Monday, April 8, 2013

उलझन


















उलझन




दीवारें ही दीवारें नहीं दीखते अब घर यारों 
बड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले है. 

उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है 
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं 

जिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता है 
दुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं 

जीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा है 
खोया है उसी की चाह में ,ये दिल क्यों मचले है 

समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब  समय ना है 
रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं 


 प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना  
 

3 comments:

  1. सुन्दर -
    आदरणीय-

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  2. समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब समय ना है
    रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं ..............बहुत बढ़िया।

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  3. ये उलझनें आसानी से कहाँ सुलझने वालीं हैं....
    बढ़िया रचना.
    अनु

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