Wednesday, June 6, 2018

ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है

दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है
ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है
अपनों संग समय गुजरे इससे बेहतर क्या होगा
कोई तन्हा रहना नहीं चाहें मजबूरी बनाती है
किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है
बिना मेहनत के मंजिल कब किसके हाथ आती है
क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से
दशा कैसी भी अपनी हो किसको रास आती है
दिल की बात दिल में ही दफ़न कर लो तो अच्छा है
पत्थर दिल ज़माने में कहीं ये बात भाती है
भरोसा खुद पर करके जो समय की नब्ज़ को जानें
“मदन ” हताशा और नाकामी उनसे दूर जाती है
ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है
मदन मोहन सक्सेना

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