Wednesday, July 10, 2013

स्वार्थ



















स्वार्थ



प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है प्यार से

दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल से

बँट  गयी सारी जमी फिर बँट गया ये आसमान
अब खुदा बँटने  लगा है इस तरह की तूल से

सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल से

आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

चार पल की जिंदगी में चंद  सासों  का सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

6 comments:

  1. आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
    आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

    चार पल की जिंदगी में चाँद सांसो का सफ़र
    मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से.......क्‍या खूब, बहुत सुन्‍दर सार्थक पंक्तियां।

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  2. बहुत ही सार्थक और सुन्दर प्रस्तुती,सादर ।

    आपकी यह रचना आज गुरुवार (11-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  3. सुन्दर भाव !

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  4. सुन्दर भाव !

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  5. ॐ शान्ति .

    आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
    आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से
    बेहतरीन है .


    चार पल की जिंदगी में चाँद सांसो का सफ़र
    मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से

    चंद साँसों का सफर चार दिन की ज़िन्दगी में बढ़िया प्रयोग।

    चाँद के स्थान पर चंद कर लें .(chnd)

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  6. बहुत सुंदर, आभार

    यहाँ भी पधारे ,
    राज चौहान
    क्योंकि सपना है अभी भी
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in

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