ख्बाबों में तो अरमानों के जाने कितने मेले हैं
भुला पायेंगें कैसे हम ,जिनके प्यार के खातिर
सूरज चाँद की माफिक हम दुनिया में अकेले हैं
महकता है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही
मुहब्बत को निभाने में फिर क्यों सारे झमेले हैं
ये उसकी बदनसीबी गर ,नहीं तो और फिर क्या है
जिसने पाया है बहुत थोड़ा ज्यादा गम ही झेले हैं
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
उम्दा अहसास हैं।
ReplyDeleteये उसकी बदनसीबी गर ,नहीं तो और फिर क्या है
ReplyDeleteजिसने पाया है बहुत थोड़ा ज्यादा गम ही झेले हैं
...बहुत खूब!
गहन भाव किये उजागर ,गम बांटने के लिए |
ReplyDelete"ये उसकी बदनसीबी नहीं तो और क्या है
------ज्यादा गम ही झेले हैं "
उम्दा पंक्ति
आशा
ये उसकी बदनसीबी गर ,नहीं तो और फिर क्या है
ReplyDeleteजिसने पाया है बहुत थोड़ा ज्यादा गम ही झेले हैं
उम्दा अहसास हैं.
New post : दो शहीद
बहुत खूब...
ReplyDeleteवाह .. क्या बात है जी ..
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ReplyDeleteमहकता है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही
मुहब्बत को निभाने में फिर क्यों सारे झमेले हैं
वाह , बहुत खूब ...
सादर !