Tuesday, May 16, 2017

तुमसे रब को पाने लगा आजकल हूँ

सपने सजाने लगा आजकल हूँ
मिलने मिलाने लगा आज कल हूँ
हुयी शख्शियत उनकी मुझ पर हाबी
खुद को भुलाने लगा आजकल हूँ


इधर तन्हा मैं था उधर तुम अकेले
किस्मत ,समय ने क्या खेल खेले
गीत ग़ज़लों की गंगा तुमसे ही पाई
गीत ग़ज़लों को गाने लगा आजकल हूँ


जिधर देखता हूँ उधर तू मिला है
ये रंगीनियों का गज़ब सिलसिला है

नाज क्यों ना मुझे अपने जीवन पर हो
तुमसे रब को पाने लगा आजकल हूँ





मदन मोहन सक्सेना

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