तू दूर क्यों है हमसे इतना जरा पता दे
तेरे प्यार के ही खातिर ,दुनियाँ बसायी मैनें
तेरे प्यार को ही पाकर महफ़िल सजाई मैनें
जितने भी गम थे मेरे उनको मैं भूलता था
मेरी दिलरुबा मेरे दिलबर तुमको ही पूजता था
मंजूर क्या खुदा को ये जान मैं न पाता
जो जान से है प्यारा वह दूर होता जाता
मेरे दिल की बस्ती सुनी तू अब तो दिल में आ जा
तेरी चाहत में जीयें हम तू छोड़कर अब न जा
सूरज से है तू सुन्दर चन्दा से दिखती प्यारी
दुनियाँ में जितने दीखते उन सव में तू है न्यारी
तुम से दूर रहकर दिलवर जीते जी मर रहे हैं
क्या खता है मेरी ये सोच डर रहे हैं
दुनियाँ है मेरी सूनी दिल में भी हैं अँधेरा
जो कुछ भी कल था अपना वह अब रहा न मेरा
मेरे हमनशीं मेरे दिलबर अपने प्यार का पता दे
तू दूर क्यों है हमसे इतना जरा पता दे
काब्य प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना