Monday, September 18, 2017

ग़ज़ल (दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने लगतें हैं)


ग़ज़ल (दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने  लगतें हैं)



जब अपने चेहरे से नकाब हम हटाने लगतें हैं
अपने चेहरे को देखकर डर जाने लगते हैं


वह  हर बात को मेरी क्यों दबाने लगते हैं
जब हकीकत हम उनको समझाने लगते हैं


जिस गलती पर हमको वह  समझाने लगते है
वही  गलती को फिर वह  दोहराने लगते हैं


आज दर्द खिंच कर मेरे पास आने लगतें हैं
शायद दर्द से मेरे रिश्ते पुराने लगतें हैं


दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने  लगतें हैं
मदन दुश्मन आज सारे जाने पहचाने लगते हैं 

ग़ज़ल (दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने  लगतें हैं)
मदन मोहन सक्सेना

1 comment:

  1. very helpful article.
    thanks for sharing with us.
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