प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत
ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट , अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस ( उपयोगिता , सन्दर्भ और प्रासंगिकता , एक बिबेचना ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित हुयी है ,इससे पहले "जीवन के रंग" , "बिरह के अहसास " और "चंद शेर आपके लिए" और कल की ही बात है " गुनगुनाना चाहता हूँ " को प्रकाशित किया गया था .
बहुत बहुत आभार जागरण जंक्शन टीम। आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
लिंक :
http://madansbarc.jagranjunction.com/2016/03/08/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5/
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस ( उपयोगिता , सन्दर्भ और प्रासंगिकता , एक बिबेचना )
“स्त्रियाँ ही हैं,
जो लोगों की अच्छी सेवा कर सकती हैं,
दूसरों की भरपूर मदद कर सकती हैं।
जिंदगी को अच्छी तरह प्यार कर सकती हैं
और मृत्यु को गरिमा प्रदान कर सकती हैं।“
( एनी बेसंन्ट )
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष, 8 मार्च को मनाया जाता है।विश्व के
विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट
करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के
उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।
अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर यह दिवस सबसे पहले यह २८ फ़रवरी
१९०९ में मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखरी इतवार के दिन मनाया जाने
लगा। १९१० में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन के सम्मेलन में इसे
अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट
देने के अधिकार दिलवाना था क्योंकि, उस समय अधिकतर देशों में महिला को वोट
देने का अधिकार नहीं था।
१९१७ में रूस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल
पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। ज़ार ने सत्ता छोड़ी,
अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिया। उस समय रूस में
जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनो की
तारीखों में कुछ अन्तर है। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक १९१७ की फरवरी का
आखरी इतवार २३ फ़रवरी को था जब की ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन ८
मार्च थी। इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलैंडर
चलता है। इसी लिये ८ मार्च महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स और कल्पना चावला अंतरिक्ष पटल की खास पहचान
हैं। प्रथम महिला रेलगाङी ड्राइवर सुरेखा यादव, जो कि भारत की ही नही वरन
एशिया की भी पहली महिला ड्राइवर हैं।
देश की सुरक्षा सबसे अहम होती है, तो इस क्षेत्र में आखिर महिलाओं की
भागीदारी को कम क्यूं आंका जाए। देश की मिसाइल सुरक्षा की कड़ी में 5000
किलोमीटर की मारक क्षमता वाली अग्नि-5 मिसाइल की जिस महिला ने सफल परीक्षण
कर पूरे विश्व मानचित्र पर भारत का नाम रौशन किया है, वह शख्सियत हैं टेसी
थॉमस। डॉ. टेसी थॉमस को कुछ लोग ‘मिसाइल वूमन’ कहते हैं, तो कई उन्हें
‘अग्नि-पुत्री’ का खिताब देते हैं। पिछले 20 सालों से टेसी थॉमस इस क्षेत्र
में मजबूती से जुड़ी हुई हैं। टेसी थॉमस पहली भारतीय महिला हैं, जो देश की
मिसाइल प्रोजेक्ट को संभाल रही हैं। टेसी थॉमस ने इस कामयाबी को यूं ही
नहीं हासिल किया, बल्कि इसके लिए उन्होंने जीवन में कई उतार-चढ़ाव का सामना
भी करना पड़ा। आमतौर पर रणनीतिक हथियारों और परमाणु क्षमता वाले मिसाइल के
क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व रहा है। इस धारणा को तोड़कर डॉ. टेसी थॉमस
ने सच कर दिखाया कि कुछ उड़ान हौसले के पंखों से भी उड़ी जाती।
डॉ. किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा की प्रथम वरिष्ठ महिला अधिकारी हैं।
उन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए अपनी कार्य-कुशलता का परिचय दिया है। वे
संयुक्त आयुक्त पुलिस प्रशिक्षण तथा दिल्ली पुलिस स्पेशल आयुक्त (खुफिया)
के पद पर कार्य कर चुकी हैं।निःस्वार्थ कर्तव्यपरायणता के लिए उन्हें शौर्य
पुरस्कार मिलने के अलावा उनके अनेक कार्यों को सारी दुनिया में मान्यता
मिली है, जिसके परिणामस्वरूप एशिया का नोबल पुरस्कार कहा जाने वाला रमन
मैगसेसे पुरस्कार से उन्हें नवाजा गया. नशे की रोकथाम के लिए संयुक्त
राष्ट्र द्वारा किया गया ‘सर्ज साटिरोफ मेमोरियल अवार्ड’ इसका ताजा प्रमाण
है।
भारतीय ट्रैक ऍण्ड फ़ील्ड की रानी” माने जानी वाली पी॰ टी॰ उषा भारतीय
खेलकूद में 1979 से हैं। वे भारत के अब तक के सबसे अच्छे खिलाड़ियों में से
हैं। उन्हें “पय्योली एक्स्प्रेस” नामक उपनाम दिया गया था। 1983 में सियोल
में हुए दसवें एशियाई खेलों में दौड़ कूद में, पी॰ टी॰ उषा ने 4 स्वर्ण व 1
रजत पदक जीते। वे जितनी भी दौड़ों में हिस्सा लीं, सबमें नए एशियाई खेल
कीर्तिमान स्थापित किए। 1985 में जकार्ता में हुई एशियाई दौड-कूद
प्रतियोगिता में उन्होंने पाँच स्वर्ण पदक जीते। एक ही अंतर्राष्ट्रीय
प्रतियोगिता में छः स्वर्ण जीतना भी एक कीर्तिमान है। ऊषा ने अब तक 101
अतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं। वे दक्षिण रेलवे में अधिकारी पद पर कार्यरत
हैं। 1985 में उन्हें पद्म श्री व अर्जुन पुरस्कार दिया गया।
मैरी कॉम पांच बार विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता की विजेता रह चुकी हैं।
दो वर्ष के अध्ययन प्रोत्साहन अवकाश के बाद उन्होंने वापसी करके लगातार
चौथी बार विश्व गैर-व्यावसायिक बॉक्सिंग में स्वर्ण जीता। उनकी इस उपलब्धि
से प्रभावित होकर एआइबीए ने उन्हें मॅग्नीफ़िसेन्ट मैरी (प्रतापी मैरी) का
संबोधन दिया। वह 2012 के लंदन ओलम्पिक मे महिला मुक्केबाजी मे भारत की तरफ
से जाने वाली एकमात्र महिला थीं। मैरी कॉम ने सन् 2001 में प्रथम बार नेशनल
वुमन्स बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीती। अब तक वह छह राष्ट्रीय खिताब जीत चुकी
है। बॉक्सिंग में देश का नाम रौशन करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2003 में
उन्हे अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया एवं वर्ष 2006 में उन्हे पद्मश्री
से सम्मानित किया गया। जुलाई 29, 2009 को वे भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान
राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार के लिए (मुक्केबाज विजेंदर कुमार तथा
पहलवान सुशील कुमार के साथ) चुनीं गयीं।सायना नेहवाल, सानिया मिर्जा जैसी
कई महिलाएं खेल जगत की गौरवपूर्ण पहचान हैं। 1984- बछेन्द्री पाल दुनिया की
सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट को फतह करने वाली पहली भारतीय महिला हैं।
महिलाओं के अधिकार के लिये लङने वाली वीर नारी नेन्सी एस्टर, ब्रिटिश संसद
की पहली महिला सासंद बनी। विश्व के राजनीतिक पटल पर आज अनेक देशों के
सर्वोच्च पद पर महिलाओं का वर्चस्व है। श्रीलंका की प्रधानमंत्री श्रीमावो
भंडार नायके विश्व की प्रथम महिला राष्ट्रपति निर्वाचित हुई। विश्वराजनीति
के पटल पर पहली महिला राष्ट्रपति का गौरव फिलीपीन्स की मारिया कोराजोन
एक्यीनो को जाता है। रजीया सुल्तान हो या बेनीजीर भुट्टो या बेगम खालिदा
जिया जैसी कई साहसी मुस्लिम महिलाओं ने भी राजनीति में अपनी एक अलग पहचान
बनाई है। भारत जैसे शक्तिशाली देश की कमान इंदिरा गाँधी द्वारा संचालित की
जा चुकी है। अनेक राज्यों की महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ,जयललिता आज
भी अपने कार्य को सफलता पूर्वक अंजाम दे रहीं हैं। अभी हाल ही में एशिया
की चौथी सबसे बङी अर्थव्वस्था की नेता पार्क ग्यून हेई ने दक्षिण कोरिया की
पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेकर नारी वर्ग के गौरव को और आगे
बढाया है।
साहित्य जगत में भी महिलाओं का अभूतपूर्व योगदान रहा है। हिंदी साहित्य में
ऐसी गंभीर लेखिकाओं की कमी नही है जिन्होने अपनी संवेदनाओं को अभिव्यक्त
करके विस्तृत साहित्य का सृजन किया है। महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी
चौहान, महाश्वेता देवी, आशापूर्णा देवी, मैत्रिय पुष्पा जैसी अनेक महिलाओं
ने असमान्य परिस्थितियों में भी साहित्य जगत को उत्कृष्ट रचनाओं से शुशोभित
किया है।
दृढ़ इच्छाशक्ति एवं शिक्षा ने नारी मन को उच्च आकांक्षाएँ, सपनों के
सप्तरंग एवं अंतर्मन की परतों को खोलने की नई राह दी है। इंद्रा नूई,
चन्द्रा कोचर, नैना लाल किदवई, किरण मजुमदार, मजुमदार शॉ, स्वाति पिरामल,
चित्रा रामकृष्णा,जैसी अनेक महिलाएं आज वाणिज्य जगत में प्रतिष्ठित कंपनियो
की सीईओ बनकर बहुत ही सफलता पूर्वक अपने कार्य को अंजाम दे रही हैं.
इन सबके बाबजूद लाख टके का सबल फिर से मन में गूंजता है कि
फिर क्यों
आधी आबादी अभी भी अपने अधिकारों से बंचित है
महिलाओँ के बिरुद्ध अपराध कब कम होंगें
महिला पुरुष का लिंग अनुपात कब बराबरी पर आएगा
अपने घर की महिलाओँ और बाहर की महिलाओँ के प्रति सोच कब एक सी होगी
ये प्रश्न कब तक अनुतर्रित रहेंगें
या फिर हम सब (महिला, पुरुष , राजनेता , समाजसेबी , .. अन्य )
जिम्मेदारी एक दूसरे पर डालकर
८ मार्च को ऐसे ही औपचारिकता पूरी करते रहेंगें।
मदन मोहन सक्सेना