तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में
तुम दीन भगिनी दुःख हर्ता हो ,तुम जग की पालनकर्ता हो
इस मुर्ख खल और कामी का उद्धार तुम्हारे हाथों में
नब रात्रि में भक्त लोग माँ दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा अर्चना करके माँ का आश्रिबाद प्राप्त करतें है।
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा
शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवद्यातिनी।।
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
प्रसिद्ध महर्षि कत के पुत्र ऋषि कात्य के गोत्र में महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। उन्होंने भगवती पराम्बा की घोर उपासना की और उनसे अपने घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने का आग्रह किया। कहते हैं, महिषासुर का उत्पात बने पर ब्रहृा, विष्णु, महेश तीनों के तेज के अंश से देवी कात्यायनी महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थीं।
मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। ये ब्रजमण्डल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएं हैं। इनका दाहिना ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है तथा नीचे वाला वर मुद्रा में है। बायें ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं।
इनका वाहन सिंह है। इनकी पूजा के लिए साधक को मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित करना चाहिए।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवद्यातिनी।।
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
प्रसिद्ध महर्षि कत के पुत्र ऋषि कात्य के गोत्र में महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। उन्होंने भगवती पराम्बा की घोर उपासना की और उनसे अपने घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने का आग्रह किया। कहते हैं, महिषासुर का उत्पात बने पर ब्रहृा, विष्णु, महेश तीनों के तेज के अंश से देवी कात्यायनी महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थीं।
मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। ये ब्रजमण्डल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएं हैं। इनका दाहिना ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है तथा नीचे वाला वर मुद्रा में है। बायें ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं।
इनका वाहन सिंह है। इनकी पूजा के लिए साधक को मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित करना चाहिए।