Thursday, July 19, 2012

मुक्तक




बो जानेमन जो मेरे है बो मेरे मन ओ ना जाने
अदाओं की तो उनके हम हो चुके  है दीवाने 

बो जानेमन जो मेरे है बह दिल में यूँ समा जा
इनायत मेरे रब  करना   न उनसे  दूर हो पायें




मुक्तक प्रस्तुति: 
मदन मोहन सक्सेना 

ग़ज़ल

 

 

 

  

आगमन नए दौर का आप जिसको कह रहे
बो सेक्स की रंगीनियों की पैर में जंजीर है

सुन चुके है बहुत किस्से वीरता पुरुषार्थ के
हर रोज फिर किसी द्रौपदी का खिंच रहा क्यों चीर है

खून से खेली है होली आज के इस दौर में
कह रहे सब आज ये नहीं मिल रहा अब नीर है

मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी
ये ब्यथा अपनी नहीं हर एक की ये पीर है

आज के हालत में किस किस से हम बचकर चले
प्रशं लगता है सरल पर ये बहुत गंभीर है

चाँद रुपयों की बदौलत बेचकर हर चीज को
आज हम आबाज देते की बेचना जमीर है 



ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

 

Monday, July 9, 2012

मुक्तक







इनायत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता
खुशियाँ  रहती दामन में और जीवन में अमन होता 

मर्जी बिन खुदा यारों तो जर्रा भी नहीं हिलता 
अगर बो रूठ जाए तो मुयस्सर न कफ़न होता 

मुक्तक प्रस्तुति: 
मदन मोहन सक्सेना 

Friday, June 1, 2012

गीत




अपना दिल कभी था जो, हुआ है आज बेगाना
आकर के यूँ चुपके से, मेरे दिल में जगह पाना 
दुनियां में तो अक्सर ही ,सभल कर लोग गिर जाते 
मगर उनकी ये आदत है की  गिरकर भी सभल जाना

आकर पास मेरे फिर धीरे से यूँ मुस्काना
पाकर पास मुझको फिर धीरे धीरे शरमाना
देखा तो मिली नजरें फिर नजरो का झुका जाना 
ये उनकी ही अदाए  है  मुश्किल है कहीं पाना

जो बाते रहती दिल में है ,जुबां पर भी नहीं लाना
बो लम्बी झुल्फ रेशम सी और नागिन सा लहर खाना
बो नीली झील सी आँखों में दुनियां का  नजर आना
बताओ तुम दे दू क्या ,अपनी नजरो को मैं नज़राना




काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना
   

Wednesday, May 23, 2012

मुक्तक






रोता  नहीं है कोई भी किसी और  के लिए
सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं

प्यार की दौलत को कभी छोटा न समझना तुम
होते है बदनसीब ,जो पाकर इसे खोते हैं  


मुक्तक प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना