Tuesday, March 6, 2018

समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब समय ना है






दीवारें ही दीवारें नहीं दीखते अब घर यारों
बड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले है.

उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं

जिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता है
दुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं

जीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा है
खोया है उसी की चाह में ,ये दिल क्यों मचले है

समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब समय ना है
रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं


समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब समय ना है


मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, February 27, 2018

हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .





मन से मन भी मिल जाये , तन से तन भी मिल जाये
प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है

मौसम आज रंगों का छायी अब खुमारी है
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है

ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है

क्या जीजा हों कि साली हों ,देवर हो या भाभी हो
दिखे रंगनें में रंगानें में , सभी मशगूल होली है

ना शिकबा अब रहे कोई , ना ही दुश्मनी पनपे
गले अब मिल भी जाओं सब, आयी आज होली है

प्रियतम क्या प्रिया क्या अब सभी रंगने को आतुर हैं
चलो हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .

हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .


मदन मोहन सक्सेना

Thursday, January 25, 2018

उसकी यादों का दिया अपने दिल में यार जलता है

मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है

किसकी कुर्बानी को किसने याद रक्खा है दुनिया में
जलता तेल और बाती है कहते दीपक जलता है

मुहब्बत को बयाँ करना किसके यार बश में है
उसकी यादों का दिया अपने दिल में यार जलता है

बैसे जीवन के सफर में तो कितने लोग मिलते हैं
किसी चेहरे पे अपना  दिल  अभी भी तो मचलता है

समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारों
रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है

मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है

उसकी यादों का दिया अपने दिल में यार जलता है
मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, January 17, 2018

जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है


जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है


मेरे मालिक मेरे मौला ये क्या दुनिया बनाई है
किसी के पास खाने को  मगर वह खा नहीं पाये

तेरी दुनियां में कुछ बंदें, करते काम क्यों गंदें
किसी के पास कुछ भी ना, भूखे पेट सो जाये

जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है
तेरी बातोँ को तू जाने, समझ अपनी ना कुछ आये

तुझे पाने की कोशिश में कहाँ कहाँ मैं नहीं घूमा
जब रोता बच्चा मुस्कराता है तू ही तू नजर आये

ना रिश्तों की महक दिखती ना बातोँ में ही दम दीखता
क्यों मायूसी ही मायूसी जिधर देखो नज़र आये

गुजारिश अपनी सबसे है कि जीयो और जीने दो
ये जीवन कुछ पलों का है पता कब मौत आ जाये

मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, January 10, 2018

मुझे सिर्फ तेरी तलाश है







मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र ,तुझे खोजती है मेरी नजर
तुम्हें हो ख़बर कि  न हो ख़बर ,मुझे सिर्फ तेरी तलाश है

मेरे साथ तेरा प्यार है ,तो जिंदगी में बहार है
मेरी जिंदगी तेरे दम से है ,इस बात का एहसास  है

तेरे इश्क का है ये असर ,मुझे सुबह शाम की ना  ख़बर
मेरे दिल में तू रहती सदा , तू ना दूर है और ना पास है

ये तो हर किसी का खयाल है ,तेरे रूप की न मिसाल है
कैसें कहूँ  तेरी अहमियत, मेरी जिंदगी में खास है

तेरी झुल्फ जब लहरा गयी , काली घटायें छा गयी
हर पल तुम्हें देखा करू ,आँखों में फिर भी प्यास है




मदन मोहन सक्सेना 

Wednesday, December 20, 2017

चाँद सूरज फूल में बस यार का चेहरा मिला







हर सुबह  रंगीन   अपनी  शाम  हर  मदहोश है
वक़्त की रंगीनियों का चल रहा है सिलसिला

चार पल की जिंदगी में  मिल गयी सदियों की दौलत
जब मिल गयी नजरें हमारी  दिल से दिल अपना मिला

नाज अपनी जिंदगी पर क्यों न हो हमको भला
कई मुद्द्दतों के बाद फिर  अरमानों का पत्ता हिला

इश्क क्या है  आज इसकी लग गयी हमको खबर
रफ्ता रफ्ता ढह गया  तन्हाई का अपना किला

वक़्त भी कुछ इस तरह से आज अपने साथ है
चाँद सूरज फूल में बस यार का चेहरा मिला

दर्द मिलने पर शिकायत क्यों भला करते मदन
जब दर्द को देखा तो  दिल में मुस्कराते ही मिला


चाँद सूरज फूल में बस यार का चेहरा मिला

मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, December 13, 2017

घायल हुए उस रोज हम जिस रोज मारा प्यार से






जालिम लगी दुनियाँ  हमें हर शख्श  बेगाना लगा
हर पल हमें धोखे मिले अपने ही ऐतबार से

नफरत से की गयी चोट से हर जख़्म  हमने सह लिया
घायल हुए उस रोज हम जिस रोज मारा प्यार से

प्यार के एहसास  से जब जब रहे हम बेखबर
तब तब लगा हमको की हम जी रहे बेकार से

इजहार राजे दिल का वो जिस रोज मिल करने लगे
उस रोज से हम पा रहे खुशबु भी देखो खार से


प्यार से सबसे मिलो ये चार पल की जिंदगी है
मजा पाने लगा है अब ये मदन प्यार में तकरार से


घायल हुए उस रोज हम जिस रोज मारा प्यार से

मदन मोहन सक्सेना

Friday, December 8, 2017

मुझे दिल पर अख्तियार था ये कल की बात है





उनको तो हमसे प्यार है ये कल की बात है
कायम ये ऐतबार था ये कल की बात है

जब से मिली नज़र तो चलता नहीं है बस
मुझे दिल पर अख्तियार था ये कल की बात है

अब फूल भी खिलने लगा है निगाहों में
काँटों से मुझको प्यार था ये कल की बात है

अब जिनकी बेबफ़ाई के चर्चे हैं हर तरफ
वह  पहले बफादार थे ये कल की बात है

जिसने लगायी आग मेरे घर में आकर के
वह  शख्श मेरा यार था ये कल की बात है

तन्हाईयों का गम ,जो मुझे दे दिया उन्होनें
बह मेरा गम बेशुमार था ये कल की बात है



 मुझे दिल पर अख्तियार था ये कल की बात है

मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, December 5, 2017

भरोसा हो तो किस पर हो सभी इक जैसे दिखतें हैं



किसको आज फुर्सत है किसी की बात सुनने की
अपने ख्बाबों और ख़यालों  में सभी मशगूल दिखतें हैं

सबक क्या क्या सिखाता है जीबन का सफ़र यारों
मुश्किल में बहुत मुश्किल से अपने दोस्त दिखतें हैं

क्यों  सच्ची और दिल की बात ख़बरों में नहीं दिखती
नहीं लेना हक़ीक़त से  क्यों  मन से आज लिखतें हैं

धर्म देखो कर्म देखो अब असर दीखता है पैसों का
भरोसा हो तो किस पर हो सभी इक जैसे दिखतें हैं

सियासत में न इज्ज़त की ,न मेहनत की  कद्र यारों
सुहाने स्वप्न और ज़ज्बात यहाँ हर रोज बिकते हैं

दुनिया में जिधर देखो हज़ारों रास्ते दीखते
मंजिल जिनसे मिल जाये बह रास्ते नहीं मिलते


भरोसा हो तो किस पर हो सभी इक जैसे दिखतें हैं

मदन मोहन सक्सेना

Monday, November 20, 2017

दूर रह कर हमेशा हुए फासले

दूर रह कर हमेशा हुए फासले ,चाहें रिश्तें कितने क़रीबी  क्यों ना हों
कर लिए बहुत काम लेन देन  के ,विन  मतलब कभी तो जाया करो

पद पैसे की इच्छा बुरी तो नहीं मार डालो जमीर कहाँ ये सही
जैसा देखेंगे बच्चे वही सीखेंगें ,पैर अपने माँ बाप के भी दबाया करो

काला कौआ भी है काली कोयल भी है ,कोयल सभी को भाती  क्यों है
सुकूँ दे चैन दे दिल को ,अपने मुहँ में ऐसे ही अल्फ़ाज़ लाया करो

जब सँघर्ष है तब ही  मँजिल मिले ,सब कुछ सुबिधा नहीं यार जीबन में है
जिस गली जिस शहर में चला सीखना , दर्द उसके मिटाने भी जाया करो

यार जो भी करो तुम सँभल करो ,  सर उठे गर्व से ना झुके शर्म से
वक़्त रुकता है किसके लिए ये "मदन" वक़्त ऐसे ही अपना ना जाया करो


दूर रह कर हमेशा हुए फासले

मदन मोहन सक्सेना