Thursday, December 13, 2012

मेरे मालिक मेरे मौला




 
 
 
 
 
 
मेरे मालिक मेरे मौला ये क्या दुनिया बनाई है
किसी के पास सब कुछ है मगर बह खा नहीं पाये 

तेरी दुनियां में कुछ बंदें, करते काम क्यों गंदें
कि किसी के पास कुछ भी ना, भूखे पेट सो जाये 

जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है
तेरी बातोँ को तू जाने, समझ अपनी ना कुछ आये 
  ना रिश्तों की महक दिखती ना बातोँ में ही दम दीखता
क्यों मायूसी ही मायूसी जिधर देखो नज़र आये 

तुझे पाने की कोशिश में कहाँ कहाँ मैं नहीं घूमा
जब रोता बच्चा मुस्कराता है तू ही तू नजर आये 

गुजारिश अपनी सबसे है कि जीयो और जीने दो
ये जीवन कुछ पलों का है पता कब मौत आ जाये

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

6 comments:

  1. Replies
    1. अनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.

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  2. तुझे पाने की कोशिश में कहां कहां मैं नहीं घूमा
    जब रोता बच्चा मुस्कराता है तू ही तू नजर आये …

    वाह ! वाऽह !
    मदन मोहन सक्सेना जी


    अच्छी रचना !
    शुभकामनाओं सहित…

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    1. अनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.

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  3. गुजारिश अपनी सबसे है कि जीयो और जीने दो
    ये जीवन कुछ पलों का है पता कब मौत आ जाये
    bahut sundar ...

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    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रया हेतु शुभकामनाओं सहित हार्दिक साभार धन्यबाद ……

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