से है।
युबा की बेहतरी के लिए क्या क्या योजना है।
देश की अबाम जानना चाहती है।
प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
Tuesday, October 22, 2013
इजाफ़ा
क्या बतायें आज कल ये हाल अपना हो गया है
पैर ढकता हूँ जब मैं, बाहर सर फिर हो गया है .
इजाफ़ा
आलू, टमाटर ,फल की कीमत में इजाफ़ा हो गया
इजाफ़ा होकर प्याज सौ रुपए हो गया
दूध में प्रति लीटर दो रुपए इज़ाफा हो गया
पेट्रोल दस रुपए महँगा हो गया
डीजल ,एल पी जी गैस में इजाफा हो गया
बस ,ट्रेन और हबाई किराया में इज़ाफा किया गया
मोबाइल कम्पनियों ने कॉल रेट में इजाफ़ा किया
बिजली कम्पनियों ने बिजली की दरों में इजाफ़ा कर दिया
सेट टॉप बॉक्स की दरों में इजाफ़ा किया गया
स्कूल फीस , कोचिंग फीस में इजाफ़ा किया गया
आज कल आम आदमी को ये सब सुनना
आम हो गया है।
क्या बतायें आज कल ये हाल अपना हो गया है
पैर ढकता हूँ जब मैं, बाहर सर फिर हो गया है .
मदन मोहन सक्सेना
Thursday, October 17, 2013
संत , स्वप्न और स्वर्ण भण्डार
संत , स्वप्न और स्वर्ण भण्डार
एक संत ने स्वप्न देखा
एक राजा के किले के तहखाने के अन्दर
स्वर्ण का अपूर्ब भंडार
संत का सपना
कि यदि ये भंडार देश का हो जाये
तो देश का खजाना ही नहीं भरेगा
बल्कि धन के अभाब में
ना होने बाले कई कार्य हो पायेंगें
इन कामों से जनता का भला हो पायेगा
संत का स्वप्न
अब शासकों का स्वप्न बन गया
जल्दी जल्दी
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण हरकत में आ गया
रातों रातों
अनजान सा क़स्बा
माडिया की चकाचौंद से जगमगाने लगा
लोगो के स्वप्न भी हिलोरे मारने लगे
कि स्वर्ण भण्डार से
उनका भी कुछ भला हो जायेगा
स्वर्ण की हिफाज़त के लिए
सुरक्षा बल की तैनाती होने लगी
जनता ,मीडिया ,संत , नेता
सभी
अपनी बास्तबिक परेशानियों को भूलकर
स्वप्न में मिले स्वर्ण को
पाने के लिए मशगूल हो गए
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
लाचार अबाम
मंगलबार को एक घटना देखी
टी बी पर
समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव ने
लोहिया ग्राम के विकास कार्यो की जांच के लिए
शामली के अफसरों संग दौरा किया
कार्यक्रम के दौरान बिजली के पंखों की व्यवस्था नहीं की गई
दौरे के दौरान कुछ बच्चों से पंखे से हवा कराई गई
लेकिन अफसरों ने बच्चों पर रहम नहीं किया और मस्ती में हवा खाते रहे
लखनऊ से आए वरिष्ठ अफसर को भी कुछ नजर नहीं आया
ये दर्शाता है कि
हमारे अफसर जिनकी जिम्मेदारी है
समाज के सुधार और ब्यबस्था चुस्त दुरुस्त करने की
कितने सम्बेदन हीन हैं
देखा उस दिन
मूक बने जनता के प्रतिनिधियों को
बातानुकुलित कमरों में रहने के आदी लोगों को जरा सी गर्मी में परेशानी को
सोती हुयी लाचार अबाम को
बेलगाम अफसरशाही को
सब कुछ करने को मजबूर गरीबी को
सड़े गले भ्रष्ट तंत्र को
जिसमें बचपन , आचार विचार , जबाबदेही
की कोई हैसियत नहीं है।
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
Sunday, October 13, 2013
तूफान का मुकाबला
शांति से कौन रहना नहीं चाहता
या कहिये किसको शांति से रहना पसंद नहीं
पर कभी कभी
मानबीय और प्राकतिक कारणों से
शांति भंग होकर तूफान आ जाता है
अभी हाल में ही
देश के कुछ हिस्सों ने
भीषण चक्रवाती तूफान फैलिन
का अनुभव किया
मौसम बैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार ही
शनिवार रात ओडिशा के तट पर पहुंचा
इस तूफान को गत वर्षों में आया सबसे भीषण तूफान माना जा रहा है
लेकिन इससे पहले के मुकाबले तबाही काफी कम रही
क्योंकि
भारतीय मौसम बैज्ञानिकों ने
इस का सटीक अनुमान पहले से लगा लिया था
मीडिया ने भी जागरूक करने का कम किया
केंद्र सरकार की और राज्य सरकार की एजेंसियों ने
बेहतर तालमेल से
लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंच दिया
और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकार (एनडीएमए) ने बेहतर कार्य किया
संकट की इस घडी में सब ने
जिस तरह से आपसी तालमेल से तूफान का
मुकाबला किया
निसंदेह गर्ब का बिषय है
उम्मीद की जानी चाहियें कि
आने बाले कल में भी
हम सब एक रहेंगें
ताकि किसी भी तूफान का मुकाबला कर
सुख शांति से सभी भारत बासी
अपने देश में रह सकें .
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
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