Monday, January 23, 2017

मैं शेर और साहित्य पीडिया भाग दो


 मैं शेर और साहित्य पीडिया भाग दो



ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल
http://wp.me/p7uU2K-1q1

अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
http://wp.me/p7uU2K-1q1


ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल
http://wp.me/p7uU2K-1q1

क्या बताएं आपको हम अपने दिल की दास्ताँ
जितना दर्द मिलता है ये उतना संभल जाता है ……
http://wp.me/p7uU2K-U1

किसको दोस्त माने हम और किसको गैर कह दें हम
जरुरत पर सभी का जब हुलिया बदल जाता है ….
http://wp.me/p7uU2K-U1

चेहरे की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
तन्हाई के आलम में ये अक्सर बदल जाता है
http://wp.me/p7uU2K-U1

किसी का दर्द पाने की तमन्ना जब कभी उपजे
जीने का नजरिया फिर उसका बदल जाता है ..
http://wp.me/p7uU2K-U1

मिली दौलत ,मिली शोहरत,मिला है मान उसको क्यों
मौका जानकर अपनी जो बात बदल जाता है .
http://wp.me/p7uU2K-U1


क्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है
हमने खुद को पाया है बस खुदगर्जी के घेरे में
http://wp.me/p7uU2K-S2

एक जमी वख्शी थी कुदरत ने हमको यारो लेकिन
हमने सब कुछ बाट दिया मेरे में और तेरे में
http://wp.me/p7uU2K-S2

आज नजर आती मायूसी मानबता के चहेरे पर
अपराधी को शरण मिली है आज पुलिस के डेरे में
http://wp.me/p7uU2K-S2

बीरो की क़ुरबानी का कुछ भी असर नहीं दीखता है
जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में
http://wp.me/p7uU2K-S2

जीवन बदला भाषा बदली सब कुछ अपना बदल गया है
अनजानापन लगता है अब खुद के आज बसेरे में
 http://wp.me/p7uU2K-S2






मदन मोहन सक्सेना

मैं ,शेर और साहित्यपीडिया




 मैं ,शेर और साहित्यपीडिया


महकता है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही
मुहब्बत को निभाने में फिर क्यों सारे झमेले हैं
http://wp.me/p7uU2K-1L5


गज़ब हैं रंग जीबन के गजब किस्से लगा करते
जबानी जब कदम चूमे बचपन छूट जाता है
http://wp.me/p7uU2K-1Bt


हर पल याद रहती है निगाहों में बसी सूरत
तमन्ना अपनी रहती है खुद को भूल जाने की
http://wp.me/p7uU2K-1w7


निगाहों में बसी सूरत फिर उनको क्यों तलाशे है
ना जाने ऐसा क्यों होता और कैसी बेकरारी है
http://wp.me/p7uU2K-1pe

इस कदर अनजान हैं हम आज अपने हाल से
हकीकत में भी ख्वावों का घेरा नजर आता है

ये दीवानगी अपनी नहीं तो और फिर क्या है मदन
हर जगह इक शख्श का मुझे चेहरा नजर आता है

http://wp.me/p7uU2K-1di






मदन  मोहन सक्सेना

Tuesday, January 10, 2017

मम्मी तुमको क्या मालूम

सुबह सुबह अफ़रा तफ़री में फ़ास्ट फ़ूड दे देती माँ तुम
टीचर क्या क्या देती ताने , मम्मी तुमको क्या मालूम

क्या क्या रूप बना कर आती ,मम्मी तुम जब लेने आती
लोग कैसे किस्से लगे सुनाने , मम्मी तुमको क्या मालूम

रोज पापा जाते पैसा पाने , मम्मी तुम घर लगी सजाने
पूरी कोशिश से पढ़ते हम , मम्मी तुमको क्या मालूम

घर मंदिर है ,मालूम तुमको पापा को भी मालूम है जब
झगड़े में क्या बच्चे पाएं , मम्मी तुमको क्या मालूम

क्यों इतना प्यार जताती हो , मुझको कमजोर बनाती हो
दूनियाँ बहुत ही जालिम है , मम्मी तुमको क्या मालूम

मम्मी तुमको क्या मालूम


मदन मोहन सक्सेना

http://sahityapedia.com/%e0%a4%ae%e0%a4%ae%e0%a5%8d%e0%a4%ae%e0%a5%80-%e0%a4%a4%e0%a5%81%e0%a4%ae%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a5%82%e0%a4%ae-70009/

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Thursday, December 29, 2016

किसको आज फुर्सत है किसी की बात सुनने की







किसको आज फुर्सत है किसी की बात सुनने की 
अपने ख्बाबों और ख़यालों  में सभी मशगूल दिखतें हैं

 सबक क्या क्या सिखाता है जीबन का सफ़र यारों
 मुश्किल में बहुत मुश्किल से अपने दोस्त दिखतें हैं

क्यों  सच्ची और दिल की बात ख़बरों में नहीं दिखती 
नहीं लेना हक़ीक़त से  क्यों  मन से आज लिखतें हैं

धर्म देखो कर्म देखो  असर दीखता है पैसों का 
भरोसा हो तो किस पर हो सभी इक जैसे दिखतें हैं

सियासत में न इज्ज़त की ,न मेहनत की  कद्र यारों 
सुहाने स्वप्न और ज़ज्बात यहाँ हर रोज बिकते हैं

दुनियाँ में जिधर देखो हज़ारों रास्ते दीखते 
मंजिल जिनसे मिल जाये वह रास्ते नहीं मिलते 






मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, December 28, 2016

गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ


गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल का ही ग़ज़ल में सन्देश देना चाहता हूँ
ग़ज़ल मरती है नहीं बिश्बास देना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

ग़ज़ल जीवन का चिरंतन प्राण है या समर्पण का निरापरिमाण है
ग़ज़ल पतझड़ है नहीं फूलों भरा मधुमास है
तृप्ती हो मन की यहाँ ऐसी अनोखी प्यास है
ग़ज़ल के मधुमास में साबन मनाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

ग़ज़ल में खुशियाँ भरी हैं ग़ज़ल में आंसू भरे
या कि दामन में संजोएँ स्वर्ण के सिक्के खरे
ग़ज़ल के अस्तित्ब को मिटते कभी देखा नहीं
ग़ज़ल के हैं मोल सिक्कों से कभी होते नहीं
ग़ज़ल के दर्पण में ,ग़ज़लों को दिखाना चाहता हूँ


गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल  दिल की बाढ़ है और मन की पीर है
बेबसी में मन से बहता यह नयन का तीर है
ग़ज़ल है भागीरथी और ग़ज़ल जीवन सारथी
ग़ज़ल है पूजा हमारी ग़ज़ल मेरी आरती
ग़ज़ल से ही स्बांस की सरगम बजाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ



मदन मोहन सक्सेना

Monday, December 26, 2016

दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ




 तुम्हारी याद जब आती तो मिल जाती ख़ुशी हमको
तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या होगा

तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है
मेरे पास तुम होगे तो यादों का फिर क्या होगा

तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहती
दिल में जो बसी सूरत उस सूरत का फिर क्या होगा

अपनी हर ख़ुशी हमको अकेली ही लगा करती
तुम्हार साथ जब होगा नजारा ही नया होगा

दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ
तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा


दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ



मदन  मोहन सक्सेना

Friday, December 23, 2016

आम जनता को क्या मिला




मुझे नहीं पता कि नोटबंदी से
कितना कालाधन आया
कितने सफेदपोश  जेल के अंदर गए
किन्तु
मुझे पता चल गया है
कि
पैसा क्या चीज है
जिसके लिए
रिज़र्व बैंक को धारक को दिया गया अपना बयान
बार बार बदलना पड़ा।
अपने पैसो को पाने के लिये
किसान, गरीब ,मजदूर , बिधार्थी , ब्यापारी , कर्मचारी
सभी को  लाइन में लगना पड़ा।
इस जद्दोजेहद में
कितनो ने अपने जीबन लीला समाप्त कर ली
कितनों ने अपनों को खो दिया
कितनो की शादियाँ टूट गयीं
सरकार को बाहबाही लूटने का मौका मिला
बैंकों के पास खूब पैसा आ गया
कई कम्पनियों पेटयम ,मोबिक्विक ,फ्री चार्ज को अपने पैर पसारने का मौका मिला गया
कालेधन बालों ने नए नए तरीके ईजाद कर लिए अपना धन सफ़ेद करने के लिये
लाख टके का एक सवाल
आम जनता को क्या मिला
सिर्फ इंतज़ार और
मायूसी
हमेशा की तरह


मदन  मोहन सक्सेना





 

Thursday, December 8, 2016

ये सोचकर भ्रम में रहता है



कभी मानब
ये सोचकर भ्रम में रहता है
वह कितना सक्षम  ,समर्थ तथा शक्तिशाली है
जिसने
समुद्र, चाँद ,पर्बतों पर विजय प्राप्त कर ली है
परमाणु के बिषय में
गहन जानकारी प्राप्त कर ली है
भौतिक समृधि की सभी चीजों को प्राप्त कर लिया है
लेकिन शायद
कभी उसने ये विचार भी  किया है
कि वह  बास्तब में कितना
असक्षम , असमर्थ , लाचार  है
अपने माता पिता
जिनका ब्यक्तित्ब
हमारे आचरण ब्यबहार एबम चरित्र का
मूलाधार होता है
उनके चयन करने में
वह  पूरी तरह से असमर्थ होता है
ये मानब के बश में नहीं है
कि अपने माता पिता, परिबार को
अपनी आशानुरूप प्राप्त कर सके
अपना नाम
जो मानब को अक्सर माता पिता से मिलता है
उसकी पसंद नापसंद पर
उसका कोई अधिकार नहीं है
और अपने नाम कि खातिर
ना जानें !सभी क्या क्या करतें हैं
और धर्म
जिसको हम अपना जान लेतें हैं
जिसके सिद्धान्तों , आदर्शों ,परम्पराओं को
मानब मानने के लिए बाध्य है
उसी धरम कि ख़ातिर
ना जानें ? कितनें मंदिर मस्जिद गुरुदारें जलाएं जातें हैं
धर्म का चयन करनें में
किसी मानब कि कुछ भी नहीं चलती है
और ये अपना शरीर
जिसके साथ लगता है ,अपना अटूट सम्बन्ध है
किन्तु उसमें होने बाले
क्रमिक परिबर्तनों को
मानब अपनी आशानुरूप
परबर्तित नहीं कर सकता
ना ही ये शरीर
मानब कि किसी बात को मानने के लिए बाध्य है
मानब मन
जो बर्तमान को छोड़कर
अतीत तथा भबिष्य कि संदिग्ध गलियों में भटकत्ता रहता है
तथा हर पल
अपने को छोड़कर
दूसरों के विषय में ,सोचने में ब्यस्त रहता है
अपनी आँखें
जिनके पास अपनी ओर देखने का वक़्त नहीं है
सिबाय दूसरी ओर देखने के
और इसी में पूरा जीबन ब्यतीत होता है
लेकिन प्रत्येक मानब के मन में
ये भ्रम रहता है कि
मानब कितना
सक्षम  ,समर्थ तथा शक्तिशाली है

मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, December 6, 2016

गज़ल (सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना)

गज़ल (सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना)


जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है
उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं
सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना
देने में ख़ुशी जो है, कोई बिरला सीखता क्यों है
कहने को तो , आँखों से नजर आता सभी को है
अक्सर प्यार में ,मन से मुझे फिर दीखता क्यों है
दिल भी यार पागल है ,ना जाने दीन दुनिया को
दिल से दिल की बातों पर आखिर रीझता क्यों है
आबाजों की महफ़िल में दिल की कौन सुनता है
सही चुपचाप रहता है और झूठा चीखता क्यों है

गज़ल (सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना)

मदन मोहन सक्सेना

Monday, November 28, 2016

देकर दुआएं आज फिर हम पर सितम बो कर गए.


दुनिया  बालों की हम पर जब से इनायत हो गयी
उस रोज से अपनी जख्म खाने की आदत हो गयी

शोहरत  की बुलंदी में ,न खुद से हम हुए वाकिफ़
गुमनामी में अपनेपन की हिफाज़त हो गयी

मर्ज ऐ  इश्क को सबने ,गुनाह जाना ज़माने में
अपनी नज़रों में मुहब्बत क्यों इबादत हो गयी

देकर दुआएं आज फिर हम पर सितम बो कर गए.
अब जिंदगी जीना , अपने लिए क़यामत हो गयी

दुनिया  बालों की हम पर जब से इनायत हो गयी
उस रोज से अपनी जख्म खाने की आदत हो गयी


मदन मोहन सक्सेना