संत , स्वप्न और स्वर्ण भण्डार एक संत ने स्वप्न देखा एक राजा के किले के तहखाने के अन्दर स्वर्ण का अपूर्ब भंडार संत का सपना कि यदि ये भंडार देश का हो जाये तो देश का खजाना ही नहीं भरेगा बल्कि धन के अभाब में ना होने बाले कई कार्य हो पायेंगें इन कामों से जनता का भला हो पायेगा संत का स्वप्न अब शासकों का स्वप्न बन गया जल्दी जल्दी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण हरकत में आ गया रातों रातों अनजान सा क़स्बा माडिया की चकाचौंद से जगमगाने लगा लोगो के स्वप्न भी हिलोरे मारने लगे कि स्वर्ण भण्डार से उनका भी कुछ भला हो जायेगा स्वर्ण की हिफाज़त के लिए सुरक्षा बल की तैनाती होने लगी जनता ,मीडिया ,संत , नेता सभी अपनी बास्तबिक परेशानियों को भूलकर स्वप्न में मिले स्वर्ण को पाने के लिए मशगूल हो गए प्रस्तुति: मदन मोहन सक्सेना
मंगलबार को एक घटना देखी टी बी पर समाज कल्याण विभाग
के प्रमुख सचिव ने लोहिया ग्राम के विकास कार्यो की जांच के लिए शामली के
अफसरों संग दौरा किया कार्यक्रम के दौरान बिजली के पंखों की व्यवस्था नहीं की
गई दौरे के दौरान कुछ बच्चों से पंखे से
हवा कराई गई लेकिन अफसरों ने बच्चों पर रहम नहीं किया और मस्ती में हवा
खाते रहे लखनऊ से आए वरिष्ठ अफसर को भी कुछ
नजर नहीं आया ये दर्शाता है कि हमारे अफसर जिनकी जिम्मेदारी है समाज के सुधार और ब्यबस्था चुस्त दुरुस्त करने की कितने सम्बेदन हीन हैं देखा उस दिन मूक बने जनता के प्रतिनिधियों को बातानुकुलित कमरों में रहने के आदी लोगों को जरा सी गर्मी में परेशानी को सोती हुयी लाचार अबाम को बेलगाम अफसरशाही को सब कुछ करने को मजबूर गरीबी को सड़े गले भ्रष्ट तंत्र को जिसमें बचपन , आचार विचार , जबाबदेही की कोई हैसियत नहीं है।