ये पैसों की दुनिया ये काँटों की दुनिया
यारों ये दुनिया जालिम बहुत है
अरमानो की माला मैनें जब भी पिरोई
हमको ये दुनिया तो माला पिरोने नहीं देती..
ये गैरों की दुनियां ये काँटों की दुनिया
दौलत के भूखों और प्यासों की दुनिया
सपनो के महल मैंने जब भी संजोये
हमको ये दुनिया तो सपने संजोने नहीं देती..
जब देखा उन्हें और उनसे नजरें मिली
अपने दिल ने ये माना की हमको दुनिया मिली
प्यार पाकर के जब प्यारी दुनिया बसाई
हमको ये दुनिया तो उसमें भी सोने नहीं देती..
ये काँटों की दुनिया -ये खारों की दुनिया
ये बेबस अकेले लाचारों की दुनिया
दूर रहकर उनसे जब मैं रोना भी चाहूं
हमको ये दुनिया अकेले भी रोने नहीं देती..
ये दुनिया तो हमको तमाशा ही लगती
हाथ अपने हमेशा निराशा ही लगती
देख दुनिया को जब हमने खुद को बदला
हमको ये दुनिया तो बैसा भी होने नहीं देती...
काब्य प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
सही बात-
ReplyDeleteबढ़िया पंक्ति चतुष्क -
प्रतिक्रियार्थ आभारी हूँ ! सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है !!
Deleteबहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteअनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.
DeleteBahut Khub Likha Hai Sir Ji Aapne...Aapka Intjaar Next My Post........
ReplyDeleteअनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.
DeleteBahut Khub Likha Hai Sir Ji Aape...
ReplyDeleteप्रतिक्रियार्थ आभारी हूँ ! सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है !!
Deleteसुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
ReplyDeleteअनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.
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