Monday, October 19, 2015

आंठबे दिन मां दुर्गाजी की आठवीं शक्ति महागौरी की आराधना

आंठबे दिन मां दुर्गाजी की आठवीं शक्ति महागौरी की आराधना
तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने  बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में

तुम दीन भगिनी दुःख हर्ता हो ,तुम  जग की पालनकर्ता हो  
 इस मुर्ख खल और कामी का उद्धार तुम्हारे हाथों में


नब रात्रि में भक्त लोग माँ दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा अर्चना करके माँ का आश्रिबाद  प्राप्त करतें है।

मां दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। इनका वर्ण पूर्णत: गौर है।
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा।।
इस गौरता की उपमा शंख, चन्द्र और कुन्द के फूल से दी गयी है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गयी है। 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी'। इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। इनकी चार भुजाएं है। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय-मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बायें हाथ में डमरू और नीचे के बायें हाथ में वर-मुद्रा है। इनकी मुद्रा अत्यन्त शान्त है।
दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्य: फलदायिनी है। मां महागौरी का ध्यान स्मरण, पूजन-आराधन भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए।

Sunday, October 18, 2015

नवरात्र के सातवें दिन आदिशक्ति मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की उपासना

नवरात्र के सातवें दिन आदिशक्ति मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की उपासना 
 
तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने  बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में

तुम दीन भगिनी दुःख हर्ता हो ,तुम  जग की पालनकर्ता हो  
 इस मुर्ख खल और कामी का उद्धार तुम्हारे हाथों में

नब रात्रि में भक्त लोग माँ दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा अर्चना करके माँ का आश्रिबाद  प्राप्त करतें है।

नवरात्र के सातवें दिन आदिशक्ति मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की उपासना की जाती है.  
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।
मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं. इसी कारण इनका एक नाम 'शुभंकरी' भी है.दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की आराधना का विधान है. इस दिन साधक का मन 'सहस्रर' चक्र में स्थित रहता है. उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है.मां कालरात्रि के शरीर का रंग घने अंधकार के समान पूरी तरह काला है. सिर के बाल बिखरे हुए और गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है.
मां के तीनों नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं. इनसे बिजली के समान चमकीली किरणें निकलती रहती हैं. नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं. इनका वाहन गर्दभ है.चार भुजाओं वाली मां के ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ से सभी को वर प्रदान करती हैं. दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है. बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है.मां कालरात्रि की पूजा करने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में सातवें दिन इसका जाप करना चाहिए.

Saturday, October 17, 2015

छठवें दिन कात्यायनी स्वरूप की आराधना


 
तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने  बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में

तुम दीन भगिनी दुःख हर्ता हो ,तुम  जग की पालनकर्ता हो  
 इस मुर्ख खल और कामी का उद्धार तुम्हारे हाथों में


नब रात्रि में भक्त लोग माँ दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा अर्चना करके माँ का आश्रिबाद  प्राप्त करतें है।

छठवें दिन  कात्यायनी स्वरूप की आराधना
मां दुर्गा के छठवें स्वरूप का नाम कात्यायनी है।
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवद्यातिनी।।
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

प्रसिद्ध महर्षि कत के पुत्र ऋषि कात्य के गोत्र में महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। उन्होंने भगवती पराम्बा की घोर उपासना की और उनसे अपने घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने का आग्रह किया। कहते हैं, महिषासुर का उत्पात बने पर ब्रहृा, विष्णु, महेश तीनों के तेज के अंश से देवी कात्यायनी महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थीं।

मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। ये ब्रजमण्डल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएं हैं। इनका दाहिना ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है तथा नीचे वाला वर मुद्रा में है। बायें ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं।

इनका वाहन सिंह है। इनकी पूजा के लिए साधक को मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित करना चाहिए।

Friday, October 16, 2015

खुदा जैसा ही वो होगा






ना जानें कितनी यादों के तोफ्हे हमको दे डाले 
खुदा  जैसा ही वो होगा जो देके भूल जाता है 

मदन मोहन सक्सेना

पाँचबे दिन माँ स्कन्ध माता की आरधना

पाँचबे दिन माँ स्कन्ध माता की आरधना

तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने  बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में

तुम दीन भगिनी दुःख हर्ता हो ,तुम  जग की पालनकर्ता हो  इस मुर्ख खल और कामी का उद्धार तुम्हारे हाथों में


नब रात्रि में भक्त लोग माँ दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा अर्चना करके माँ का आश्रिबाद  प्राप्त करतें है।

मां दुर्गाजी के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है।
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
ये भगवान् स्कन्द 'कुमार कात्र्तिकेय' की माता  है। इन्हीं भगवान् स्कन्द की माता होने के कारण मां दुर्गा जी के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना नवरात्र-पूजा के पांचवें दिन की जाती है। इस दिन  साधक का मन 'विशुद्ध' चक्र में अवस्थित होता है।
स्कन्दमातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान् स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं और दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी हुई है उसमें कमल-पुष्प है। बायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा वर मुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल-पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णत: शुभ्र है।
ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण से इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है। मां स्कन्दमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शान्ति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वयमेव सुलभ हो जाता है

Thursday, October 15, 2015

चौथे दिन मां दुर्गाजी के चौथे स्वरूप कूष्माण्डा की आरधना


तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने  बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में

तुम दीन भगिनी दुःख हर्ता हो ,तुम  जग की पालनकर्ता हो 
इस मुर्ख खल और कामी का उद्धार तुम्हारे हाथों में


नब रात्रि में भक्त लोग माँ दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा अर्चना करके माँ का आश्रिबाद  प्राप्त करतें है।






मां दुर्गाजी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है।
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।

अपनी मन्द , हलकी हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रहृाण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है।

जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अन्धकार-ही-अन्धकार परिव्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने 'ईषत्' हास्य से ब्रहृाण्ड की रचना की थी। अत: यही सृष्टि-आदि की स्वरूपा, आदि शक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमण्डल के भीतर के लोक में है। इनकी आठ भुजाएं हैं। अत: ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।

नवरात्र पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में अवस्थित होता है। अत: इस दिन उसे अत्यन्त पवित्र और अचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।

Wednesday, October 14, 2015

तीसरे दिन माँ चन्द्रघण्टा की आराधना


तीसरे दिन माँ  चन्द्रघण्टा की आराधना
तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने  बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में




मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चन्द्रघण्टाहै.
 
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैयरुता.
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता..

 
मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चन्द्रघण्टाहै. नवरात्र उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है. इनका यह स्वरूप परम शान्तिदायक और कल्याणकारी है. इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है, इसी कारण से इन्हें चन्द्रघण्टा देवी कहा जाता है.
इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है. इनके दस हाथ हैं. इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं. इनका वाहन सिंह है.
नवरात्र की दुर्गा उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है. इस दिन साधक का मन मणिपूरचक्र में प्रविष्ट होता है. मां चन्द्रघण्टा की कृपा से उसे अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं. मां चन्द्रघण्टा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएं विनष्ट हो जाती हैं. इनकी आराधना सद्य: फलदायी हैं. 
हमें निरन्तर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखते हुए साधना की ओर अग्रसर होने का प्रयत्न करना चाहिए. उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिए परमकल्याणकारी और सद्गति को देने वाला है.

Tuesday, October 13, 2015

दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी स्वरूप की आराधना



 दूसरे दिन   ब्रह्मचारिणी स्वरूप की आराधना 
तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने  बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में
मां दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है.
दधानां करपद्माभ्यामक्ष मालाकमण्डलू.
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा..
यहां ब्रह्मशब्द का अर्थ तपस्या है. ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी-तप का आचरण करने वाली. कहा भी है-वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म-वेद, तत्व और तप ब्रह्मशब्द के अर्थ हैं. ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है. इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डल रहता है.
अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री-रूप में उत्पन्न हुई थीं तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यन्त कठिन तपस्या की थी. इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया.
मां दुर्गा जी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फल देने वाला है. इसकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है. दुर्गापूजन के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है. इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठानचक्र में स्थित होता है. इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है.

Monday, October 12, 2015

पहले दिन मां शैलपुत्री की आराधना




तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने  बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में


नब रात्रि में भक्त लोग माँ दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा अर्चना करके माँ का आश्रिबाद  प्राप्त करतें है।


पहले दिन मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है।

वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्।।

मां दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। माता शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में सती के नाम से प्रजापति दक्ष के यहां उत्पन्न हुई थीं और भगवान शंकर से उनका विवाह हुआ था।
मां शैलपुत्री वृषभ पर सवार हैं। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं। पार्वती एवं हैमवती भी इन्हीं के नाम है। मां शैलपुत्री दुर्गा का महत्व एवं शक्तियां अनंत हैं। नवरात्र पर्व पर प्रथम दिवस इनका पूजन होता है। इस दिन साधक अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करके साधना प्रारम्भ करते हैं। इससे मन निश्छल होता है और काम-क्रोध आदि शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।


मदन मोहन सक्सेना

Monday, October 5, 2015

मेरी रचना मदुराक्षर पत्रिका में



प्रिय मित्रो मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी रचना मदुराक्षर पत्रिका मेंशामिल की गयी है।  आप की प्रतिक्रिया का स्वागत है. 

हमको कुछ नहीं मालूम

देखा जब नहीं उनको और हमने गीत नहीं गाया
जमाना हमसे ये बोला की बसंत माह क्यों नहीं आया

बसंत माह गुम हुआ कैसे ,क्या तुमको कुछ चला मालूम
कहा हमने ज़माने से की हमको कुछ नहीं मालूम

पाकर के जिसे दिल में ,हुए हम खुद से बेगाने
उनका पास न आना ,ये हमसे तुम जरा पुछो

बसेरा जिनकी सूरत का हमेशा आँख में रहता
उनका न नजर आना, ये हमसे तुम जरा पूछो

जीवितं है तो जीने का मजा सब लोग ले सकते
जीवितं रहके, मरने का मजा हमसे जरा पूछो

रोशन है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही
अँधेरा दिन में दिख जाना ,ये हमसे तुम जरा पूछो

खुदा की बंदगी करके अपनी मन्नत पूरी सब करते
इबादत में सजा पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो

तमन्ना सबकी रहती है, की जन्नत उनको मिल जाए
जन्नत रस ना आना ये हमसे तुम जरा पूछो

सांसों के जनाजें को, तो सबने जिंदगी जाना
दो पल की जिंदगी पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो

मदन मोहन सक्सेना