Thursday, October 17, 2013

संत , स्वप्न और स्वर्ण भण्डार























संत , स्वप्न और स्वर्ण भण्डार

एक संत ने स्वप्न  देखा 
एक राजा के किले के तहखाने के अन्दर 
स्वर्ण का अपूर्ब भंडार 
संत का सपना 
कि यदि ये भंडार देश का हो जाये 
तो देश का खजाना ही नहीं भरेगा 
बल्कि  धन के अभाब में 
ना होने बाले कई कार्य हो पायेंगें 
इन कामों से जनता का भला हो पायेगा
संत का स्वप्न 
अब शासकों  का स्वप्न बन गया 
जल्दी जल्दी 
भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण हरकत में आ गया 
रातों रातों 
अनजान सा क़स्बा 
माडिया की चकाचौंद से जगमगाने लगा 
लोगो के स्वप्न भी हिलोरे मारने लगे 
कि स्वर्ण भण्डार से 
उनका भी कुछ भला हो जायेगा 
स्वर्ण की हिफाज़त के लिए 
सुरक्षा बल की तैनाती होने लगी 
जनता ,मीडिया ,संत , नेता 
सभी 
अपनी बास्तबिक परेशानियों को भूलकर
स्वप्न में मिले स्वर्ण को 
पाने के लिए  मशगूल हो गए 


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

1 comment:

  1. सुंदर रचना के लिये ब्लौग प्रसारण की ओर से शुभकामनाएं...
    आप की ये खूबसूरत रचना आने वाले शनीवार यानी 19/10/2013 को ब्लौग प्रसारण पर भी लिंक की गयी है...

    सूचनार्थ।

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