Friday, October 16, 2015
पाँचबे दिन माँ स्कन्ध माता की आरधना
पाँचबे दिन माँ स्कन्ध माता की आरधना
तुम दीन भगिनी दुःख हर्ता हो ,तुम जग की पालनकर्ता हो इस मुर्ख खल और कामी का उद्धार तुम्हारे हाथों में
तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में
तुम दीन भगिनी दुःख हर्ता हो ,तुम जग की पालनकर्ता हो इस मुर्ख खल और कामी का उद्धार तुम्हारे हाथों में
नब रात्रि में भक्त लोग माँ दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा अर्चना करके माँ का आश्रिबाद प्राप्त करतें है।
मां
दुर्गाजी के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है।
सिंहासनगता
नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
ये भगवान्
स्कन्द 'कुमार कात्र्तिकेय' की माता है। इन्हीं भगवान् स्कन्द की माता होने के कारण
मां दुर्गा जी के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना
जाता है। इनकी उपासना नवरात्र-पूजा के पांचवें दिन की जाती है। इस दिन साधक का मन 'विशुद्ध' चक्र में अवस्थित होता है।
स्कन्दमातृस्वरूपिणी
देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान् स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं और दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी हुई है उसमें कमल-पुष्प है। बायीं तरफ की
ऊपर वाली भुजा वर मुद्रा में तथा
नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल-पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णत: शुभ्र है।
ये कमल के
आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण से इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है। मां स्कन्दमाता की उपासना से
भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो
जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शान्ति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वयमेव सुलभ
हो जाता है
Thursday, October 15, 2015
चौथे दिन मां दुर्गाजी के चौथे स्वरूप कूष्माण्डा की आरधना
तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में
तुम दीन भगिनी दुःख हर्ता हो ,तुम जग की पालनकर्ता हो
इस मुर्ख खल और कामी का उद्धार तुम्हारे हाथों में
नब रात्रि में भक्त लोग माँ दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा अर्चना करके माँ का आश्रिबाद प्राप्त करतें है।
मां दुर्गाजी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है।
सुरासम्पूर्णकलशं
रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।
अपनी मन्द , हलकी हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रहृाण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है।
जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अन्धकार-ही-अन्धकार परिव्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने 'ईषत्' हास्य से ब्रहृाण्ड की रचना की थी। अत: यही सृष्टि-आदि की स्वरूपा, आदि शक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमण्डल के भीतर के लोक में है। इनकी आठ भुजाएं हैं। अत: ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।
नवरात्र पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में अवस्थित होता है। अत: इस दिन उसे अत्यन्त पवित्र और अचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।
अपनी मन्द , हलकी हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रहृाण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है।
जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अन्धकार-ही-अन्धकार परिव्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने 'ईषत्' हास्य से ब्रहृाण्ड की रचना की थी। अत: यही सृष्टि-आदि की स्वरूपा, आदि शक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमण्डल के भीतर के लोक में है। इनकी आठ भुजाएं हैं। अत: ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।
नवरात्र पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में अवस्थित होता है। अत: इस दिन उसे अत्यन्त पवित्र और अचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।
Wednesday, October 14, 2015
तीसरे दिन माँ चन्द्रघण्टा की आराधना
तीसरे दिन माँ चन्द्रघण्टा की आराधना
तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में
मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम ‘चन्द्रघण्टा’ है.
पिण्डजप्रवरारूढा
चण्डकोपास्त्रकैयरुता.
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता..
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता..
मां
दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम ‘चन्द्रघण्टा’ है. नवरात्र उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के
विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है. इनका यह स्वरूप परम शान्तिदायक और कल्याणकारी है. इनके मस्तक में घण्टे के आकार
का अर्धचन्द्र है, इसी कारण से इन्हें चन्द्रघण्टा देवी कहा जाता है.
इनके शरीर
का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है. इनके दस हाथ हैं. इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं. इनका वाहन सिंह है.
नवरात्र की
दुर्गा उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है. इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है. मां चन्द्रघण्टा की कृपा से उसे अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं. मां चन्द्रघण्टा की
कृपा से साधक के समस्त पाप और
बाधाएं विनष्ट हो जाती हैं. इनकी आराधना सद्य: फलदायी हैं.
हमें
निरन्तर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखते हुए साधना की ओर अग्रसर होने का प्रयत्न करना चाहिए. उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक
दोनों के लिए परमकल्याणकारी और
सद्गति को देने वाला है.
Tuesday, October 13, 2015
दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी स्वरूप की आराधना
दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी स्वरूप की आराधना
तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में
मां दुर्गा
की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है.
दधानां
करपद्माभ्यामक्ष मालाकमण्डलू.
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा..
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा..
यहां ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ तपस्या है.
ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी-तप का आचरण करने वाली.
कहा भी है-वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म-वेद, तत्व और तप ‘ब्रह्म’ शब्द के अर्थ हैं. ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है. इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं
बायें हाथ में कमण्डल रहता है.
अपने पूर्व
जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री-रूप में उत्पन्न हुई थीं तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को पति-रूप में प्राप्त
करने के लिए अत्यन्त कठिन तपस्या
की थी. इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्
ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया.
मां दुर्गा
जी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फल देने वाला है. इसकी उपासना से मनुष्य में तप,
त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है. दुर्गापूजन
के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है. इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र में स्थित होता है. इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है.
Monday, October 12, 2015
पहले दिन मां शैलपुत्री की आराधना
तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में
नब रात्रि में भक्त लोग माँ दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा अर्चना करके माँ का आश्रिबाद प्राप्त करतें है।
पहले दिन
मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है।
वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री
यशस्विनीम्।।
मां दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। माता शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में सती
के नाम से प्रजापति दक्ष के यहां
उत्पन्न हुई थीं और भगवान शंकर से उनका विवाह हुआ था।
मां शैलपुत्री वृषभ पर सवार हैं। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं। पार्वती एवं हैमवती भी इन्हीं के नाम है। मां शैलपुत्री दुर्गा का महत्व एवं शक्तियां अनंत हैं। नवरात्र पर्व पर प्रथम दिवस इनका पूजन होता है। इस दिन साधक अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करके साधना प्रारम्भ करते हैं। इससे मन निश्छल होता है और काम-क्रोध आदि शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
मदन मोहन सक्सेना
मां शैलपुत्री वृषभ पर सवार हैं। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं। पार्वती एवं हैमवती भी इन्हीं के नाम है। मां शैलपुत्री दुर्गा का महत्व एवं शक्तियां अनंत हैं। नवरात्र पर्व पर प्रथम दिवस इनका पूजन होता है। इस दिन साधक अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करके साधना प्रारम्भ करते हैं। इससे मन निश्छल होता है और काम-क्रोध आदि शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
मदन मोहन सक्सेना
Monday, October 5, 2015
मेरी रचना मदुराक्षर पत्रिका में
प्रिय मित्रो मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी रचना मदुराक्षर पत्रिका मेंशामिल की गयी है। आप की प्रतिक्रिया का स्वागत है.
हमको कुछ नहीं मालूम
देखा जब नहीं उनको और हमने गीत नहीं गाया
जमाना हमसे ये बोला की बसंत माह क्यों नहीं आया
बसंत माह गुम हुआ कैसे ,क्या तुमको कुछ चला मालूम
कहा हमने ज़माने से की हमको कुछ नहीं मालूम
पाकर के जिसे दिल में ,हुए हम खुद से बेगाने
उनका पास न आना ,ये हमसे तुम जरा पुछो
बसेरा जिनकी सूरत का हमेशा आँख में रहता
उनका न नजर आना, ये हमसे तुम जरा पूछो
जीवितं है तो जीने का मजा सब लोग ले सकते
जीवितं रहके, मरने का मजा हमसे जरा पूछो
रोशन है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही
अँधेरा दिन में दिख जाना ,ये हमसे तुम जरा पूछो
खुदा की बंदगी करके अपनी मन्नत पूरी सब करते
इबादत में सजा पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो
तमन्ना सबकी रहती है, की जन्नत उनको मिल जाए
जन्नत रस ना आना ये हमसे तुम जरा पूछो
सांसों के जनाजें को, तो सबने जिंदगी जाना
दो पल की जिंदगी पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो
मदन मोहन सक्सेना
Thursday, October 1, 2015
मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक १ ,अक्टूबर २०१५ में
प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक १ ,अक्टूबर २०१५ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
मेरे जिस टुकड़े को दो पल की दूरी बहुत सताती थी
जीवन के चौथेपन में अब ,वह सात समन्दर पार हुआ
रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या व्यवहार हुआ
दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से
धर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्यापार हुआ
मेरे प्यारे गुलशन को न जानें किसकी नजर लगी है
युवा को अब काम नहीं है बचपन अब बीमार हुआ
जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रैंड हो गए
शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ
ताई ताऊ , दादा दादी ,मौसा मौसी दूर हुएँ
अब हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ
ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
जीवन के चौथेपन में अब ,वह सात समन्दर पार हुआ
रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या व्यवहार हुआ
दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से
धर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्यापार हुआ
मेरे प्यारे गुलशन को न जानें किसकी नजर लगी है
युवा को अब काम नहीं है बचपन अब बीमार हुआ
जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रैंड हो गए
शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ
ताई ताऊ , दादा दादी ,मौसा मौसी दूर हुएँ
अब हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ
ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
Sunday, September 13, 2015
मेरी पोस्ट ग़ज़ल(क्या खोया और क्या पाया )आपका ब्लॉग ए बी पी न्यूज़ में
मेरी पोस्ट ग़ज़ल(क्या खोया और क्या पाया )आपका ब्लॉग ए बी पी न्यूज़ में
प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि मेरी पोस्ट ग़ज़ल(क्या खोया और क्या पाया )आपका ब्लॉग ए बी पी न्यूज़ में शामिल की गयी है। आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएं।
Your Post new blog entry entitled "क्या खोया और क्या पाया " has been approved by our content moderator! Other visitors to आपका ब्लॉग will now be able to view it. You can visit .
http://aapkablog.abplive.in/
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क्या खोया और क्या पाया
अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
ख्बाबो और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल
कहने को तो कह लेते हैं अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातो को है कह पाना बहुत मुश्किल
ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल
कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है
क्या खोया और क्या पाया कह पाना बहुत मुश्किल
मदन मोहन सक्सेना
Friday, September 11, 2015
सुन्दर हिंदी प्यारी हिंदी में प्रकाशित ग़ज़ल
दीवारें ही दीवारें नहीं दीखते अब घर यारों
बड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले है.
उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं
जिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता है
दुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं
जीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा है
खोया है उसी की चाह में ,ये दिल क्यों मचले है
समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब समय ना है
रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं
(आप के लिए श्री मदन मोहन सक्सेना जी की रचना "हालात कैसे आज बदले है")
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