Friday, May 15, 2015
Saturday, April 25, 2015
मेरा मन सोचता है कि आखिर क्यों ?
आज जब आया भूकंप
नेपाल में पुरे उत्तर प्रदेश में
अचानक प्राकतिक दुर्घटना घटी
उसी पल जमीन फटी
सजे सम्भरें सुसज्जित गृह खँडहर में बदल गये
शमशान गृह में ही सारे शहर ही बदल गये
मेरा मन सोचता है कि
ये चुपचाप सा लेता हुआ युबा कौन है
क्या सोचता है और क्यों मौन है
ये शायद अपनें बिचारों में खोया है
नहीं नहीं लगता है ,ये सोया है
इसे लगता नौकरी कि तलाश है
अपनी योग्यता का इसे बखूबी एहसास है
सोचता था कि कल सुबह जायेंगें
योग्यता के बल पर उपयुक्त पद पा जायेंगें
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही जल गयीं
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी
मेरा मन सोचता है कि
ये बृद्ध पुरुष किन विचारों में खोया है
आँखें खुली हैं किन्तु लगता है सोया है
इसने सोचा था कि
कल जब अपनी बेटी का ब्याह होगा
बर्षों से संजोया सपना तब पूरा होगा
उसे अपने ही घर से
अपने पति के साथ जाना होगा
अपने बलबूते पर घर को स्वर्ग जैसा बनाना होगा
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही जल गयीं
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी
मेरा मन सोचता है कि
ये बालक तो अब बिलकुल मौन है
इस बच्चे का संरछक न जाने कौन है
लगता है कि
मा ने बेटे को प्यार से बताया है
बेटे को ये एतबार भी दिलाया है
कल जब सुबह होगी
सूरज दिखेगा और अँधेरा मिटेंगा
तब हम बाहर जायेंगें
और तुम्हारे लिए
खूब सारा दूध ले आयेंगें
शायद इसी एहसास में
दूध मिलने कि आस में
चुपचाप सा मुहँ खोले सोया है
शांत है और अब तलक न रोया है
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही जल गयीं
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी
मेरा मन सोचता है कि
ये नबयौब्ना चुपचाप क्यों सोती है
न मुस्कराती है और न रोती है
सोचा था कि ,कल जब पिया आयेंगें
बहुत दिनों के बाद मिल पायेंगें
जी भर के उनसे बातें करेंगें
प्यार का एहसास साथ साथ करेंगें
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही जल गयीं
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी
मेरा मन सोचता है कि
आखिर क्यों ?
युबक ,बृद्ध पुरुष ,बालक,नबयौबना पर
अचानक ये कौन सा कहर बरपा है
किन्तु इन सब बातों का
किसी पर भी, कुछ नहीं हो रहा असर
बही रेडियो ,टीवी का संगीतमय शोर
घृणा ,लालच स्वार्थ की आजमाइश और जोर
मलबा ,टूटे हुयें घर ,स्त्री पुरुषों की धेर सारी लाशें
बिखरतें हुयें सपनें और सिसकती हुईं आसें
इन सबको देखने और सुनने के बाद
भोगियों को दिए गये बही खोखले बादे
अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिये
कार्य करने के इरादे
बही नेताओं के जमघतो का मंजर
आश्बास्नों में छिपा हुआ घातक सा खंजर
मेरा मन सोचता है कि
आखिर ऐसा क्यों हैं कि
क्या इसका कोई निदान नहीं है
आपसी बैमन्सय नफरत स्वार्थपरता को देखकर
एक बार फिर अपनी धरती माँ कापें
इससे पहले ही हम सब
आइए
हम सब आपस में साथ हो
भाईचारे प्यार कि आपस में बात हो
ताकि
युबक ,बृद्ध पुरुष ,बालक,नबयौबना
सभी के सपनें और पुरे अरमान हों
सारी धरती पर फिर से रोशन जहान हो .......
प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेनाWednesday, April 22, 2015
चार पल
चार पल
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल
से
दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती
के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल
से
बँट गयी सारी जमी फिर बँट गया ये
आसमान
अब खुदा बँटने लगा है इस तरह की तूल
से
सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर
में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल
से
आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से
चार पल की जिंदगी में चंद साँसों का
सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से
प्रस्तुति:
Thursday, April 9, 2015
प्यार ही प्यार
प्यार ही प्यार
प्यार रामा में है प्यारा अल्लाह लगे ,प्यार के सूर तुलसी ने किस्से लिखे
प्यार बिन जीना दुनिया में बेकार है ,प्यार बिन सूना सारा ये संसार है
प्यार पाने को दुनिया में तरसे सभी, प्यार पाकर के हर्षित हुए हैं सभी
प्यार से मिट गए सारे शिकबे गले ,प्यारी बातों पर हमको ऐतबार है
प्यार के गीत जब गुनगुनाओगे तुम ,उस पल खार से प्यार पाओगे तुम
प्यार दौलत से मिलता नहीं है कभी ,प्यार पर हर किसी का अधिकार है
प्यार से अपना जीवन सभारों जरा ,प्यार से रहकर इक पल गुजारो जरा
प्यार से मंजिल पाना है मुश्किल नहीं , इन बातों से बिलकुल न इंकार है
प्यार के किस्से हमको निराले लगे ,बोलने के समय मुहँ में ताले लगे
हाल दिल का बताने हम जब मिले ,उस समय को हुयें हम लाचार हैं
प्यार से प्यारे मेरे जो दिलदार है ,जिनके दम से हँसीं मेरा संसार है
उनकी नजरो से नजरें जब जब मिलीं,उस पल को हुए उनके दीदार हैं
प्यार जीवन में खुशियाँ लुटाता रहा ,भेद आपस के हर पल मिटाता रहा
प्यार जीवन की सुन्दर कहानी सी है ,उस कहानी का मदन एक किरदार है
मदन मोहन सक्सेना
प्यार रामा में है प्यारा अल्लाह लगे ,प्यार के सूर तुलसी ने किस्से लिखे
प्यार बिन जीना दुनिया में बेकार है ,प्यार बिन सूना सारा ये संसार है
प्यार पाने को दुनिया में तरसे सभी, प्यार पाकर के हर्षित हुए हैं सभी
प्यार से मिट गए सारे शिकबे गले ,प्यारी बातों पर हमको ऐतबार है
प्यार के गीत जब गुनगुनाओगे तुम ,उस पल खार से प्यार पाओगे तुम
प्यार दौलत से मिलता नहीं है कभी ,प्यार पर हर किसी का अधिकार है
प्यार से अपना जीवन सभारों जरा ,प्यार से रहकर इक पल गुजारो जरा
प्यार से मंजिल पाना है मुश्किल नहीं , इन बातों से बिलकुल न इंकार है
प्यार के किस्से हमको निराले लगे ,बोलने के समय मुहँ में ताले लगे
हाल दिल का बताने हम जब मिले ,उस समय को हुयें हम लाचार हैं
प्यार से प्यारे मेरे जो दिलदार है ,जिनके दम से हँसीं मेरा संसार है
उनकी नजरो से नजरें जब जब मिलीं,उस पल को हुए उनके दीदार हैं
प्यार जीवन में खुशियाँ लुटाता रहा ,भेद आपस के हर पल मिटाता रहा
प्यार जीवन की सुन्दर कहानी सी है ,उस कहानी का मदन एक किरदार है
मदन मोहन सक्सेना
Wednesday, March 11, 2015
ग़ज़ल (ये कैसा परिवार )
ग़ज़ल (ये कैसा परिवार )
मेरे जिस टुकड़े को दो पल की दूरी बहुत सताती थी
जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार हुआ .
रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या ब्यबहार हुआ ..
दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से
धर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्यापार हुआ …
मेरे प्यारे गुलशन को न जानें किसकी नजर लगी है
युबा को अब काम नहीं है बचपन अब बीमार हुआ ….
जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रेंड हो गए
शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ …..
ताई ताऊ , दादा दादी ,मौसा मौसी दूर हुएँ अब
हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ.
ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
मेरे जिस टुकड़े को दो पल की दूरी बहुत सताती थी
जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार हुआ .
रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या ब्यबहार हुआ ..
दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से
धर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्यापार हुआ …
मेरे प्यारे गुलशन को न जानें किसकी नजर लगी है
युबा को अब काम नहीं है बचपन अब बीमार हुआ ….
जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रेंड हो गए
शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ …..
ताई ताऊ , दादा दादी ,मौसा मौसी दूर हुएँ अब
हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ.
ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
Friday, February 13, 2015
एक पुरानी कहानी
प्रेम कभी अकेला नहीं जाता. प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं.
एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा. वह उन्हें जानती नहीं थी. औरत ने कहा – कृपया भीतर आइये और भोजन ...करिये.
संत बोले – क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?
औरत ने कहा – नहीं, वे अभी बाहर गए हैं.
संत बोले – हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों.
शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया.
औरत के पति ने कहा – जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ.
औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा.
संत बोले – हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते.
पर क्यों? – औरत ने पूछा.
उनमें से एक संत ने कहा – मेरा नाम धन है – फिर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं. हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है. आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है.
औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया. उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला – यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए. हमारा घर खुशियों से भर जाएगा.
लेकिन उसकी पत्नी ने कहा – मुझे लगता है कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए.
उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी. वह उनके पास आई और बोली – मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए. प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं है.
तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए – उसके माता-पिता ने कहा.
औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में प्रवेश कर भोजन ग्रहण करें.
प्रेम घर की ओर बढ़ चले. बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे. औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था. आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?
उनमें से एक ने कहा – यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता. आपने प्रेम को आमंत्रित किया है. प्रेम कभी अकेला नहीं जाता. प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं.
Tuesday, January 13, 2015
क्यों हर कोई परेशां है
क्यों हर कोई परेशां है
दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है
ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है
अपनों संग समय गुजरे इससे बेहतर क्या होगा
कोई तन्हा रहना नहीं चाहें मजबूरी बनाती है
किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है
बिना मेहनत के मंजिल कब किसके हाथ आती है
क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से
दशा कैसी भी अपनी हो किसको रास आती है
दिल की बात दिल में ही दफ़न कर लो तो अच्छा है
पत्थर दिल ज़माने में कहीं ये बात भाती है
भरोसा खुद पर करके जो समय की नब्ज़ को जानें
“मदन ” हताशा और नाकामी उनसे दूर जाती है
मदन मोहन सक्सेना
दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है
ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है
अपनों संग समय गुजरे इससे बेहतर क्या होगा
कोई तन्हा रहना नहीं चाहें मजबूरी बनाती है
किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है
बिना मेहनत के मंजिल कब किसके हाथ आती है
क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से
दशा कैसी भी अपनी हो किसको रास आती है
दिल की बात दिल में ही दफ़न कर लो तो अच्छा है
पत्थर दिल ज़माने में कहीं ये बात भाती है
भरोसा खुद पर करके जो समय की नब्ज़ को जानें
“मदन ” हताशा और नाकामी उनसे दूर जाती है
मदन मोहन सक्सेना
Monday, December 1, 2014
कल शाम एक घटना टीवी पर देखी
कल शाम एक घटना टीवी पर देखी
मूक बधिर बस यात्री
अपने आसपास घटित घटना से बेपरबाह
हरियाणा रोडवेज के ड्राइवर और कंडक्टर
अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए
लाचार सिस्टम की खामियों का फायदा उठाते हुए
तीन नौजबान
और इन सबसे बहादुरी से अपना बचाव करती
और प्रतिकूल जबाब देती हुयी
दो कॉलेज से आती देश की दो बहादुर बेटियां
सलाम उनके जज्बे को
और लानत सोये हुए समाज और प्रशासन और उसकी ब्यबस्था को
मदन मोहन सक्सेना
मूक बधिर बस यात्री
अपने आसपास घटित घटना से बेपरबाह
हरियाणा रोडवेज के ड्राइवर और कंडक्टर
अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए
लाचार सिस्टम की खामियों का फायदा उठाते हुए
तीन नौजबान
और इन सबसे बहादुरी से अपना बचाव करती
और प्रतिकूल जबाब देती हुयी
दो कॉलेज से आती देश की दो बहादुर बेटियां
सलाम उनके जज्बे को
और लानत सोये हुए समाज और प्रशासन और उसकी ब्यबस्था को
मदन मोहन सक्सेना
Tuesday, November 25, 2014
पाने की लिये ख़्वाहिश
पाने की लिये ख़्वाहिश जब बाज़ार जाता हूँ
लुटने का अजब एहसास दिल मायूस कर देता
मदन मोहन सक्सेना
Thursday, November 21, 2013
कलाम
मित्रों कभी मैनें एक शायर का कलाम पढ़ा था उससे प्रेरित होकर एक शेर लिखा है आपके विचारों कि प्रतीक्षा रहेगी।
अँधेरा भी भला है मैं उस कि कद्र करता हूँ
शबे महताब में अक्सर हुयीं है चोरियां मेरी (अज्ञात)
अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल (मदन मोहन सक्सेना)
अँधेरा भी भला है मैं उस कि कद्र करता हूँ
शबे महताब में अक्सर हुयीं है चोरियां मेरी (अज्ञात)
अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल (मदन मोहन सक्सेना)
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