नज़राना
अपना दिल कभी था जो, हुआ है आज बेगाना
आकर के यूँ चुपके से, मेरे दिल में जगह पाना
दुनियां में तो अक्सर ही ,संभल कर लोग गिर जाते
मगर उनकी ये आदत है की गिरकर भी सभल जाना
आकर पास मेरे फिर धीरे से यूँ मुस्काना
पाकर पास मुझको फिर धीरे धीरे शरमाना
देखा तो मिली नजरें फिर नजरो का झुका जाना
ये उनकी ही अदाए हैं मुश्किल है कहीं पाना
जो बाते रहती दिल में है ,जुबां पर भी नहीं लाना
बो लम्बी झुल्फ रेशम सी और नागिन सा लहर खाना
बो नीली झील सी आँखों में दुनियां का नजर आना
बताओ तुम कि दे दूँ क्या ,अपनी नजरो को मैं नज़राना ......
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
मगर उनकी ये आदत है की गिरकर भी सभल जाना-
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आदरणीय मदन जी-
शुभकामनायें ||
Thanks Ravi sir.
Deleteप्रेम का आपका खयाल और फलस्वरुप ऐसे भाव, सुन्दर।
ReplyDeleteThanks Vikas Badola ji.
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसुन्दर....
:-)
आप का बहुत शुक्रिया होंसला अफजाई के लिए.
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