अपना दिल जब ये पूछें की दिलकश क्यों नज़ारे हैं
परायी लगती दुनिया में बह लगते क्यों हमारे हैं
ना उनसे तुम अलग रहना ,मैं कहता अपने दिल से हूँ
हम उनके बिन अधूरें है ,बह जीने के सहारे हैं
जीबन भर की सब खुशियाँ, उनके बिन अधूरी है
पाकर प्यार उनका हम ,उनसे सब कुछ हारे हैं
ना उनसे दूर हम जाएँ ,इनायत मेरे रब करना
आँखों के बह तारे है ,बह लगते हमको प्यारे हैं
पाते जब कभी उनको , तो आ जाती बहारे हैं
मैं कहता अपने दिल से हूँ ,सो दिलकश यूँ नज़ारे हैं
काब्य प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
तुम हो तो...नज़ारे हैं...बहुत खूब...
ReplyDeleteकोमल भाव युक्त बहुत प्यारी रचना..
ReplyDelete:-)
प्रोत्साहन के लिए आपका हृदयसे आभार
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