आकर के यूँ चुपके से, मेरे दिल में जगह पाना
दुनियाँ में तो अक्सर ही ,संभल कर लोग गिर जाते
मगर उनकी ये आदत है कि गिरकर भी सभल जाना
आकर पास मेरे फिर धीरे से यूँ मुस्काना
पाकर पास मुझको फिर धीरे धीरे शरमाना
देखा तो मिली नजरें फिर नज़रों का झुका जाना
ये उनकी ही अदाए हैं ये मुश्किल है कहीं पाना
जो वातें रहती दिल में है ,जुबां पर भी नहीं लाना
वो लम्बी झुल्फ रेशम सी और नागिन सा लहर खाना
वो नीली झील सी आँखों में दुनियाँ का नजर आना
बताओ तुम कि दे दूँ क्या ,अपनी नजरो को मैं नज़राना ……।
काब्य प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-11-2015) को "काश हम भी सम्मान लौटा पाते" (चर्चा अंक 2149) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना ........... मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन की प्रतीक्षा |
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