Wednesday, September 9, 2015

मेरी पोस्ट रंग बदलती दूनियाँ देखी आपका ब्लॉग ए बी पी न्यूज़ में





मेरी पोस्ट रंग बदलती दूनियाँ देखी आपका ब्लॉग ए बी पी न्यूज़ में




प्रिय   मित्रों मुझे बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि मेरी पोस्ट रंग बदलती दूनियाँ देखी आपका ब्लॉग ए बी पी न्यूज़ में शामिल की गयी है।  आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएं।


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रंग बदलती दूनियाँ



सपनीली दुनियाँ मेँ यारों सपनें खूब मचलते देखे
रंग बदलती दूनियाँ देखी ,खुद को रंग बदलते देखा

सुबिधाभोगी को तो मैनें एक जगह पर जमते देख़ा
भूखों और गरीबोँ को तो दर दर मैनें चलते देखा

देखा हर मौसम में मैनें अपने बच्चों को कठिनाई में
मैनें टॉमी डॉगी शेरू को, खाते देखा पलते देखा

पैसों की ताकत के आगे गिरता हुआ जमीर मिला
कितना काम जरुरी हो पर उसको मैने टलते देखा

रिश्तें नातें प्यार की बातें ,इनको खूब सिसकते देखा
नए ज़माने के इस पल मेँ अपनों को भी छलते देखा

मदन मोहन सक्सेना

Sunday, September 6, 2015

अब तो आ कान्हा जाओ



अब तो आ कान्हा  जाओ, इस धरती पर सब त्रस्त हुए 
दुःख सहने को भक्त तुम्हारे आज सभी अभिशप्त हुए
नन्द दुलारे कृष्ण कन्हैया  ,अब भक्त पुकारे आ जाओ 
प्रभु दुष्टों का संहार करो और  प्यार सिखाने आ जाओ 











अर्थ का अनर्थ
 
एक रोज हम यूँ ही बृन्दावन गये
भगबान कृष्ण हमें बहां मिल गये
भगवान बोले ,बेटा मदन क्या हाल है ?
हमने कहा दुआ है ,सब मालामाल हैं

कुछ देर बाद हमने ,एक सवाल कर दिया
भगवान बोले तुमने तो बबाल कर दिया
सवाल सुन करके बो कुछ लगे सोचने
मालूम चला ,लगे कुछ बह खोजने

हमने उनसे कहा ,ऐसा तुमने क्या किया ?
जिसकी बजह से इतना नाम कर लिया
कल तुमने जो किया था ,बह ही आज हम कर रहे
फिर क्यों लोग , हममें तुममें भेद कर रहे

भगवान बोले प्रेम ,कर्म का उपदेश दिया हमनें
युद्ध में भी अर्जुन को सन्देश दिया हमनें
जब कभी अपनों ने हमें दिल से है पुकारा
हर मदद की उनकी ,दुष्टों को भी संहारा

मैनें उनसे कहा सुनिए ,हम कैसे काम करते है
करता काम कोई है ,हम अपना नाम करते हैं
देखकर के दूसरों की माँ बहनों को ,हम अपना बनाने की सोचा करते
इसी दिशा में सदा कर्म किया है,  कल क्या होगा  ,ये ना सोचा करते

माता पिता मित्र सखा आये कोई भी
किसी भी तरह हम डराया करते
साम दाम दण्डं भेद किसी भी तरह
रूठने से उनको मनाया करते

बात जब फिर भी नहीं है बनती
कर्म कुछ ज्यादा हम किया करतें
सजा दुष्टों को हरदम मिलती रहे
ये सोचकर कष्ट हम दिया करते 

मार काट लूट पाट हत्या राहजनी
अपनें हैं जो ,मर्जी हो बो करें
कहना तो अपना सदा से ये है
पुलिस के दंडें से फिर क्यों डरे

धोखे से जब कभी बे पकड़े गए
पल भर में ही उनको छुटाया करते
जब अपनें है बे फिर कष्ट क्यों हो
पल भर में ही कष्ट हम मिटाया करते

ये सुनकर के भगबान कहने लगे
क्या लोग दुनियां में इतना सहने लगे
बेटा तुने तो अर्थ का अनर्थ कर दिया
ऐसे कर्मों से जीवन अपना ब्यर्थ कर दिया 

तुमसे कह रहा हूँ मैं हे पापी मदन
पाप अच्छे कर्मों से तुमको डिगाया करेंगें
दुष्कर्मों के कारण हे पापी मदन
हम तुम जैसों को फिर से मिटाया करेंगें 



मदन मोहन सक्सेना

Friday, August 28, 2015

राखी त्यौहार और हम





 
 राखी त्यौहार और हम 


राखी का त्यौहार आ ही गया ,इस  त्यौहार को मनाने  के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज के सभी बर्गों ने कमर कस ली है। हिन्दुस्थान में राखी की परम्परा काफी पुरानी है . बदले दौर में जब सभी मूल्यों का हास हो रहा हो तो भला राखी का त्यौहार इससे अछुता कैसे रह सकता है। मुझे अभी भी  याद है जब मैं छोटा था और राखी के दिन ना जाने कहाँ से साल भर ना दिखने बाली तथाकथित  मुहबोली बहनें अबतरित  हो जातीं थी  एक मिठाई का पीस और राखी देकर मेरे माँ बाबु से जबरदस्ती मनमाने रुपये बसूल कर ले जाती थीं। खैर जैसे जैसे समझ बड़ी बाकि लोगों से राखी बंधबाना बंद कर दी। जब तक घर पर रहा राखी बहनों से बंधबाता  रहा ,पैसों का इंतजाम पापा करते थे  मिठाई बहनें लाती थीं।अब  दूर रहकर राखी बहनें पोस्ट से भेज देती हैं कभी कभी मिठाई के लिए कुछ रुपये भी साथ रख देती हैं।यदि अबकाश होता है तो ज़रा अच्छे से मना लेते है। पोस्ट ऑफिस जाकर पैसों को भेजने की ब्यबस्था  करके ही अपने कर्तब्यों की इतिश्री  कर लेते हैं। राखी को छोड़कर पूरे साल मुझे याद भी रहता है की मेरी बहनें कैसी है या उनको भी मेरी कुछ खबर  रखने की इच्छा रहती है ,कहना बहुत  मुश्किल है . ये हालत कैसे बने या इसका जिम्मेदार कौन है काफी मगज मारी करने पर भी कोई एक राय बनती नहीं दीखती . कभी लगता है ये समय का असर है कभी लगता है सभी अपने अपने दायरों में कैद होकर रह गए हैं। पैसे की कमी , इच्छाशक्ति में कमी , आरामतलबी की आदत और प्रतिदिन के सँघर्ष ने रिश्तों को खोखला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।  
अपना अपना राग लिए सब अपने अपने घेरे में 
हर इंसान की एक कहानी सबकी ऐसे गुजर गयी 


उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं


पर्व और त्यौहारों के देश कहे जाने वाले अपने देश में  कई ऐसे त्यौहार हैं  लेकिन इन सभी में राखी एक ऐसा पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और अधिक मजबूत और सौहार्दपूर्ण बनाए रखने का एक बेहतरीन जरिया सिद्ध हुआ है। राखी को  बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधते हुए उसकी लंबे और खुशहाल जीवन की प्रार्थना करती हैं वहीं भाई ताउम्र अपनी बहन की रक्षा करने और हर दुख में उसकी सहायता करने का वचन देते हैं।

अब जब पारिवारिक रिश्तों का स्वरूप भी अब बदलता जा रहा है  भाई-बहन को ही ले लीजिए, दोनों में झगड़ा ही अधिक  होता है और  वे एक-दूसरे की तकलीफों को समझते कम हैं ।आज  वे अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करते  ज्यादा  मिलते है लेकिन जब भाई को अपनी बहन की या बहन को अपनी भाई की जरूरत होती है तो वह मौजूद रहें ऐसी सम्भाबना कम होती जा रही है.

सामाजिक व्यवस्था और पारिवारिक जरूरतों के कारण आज बहुत से भाई अपनी बहन के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते ऐसे में रक्षाबंधन का दिन उन्हें फिर से एक बाद निकट लाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। लेकिन  बढ़तीं महंगाई , रिश्तों के खोखलेपन और समय की कमी की बजह से  बहुत कम भाई ही अपनी बहन के पास राखी बँधबाने  जा पाते हों . सभी रिश्तों की तरह भाई बहन का रिश्ता भी पहले जैसा नहीं रहा लेकिन राखी का पर्ब  हम सबको सोचने के लिए मजबूर तो करता ही है कि  सिर्फ उपहार और पैसों से किसी भी रिश्तें में जान नहीं डाली जा सकती राखी के परब के माध्यम से भाई बहनों को एक दुसरे की जरूरतों को समझना होगा और एक दुसरे की  दशा  को समझते हुए उनकी भाबनाओं  की क़द्र करके राखी की महत्ता को पहचानना होगा। अंत में मैं अपनी बात इन शब्दों से ख़त्म करना चाहूगां .

 
मनाएं हम तरीकें से तो रोशन ये चमन होगा
सारी दुनियां से प्यारा और न्यारा  ये बतन होगा
धरा अपनी ,गगन अपनाजो बासी  बो भी अपने हैं 
हकीकत में बे बदलेंगें ,दिलों में जो भी सपने हैं



मदन मोहन सक्सेना








Friday, August 14, 2015

आजादी देश और हम



 आजादी देश और हम 



 आजादी देश और हम

कल आजादी का पर्ब है
सरकारी अमला जोर शोर से तैयारी कर रहा है
स्कूल के बच्चे और टीचर अपने तरह से जुटे हुए हैं
आजादी का पर्ब मनाने के लिए
कुछ लोग छुट्टी जाकर
लॉन्ग वीकेंड को मनाने को लेकर उत्साहित हैं
छोटी मुनिया , छोटू
ये सोच कर बहु खुश है कि
पेपर और प्लास्टिक के झंडे से अधिक पैसे मिलेंगें
सोसाइटी ऑफिस के लोग
देश भक्ति से युक्त गानो की सी डी और ऑडियो को खोजने में ब्यस्त हैं
कि पुरे दिन इन गानो के बजाना होगा
बच्चे लोग इस बात से खुश है कि
कल स्कूल में पढ़ाई नहीं होगी
ढेर सारा मजा और  मिठाई अलग से मिलेगी
लेकिन
भारत  काका इस बात से खिन्न हैं
कि अपनी पूरी जिंदगी सेना में खपाने के बाद भी
सरकार उनकी सुध लेने को तैयार नहीं है (एक रैंक एक पेंशन)
अपनी आँख और खूबसूरती खो चुकी
भारती ये सोचकर परेशान है कि
आधी आबादी को जीने का बराबरी का हक़ कब मिलेगा
और मिलेगा भी या नहीं
कुछ आशाबादी लोग
अब भी इस आशा में है कि
कल प्रधानमंत्री शायद
कुछ ऐसा कर दें कि
उनकी जिंदगी में अच्छे दिन आ जाये
और बे भी
आजाद भारत
के
आजाद नागरिक के रूप में
अपना जीबन
बेहतर ढंग से जी सकें


१५ अगस्त की हार्दिक शुभकामनायें


मदन मोहन सक्सेना

Friday, August 7, 2015

तुम और मैं







तुम और मैं 
मैं और तुम 
हम दोनों ने सफलतापूर्वक एक संसार का सृजन किया है 
जिसमें 
आशाएँ हैं 
कल्पनायें हैं 
स्नेह है 
परस्पर सम्मान ,सूझबूझ  है 
अपने इस अनोखे प्यारे संसार 
के हम दोनों
प्यार करने बाले पक्षी जैसे हैं 
जो प्रतिबद्ध और उत्सुक है 
अपने प्रेम , भाबनाएं और सुख दुःख 
साझा करने के लिए 
जब तक इस शरीर में जान है. 

मदन मोहन सक्सेना 
 


Thursday, July 30, 2015

आँख मिचौली













जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा
शहर में ठिकाना खोजा
पता नहीं आजकल
हर कोई मुझसे
आँख मिचौली का खेल क्यों खेला  करता है
जिसकी जब जरुरत होती है
गायब मिलता है
और जब जिसे नहीं होना चाहियें
जबरदस्ती कब्ज़ा जमा लेता है
कल की ही बात है
मेरी बहुत दिनों के बात उससे मुलाकात हुयी
सोचा गिले शिक्बे दूर कर लूं
पहले गाँव में तो उससे रोज का मिलना जुलना था
जबसे इधर क्या आया
या कहिये कि मुंबई जैसे महानगर की 

दीबारों के बीच आकर फँस गया
पूछा
क्या बात है
आजकल आती नहीं हो इधर।
पहले तो आंगन भर-भर आती थी।
दादी की तरह छत पर पसरी रहती थी हमेशा।
पड़ोसियों ने अपनी इमारतों की दीवार क्या ऊँची की
तुम तो इधर का रास्ता ही भूल गयी।
अक्सर सुबह देखता हूं
पड़ी रहती हो
आजकल उनके छज्जों पर
हमारी छत तो अब तुम्हें सुहाती ही नहीं ना
लेकिन याद रखो
ऊँची इमारतों के ऊँचे लोग
बड़ी सादगी से लूटते हैं
फिर चाहे वो इज्जत हो या दौलत।
महीनों के  बाद मिली हो
इसलिए सारी शिकायतें सुना डाली
उसने कुछ बोला नहीं
बस हवा में खुशबु घोल कर
खिड़की के पीछे चली गई
सोचा कि उसे पकड़कर आगोश में भर लूँ
धत्त तेरी की
फिर गायब
ये महानगर की धूप भी न
बिलकुल तुम पर गई है
हमेशा आँख मिचौली का खेल खेल करती है
और मैं न जाने क्या क्या सोचने लग गया 

उसके बारे में 
महानगर के बारे में 
और 
जिंदगी के बारे में


 मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, June 23, 2015

जागरण जंक्शन में मेरी पोस्ट बारिश के रंग , मुंबई के संग




 जागरण जंक्शन में मेरी पोस्ट बारिश के रंग , मुंबई के संग


प्रिय मित्रों मुझे ये बताते हुए बाहर हर्ष हो रहा है कि मेरी पोस्ट बारिश के रंग , मुंबई के संग को जागरण जंक्शन में शामिल किया गया है।
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बारिश के रंग , मुंबई के संग


हर बार की तरह
इस बार भी इंद्र देव
मुंबई पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गए
जीब जंतु पशु पक्षी की प्यास
लम्बे अंतराल के बाद शांत हो गयी
तालाब पोखर झील फूल कर
अपने भाग्य पर इतराने लगे
मुंबई बालों को पाने पीने के लिए
अब कटौती नहीं सहन करनी पड़ेगी
हर बार की तरह
इस बार भी लोगो को परेशानी झेलनी पड़ी
कुछ लोग ट्रेन और रस्ते में फँस गए
मुंबई के कुछ आधुनिक इलाकें
हिंदमाता , अंधेरी ,दादर ,परेल , कुर्ला
हर बार की तरह इस बार भी पानी में डूबने लगे
हर बार की तरह में उस दिन
मीडिया बाले चर्चा करके
टी आर पी बटोरने लगे
हर बार की तरह इस बार भी
जो लोग घर पर रहे चटकारे लेकर
ख़बरों का आनंद लेने लगे कि बो बच गए परेशानी से
हर बार की तरह इस बार भी
बी एम सी के लोग
अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने की कोशिश करते दिखे
आमची मुंबई के लोग भी
हर बार की तरह परेशान दिखे
करते तो क्या करते
स्थानीय लोगों की पार्टी का ही कब्ज़ा है
बी एम सी पर
काफी समय से
नाराज हों बो भी अपनों से
चलो इस बार कुछ नहीं बोलते हैं
शायद अगले साल
कुछ सुधार देखने को मिले
अगले दिनों का इन्तजार करने लगें



मदन मोहन सक्सेना

Friday, June 19, 2015

समय के इस दौर में

समय के इस दौर में



जब समय ही समय था 
समय जानने के लिए घड़ी नहीं थी 
आज समय जानने के लिए 
मोबाइल ,घड़ी क्या क्या नहीं है 
किन्तु  क्या दौर है 
माँ बाप के पास बच्चों के लिए समय नहीं है 
और बच्चों के लिए माँ बाप के लिए समय नहीं है 
सब अपने अपने घेरे में कैद हैं
सब अपने अपने तरीके से 
समय की कमी से जूझ रहें हैं 
साथ ही साथ बोर भी हो रहें हैं 
हर कोई एकांतबास   से रुबरु हो रहा है 
समय के इस दौर में



मदन मोहन सक्सेना

Saturday, June 13, 2015

अपनापन

अपनापन


अक्सर पास  रहकर के ना अपनापन नजर आता
सुना है दूर रहने पर  अपने याद आते हैं

मदन मोहन सक्सेना

Friday, June 5, 2015

मैगी , मम्मी और मजबूर बच्चें ( बाजार की चाल )


 मैगी , मम्मी और मजबूर बच्चें ( बाजार की चाल  )


कितना अजीब लगता है जब 
सचिन तेंदुलकर हमें बताते हैं की हमारे बच्चों को कौन सा खाना खाना चाहियें 
अमिताभ बच्चन दो मिनट की मैगी की पैरबी करते नजर आतें हैं 
सलमान खान कोल्ड ड्रिंक पीने  के लिए बच्चों को प्रेरित करते नजर आते हैं 
हमारे बच्चे इन के पीछे छिपे खेल को नहीं समझ पाते 
और सितारों की बातों में आ जाते हैं 
कितना अच्छा हो की ये सितारे 
पैसों की भूख के सामने 
देश के बच्चों के स्वास्थ्य को ज्यादा महत्तब देते 
तो आज ये हालत देश को ना देखना होता 
कहतें हैं ना की हम हिंदुस्तानी लोग भेड़ चल बाले हैं।  
बाराबंकी में एक सैंपल में मैगी में कुछ गलत पाया गया ,
देखते ही देखते मैगी का मामला सारे मीडिया पर छा  गया 
 कुछ राज्य सरकारें जल्दी सक्रिय हो गयीं। 
 लेकिन लगता है की किसी भी स्तर पर समाज के महत्वपूर्ण लोगों ने 
अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया.
 मैगी पकाना और खाना आधुनिकता का हिस्सा बन गई. 
बड़े-बुजुर्ग भी स्वाद आजमाने लगे. 
चना, चबैना, सत्तू पिछड़ेपन की निशानी हो गए. 
फिल्म व खेल जगत के लोकप्रिय चेहरों में 
क्या एक बार भी यह विचार नहीं आया कि वह अपनी तरफ से इन खाद्य पदार्थो के सेवन की बच्चों को प्रेरणा न दें.
बहुत संभव था कि इतने नामी चेहरे मैगी का विज्ञापन न करते तो इसे इतनी लोकप्रियता ना मिलती.
तब किसी ने इसमें प्रयुक्त होने वाली सामग्री पर विचार नहीं किया. 
अब पता चल रहा है कि मैगी बनाने वाली कंपनी नेस्ले पर खाद्य सुरक्षा मानकों की अनदेखी का आरोप लगाया गया है
 यहां खाद्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी भी आरोप के घेरे में हैं.
 इतने वर्षो से मैगी की धूम थी
 लेकिन एक भी अधिकारी ने इसके खाद्य मानकों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी.
 मैगी के नमूनों में इतने वर्ष बाद खुलासा हुआ 
 कि मोनोसोडियम ब्लूटामेट और सीसे की मात्रा तय सीमा से 17 गुना ज्यादा थी.
इस मामले में कौन कितना दोषी है, यह तो जांच के बाद पता चलेगा.
 मामला अब न्यायपालिका में है. 
लेकिन यह तो मानना पड़ेगा कि किसी भी स्तर पर
 समाज के महत्वपूर्ण लोगों ने 
अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया. 
इसके विज्ञापन की शुरुआत बस दो मिनट से हुई थी. 
मतलब इसे मात्र दो मिनट में पकाकर बच्चों के सामने परोसा जा सकता है. 
आधुनिक माताएं भी खुश, बच्चे भी खुश. 
इस खुशी में स्वास्थ्य की बात पीछे छूट गई.
मैगी आधुनिक जीवनशैली की एक प्रतीक बन गई थी.
 इसके प्रत्येक पहलू में आधुनिकता की छाप थी. 
 इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इससे समाज 
खासतौर पर बच्चों के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है.
 इसका विज्ञापन करने वालों की मानसिकता भी इससे ऊपर नहीं रही.
केवल धन मिलता रहे, फिर चाहे जिस वस्तु का विज्ञापन करा लो.
 इन लोगों को समाज के कारण ही लोकप्रियता मिली, 
जिसके चलते इन्हें विज्ञापन के लिये उपयुक्त माना गया, लेकिन उसी समाज के प्रति इनका दायित्वबोध क्या था.
अमिताभ बच्चन हो, या माधुरी दीक्षित अथवा कोई और, 
आज इन लोगों का कहना है 
कि उन्होंने नेस्ले के भरोसे पर विज्ञापन किया था. 
तकनीकी रूप से ये बातें इनका बचाव कर सकती है.
 लेकिन नैतिकता के पक्ष पर इनका बचाव नहीं हो सकता.
 जिस विषय का वह विशेषज्ञ न हो, उसका विज्ञापन वह कैसे कर सकता है.
अमिताभ और माधुरी ने कभी 'खाद्य-विज्ञान' का अध्ययन नहीं किया होगा
 ऐसे में ये किसी खाद्य सामग्री के विज्ञापन को कैसे कर सकते हैं.
 लेकिन फिर भी ऐसा होता है. 
जिस विषय से कोई लेना देना नहीं,
 उसके विज्ञापन के लिए भी नामी चेहरे फौरन तत्पर हो जाते हैं. 
समाज हित पर निजी हित भारी होने के कारण ही ऐसा होता है.
वह मैगी या किसी तेल को अपने जीवन की सफलता का श्रेय दे सकते हैं,
लेकिन बच्चों को उचित खान-पान की सही शिक्षा नहीं दे सकते.

खासतौर पर खाद्य पदार्थो के बारे में तो कोई विशेषज्ञ ही बता सकता है
 लेकिन उसके लिए भी फिल्म और क्रिकेट के सितारे तैयार रहते हैं.
 इनकी एक भी बात तर्कसंगत नहीं होती.
साफ लगता है कि पूरी उछल-कूद केवल पैसों के लिए की जा रही है.
इनके विज्ञापनों पर विश्वास करें तो मानना पड़ेगा कि फास्ट फूड सम्पूर्ण पोषण है
लेकिन चिकित्सा विज्ञान इससे सहमत नहीं.
सीलिए धनी परिवार के बच्चे भी कुपोषण के शिकार होते हैं.
मैगी मामला निश्चित ही आंख खोलने वाला साबित हो सकता है.
उन वस्तुओं का उत्पादन न किया जाए
 जिन वस्तुओं की प्रमाणिक जानकारी न हो,
उसका विज्ञापन न किया जाए.
वहीं यह अभिभावकों की जिम्मेदारी है
 कि वह अपने बच्चों को उचित खान-पान के लिए प्रेरित करें.

मदन मोहन सक्सेना


Thursday, May 28, 2015

मेरे हमसफ़र

मेरे हमसफ़र




मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र ,तुझे खोजती है मेरी नजर
तुम्हें हो ख़बर की न हो ख़बर ,मुझे सिर्फ तेरी तलाश है

मेरे साथ तेरा प्यार है ,तो जिंदगी में बहार है
मेरी जिंदगी तेरे दम से है ,इस बात का एहसास  है

तेरे इश्क का है ये असर ,मुझे सुबह शाम की ना  ख़बर
मेरे दिल में तू रहती सदा , तू ना दूर है और ना पास है

ये तो हर किसी का खयाल है ,तेरे रूप की न मिसाल है
कैसें कहूँ  तेरी अहमियत, मेरी जिंदगी में खास है

तेरी झुल्फ जब लहरा गयी , काली घटायें छा गयी
हर पल तुम्हें देखा करू ,आँखों में फिर भी प्यास है


मदन मोहन सक्सेना

Monday, May 25, 2015

या फिर ये खेल ऐसे ही चलता रहेगा (गुर्जर आंदोलन)


 



मुझे नहीं पता
कि उनका ये आंदोलन जायज है या नहीं
इसका फैसला तो  कानूनबिदों और न्यायलय को करना है

लेकिन इस आंदोलन से जिस आम जनता को समस्या हो रही है 
उसको समझने के लिए कोई तैयार नहीं है 
ना ही रेलये अपनी जिम्मेदारी निभा रही है 
सिबाय
विशेष रिफंड काउंटर, हेल्पलाइन तथा सहायता बूथ की व्यवस्था 

करके अपने कर्तब्यों की इतिश्री कर ली 
राज्य  सरकार भी कोई प्रभाबी कदम नही उठा पा रही है 
पहले पंजे की सरकार थी और अब कमल की है 
लेकिन आंदोलन से निपटने का तरीका एक सा ही है 
जनता की परेशानियों से किसी को कोई सरोकार नहीं है 
गर्मी के दिन 
बच्चो की छुट्टियों  का मौसम 
चार चार महीने पहले से रिजर्वेशन करबाए हुए आम जनता (रेल यात्री)
और अब 
ट्रैन कैंसिलेशन की सौगात 
रेलबे ट्रैक की सुरक्षा की जिम्मेदारी किनकी है 
रेलवे पुलिस की 
रेलवे की 
राज्य सरकार की 
या फिर 
देश के गृह मंत्री की 
ऐसी घटनाओं का संघान स्वता न्यायलय क्यों नहीं लेता है 
सब ने आँख बंद कर के 
मानों  देश की जनता को 
नयी नयी परेशानी देने का मन बना लिया है 
क्या इसका कोई 
समाधान नहीं है 
कोई भी आकर समूह में 
सरकारी जमीन पर कब्ज़ा करले 
और अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए 
आम देश की जनता को 
परेशानी में डाल दे 
और पूरा प्रशाशन कोमा में बना  रहे 
कब बदलेगी ऐसी स्थिति 
और बदलेगी भी या नहीं 
या फिर ये खेल ऐसे ही चलता रहेगा 
और निजाम बदलेंगें 
पर ब्यबस्था नहीं बदलेगी। . 

मदन मोहन सक्सेना
 

 
 
 
 
 
 

 

Thursday, May 21, 2015

भारत के दुर्गम तीर्थस्‍थल

भारत के दुर्गम तीर्थस्‍थल

शिखर जी: झारखंड के गिरीडीह ज़िले में छोटा नागपुर पठार पर स्थित शिखरजी या श्री शिखरजी या पारसनाथ विश्व का सबसे महत्वपूर्ण जैन तीर्थ स्थल है। 1,350 मीटर (4,430 फ़ुट) ऊंचा यह पहाड़ झारखंड का सबसे ऊंचा स्थान भी है, पारसनाथ पर्वत विश्व प्रसिद्ध है। यहां देश भर से हर साल लाखों जैन धर्मावलंबियों आते हैं। गिरीडीह स्टेशन से पहाड़ की तलहटी मधुवन तक 14 से 18 मील दूर है। पहाड़ की चढ़ाई और उतराई की यह यात्रा करीब 18 मील की है, जो बेहद दुर्गम होती है।







 पावागढ़: गुजरात की प्राचीन राजधानी चंपारण के पास स्थित पावागढ़ मंदिर वडोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। पावागढ़ मंदिर ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। काफी ऊंचाई पर बने इस दुर्गम मंदिर की चढ़ाई बेहद कठिन है। अब सरकार ने यहां रोप-वे सुविधा उपलब्ध करवा दी है।



 नैनादेवी : हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थति नैनादेवी देवी शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियो पर स्थित देवी मंदिर है। यह देवी के 51 शक्ति पीठों में शामिल है। ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां जाने का मार्ग दुर्गम है। हालांकि अब तो यहां उड़्डनखटोले, पालकी आदि की भी व्यवस्था है। यह समुद्र तल से 11000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।



बद्रीनाथ: उत्‍तराखंड में अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नाम के दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित बद्रीनाथ देश के महत्‍वपूर्ण तीर्थ स्‍थल में से एक है। गंगा नदी की मुख्य धारा के किनारे बसा यह तीर्थस्थल हिमालय में समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसके पश्चिम में 27 किमी की दूरी पर स्थित बद्रीनाथ शिखर कि ऊंचाई 7,138 मीटर है। यहां पहुंचने की यात्रा भी बेहद दुर्गम है। हर साल यहां लाखों लोग पहुंचते हैं। 

गंगोत्री और यमनोत्री: गंगोत्री और यमुनोत्री दोनों ही उत्तरकाशी जिले में है। यमनोत्री समुद्रतल से 3235 मी. ऊंचाई है और यहां देवी यमुना का मंदिर है। तीर्थ स्थल से यह एक कि. मी. दूर यह स्थल 4421 मी. ऊंचाई पर स्थित है। दुर्गम चढ़ाई होने के कारण श्रद्धालू इस उद्गम स्थल को देखने की हिम्‍मत नहीं जुटा पाते। यहां पांच किलोमीटर की सीधी खड़ी चढ़ाई है। इसी तरह गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थान है। गंगाजी का मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भागीरथी के दाहिने ओर का परिवेश अत्यंत आकर्षक एवं मनोहारी है। यह स्थान उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर स्थित है। इस क्षेत्र में बर्फीले पहाड़,ग्लेशियर,लंबी पर्वत श्रेणियां,गहरी घाटियां,खड़ी चट्टानें और संकरी घाटियां हैं। यह भी काफी दुर्गम है। इस स्थान की समुद्र तल से ऊंचाई 1800 से 7083 मीटर के बीच है। 





 वैष्‍णोदेवी : वैष्‍णो देवी जम्मू-कश्‍मीर के कटरा जिले में आता है। यह हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्‍थल है। यह मंदिर 5,200 फ़ीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है। कटरा समुद्रतल से 2500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। माता के मंदिर में जाने की यात्रा बेहद दुर्गम है। कटरा से 14 किमी की खड़ी चढ़ाई पर मां वैष्‍णोदवी की गुफा है। हालांकि अब हेलीकॉप्‍टर से भी आप यहां पहुंच सकते हैं। सर्दियों में यहां का न्यूनतम तापमान -3 से -4 डिग्री तक चला जाता है और इस मौसम से चट्टानों के खिसकने का खतरा भी रहता है। 




 हेमकुंड साहेब : हेमकुंड साहेब सिखों का पावनधाम है। यहां पहुंचने की यात्रा बहुत ही दुर्गम है। यह तकरीबन 19 किलोमीटर की पहाड़ी यात्रा है। पैदल या खच्‍चरों पर पूरी होने वाली यात्रा में जान का जोखिम भी होता है। गहरी खाई से सटी इस यात्रा में यात्रियों का अक्‍सर गिरने का डर बना रहता है।पिछले साल खाई में गिरने से ही तकरीबन दो दर्जन यात्रियों की मौत हो गई थी। 





 अमरनाथ : अमरनाथ बेहद ही दुर्गम और प्रमुख तीर्थस्थल है। श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में 135 किलोमीटर दूर यह तीर्थस्‍थल समुद्रतल से 13600 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। अमरनाथ की यात्रा बेहद दुर्गम प्राकृतिक परिस्थितियों से होकर गुजरती है। यहां तापमान अक्‍सर माइनस 1 में चला जाता है और यहां बारिश, भूस्‍खलन कभी भी हो सकता है। सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही संवेदनशील और संदिग्ध मानी जाने वाली यात्रा के लिए पहले पंजीयन कराना होता है जबकि बीमार और कमजोर यात्री अक्‍सर इस यात्रा से लौटा दिए जाते हैं। इस यात्रा पर भारत सरकार की पूरी नजर होती है और भारतीय सेना के जवान यहां 24 घंटे श्रद्धालुओं की सहायता के लिए तैनात रहते हैं। 





 कैलाश मानसरोवर : यह भारत के सबसे दुर्गम तीर्थस्‍थानों में से एक है। सन् 1962 में चीन से युद्ध के बाद चीन ने इसे भारत से कब्‍जे में ले लिया। पूरा कैलाश पर्वत 48 किलोमीटर में फैला हुआ है। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 4556 मीटर है। इस तीर्थस्‍थल की यात्रा अत्यधिक कठिन यात्राओं में से एक यात्रा मानी जाती है। इस यात्रा का सबसे अधिक कठिन मार्ग भारत के पड़ोसी देश चीन से होकर जाता है। इस यात्रा के बारे में कहा जाता है कि वहां वे ही लोग जा पाते हैं, जिन्‍हें भोले बाबा स्‍वयं बुलाते हैं। यह यात्रा 28 दिन की होती है। हालांकि अभी तक इस्तेमाल होने वाला लिपुलेख दर्रा बहुत दुर्गम माना जाता रहा है और केवल युवा लोग ही यह यात्रा कर पाते थे जबकि निर्बल, अशक्त बुजुर्ग के लिए यह जान का जोखिम लेने के अलावा कुछ नहीं है। हालांकि इसी साल से चीन के उत्‍तराखंड से ही नाथुलादर्रे का मार्ग खोल देने से यह यात्रा अब आसान हो गई है, लेकिन फिर भी यह उतनी आसान नहीं है।






Wednesday, May 20, 2015

अलबिदा बा

  अलबिदा बा     
   टीवी की जानीमानी अभिनेत्री और दर्शकों की 'बा' सुधा शिवपुरी का आज सुबह निधन हो गया. वे 78 वर्ष की थी. वे लोकप्रिय टीवी सीरीयल 'क्‍योंकि सास भी कभी बहु थी' में 'बा' के किरदार में नजर आई थी और इसके बाद उनके फैंस उन्‍हें इसी नाम से जानते थे.



14 जुलाई 1937 को मध्यप्रदेश के इंदौर में पैदा हुईं सुधा शिवपुरी ने टीवी सीरियल्स के अलावा कई हिंदी फिल्मों में भी काम किया। उन्होंने अपनी बीमार मां को मदद देने के लिए बहुत कम उम्र में ही अभिनय शुरू कर दिया था। 1977 में प्रदर्शित बासु चटर्जी की फिल्म 'स्वामी' उनकी पहली फिल्म थी।
इस तरह उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ। जिसके बाद उन्होंने 'इंसाफ का तराजू', 'सावन को आने दो', 'विधाता', 'पिंजर', और 'माया मेमसाब' जैसी यादगार फिल्मों में काम किया।
सुधा शिवपुरी ने 1968 में एक्टर ओम शिवपुरी के साथ शादी की। ये तब की बात है, जब उनके पति संघर्ष कर रहे थे। इसके बाद दोनों ने एक थियेटर कंपनी शुरू की। 1990 में पति की मौत के बाद सुधा ने एक बार फिर एक्टिंग की दुनिया की तरफ रुख किया और उन्होंने 'मिसिंग', 'रिश्ते' और 'सरहदें बंधन', जैसे टीवी शो में काम किया।
लेकिन उन्हें बड़ा ब्रेक 2000 में प्रोड्यूसर एकता कपूर के पॉपुलर सीरियल 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' में मिला। इसमें उनके द्वारा निभाया गया 'बा' का किरदार घर-घर में लोकप्रिय हुआ।एकता कपूर के ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ में कुलमाता की भूमिका निभाने वाली सुधा ने कई टीवी धारावाहिकों में काम किया है, जिसमें ‘मिसिंग’, ‘रिश्ते’, ‘सरहदें’ और ‘बंधन’ शामिल हैं। उन्होंने ‘शीशे का घर’, ‘वक्त का दरिया’, ‘दमन’’, ‘संतोषी मां,’, ‘यह घर’, ‘कसम से’ और ‘किस देश में है मेरा दिल’ जैसे धारावाहिकों में भी काम किया है।  उनका एक बेटा और बेटी है.सुधा शिवपुरी ने कई स्‍टार परिवार अवार्ड्स भी अपने नाम किये थे. भगबान उनकी आत्मा को शांति दे और उनके परिबार को संकट की इस घड़ी  में धैर्य दे   

Friday, May 15, 2015

एक मुक्तक (तुम्हीं हो )

एक मुक्तक (तुम्हीं  हो )


मेरा पहला प्यार तुम्हीं  हो 
सच्चा प्यारा यार तुम्हीं हो 
तन में साँसें जब तक मेरे 
जीबन का आधार तुम्हीँ  हो 

मदन मोहन सक्सेना

Saturday, April 25, 2015

मेरा मन सोचता है कि आखिर क्यों ?



आज   जब आया भूकंप  
नेपाल में पुरे उत्तर प्रदेश में
अचानक प्राकतिक दुर्घटना घटी
उसी पल जमीन फटी
सजे सम्भरें सुसज्जित गृह खँडहर में बदल गये
शमशान गृह में ही सारे शहर ही बदल गये
मेरा मन सोचता है कि

ये चुपचाप सा लेता हुआ युबा कौन  है
क्या सोचता है और क्यों मौन है
ये शायद अपनें बिचारों में खोया है 
नहीं नहीं लगता है ,ये सोया है
इसे लगता नौकरी कि तलाश है 
अपनी योग्यता का इसे बखूबी एहसास है 
सोचता था कि कल सुबह जायेंगें 
योग्यता के बल पर उपयुक्त पद पा जायेंगें 
पर अचानक जब आया भूकंप 
मन कि आशाएं बेमौसम ही  जल गयीं 
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी
मेरा मन सोचता है कि
ये बृद्ध पुरुष किन विचारों में खोया है
आँखें खुली हैं किन्तु लगता है सोया है
इसने सोचा था कि
कल जब  अपनी बेटी का ब्याह होगा
बर्षों से संजोया सपना तब पूरा होगा
उसे अपने ही घर से
अपने पति के साथ जाना होगा
अपने बलबूते पर घर को स्वर्ग जैसा बनाना होगा
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही  जल गयीं 
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी
मेरा मन सोचता है कि
ये बालक तो अब बिलकुल मौन है
इस बच्चे का संरछक न जाने कौन है
लगता है कि
मा ने बेटे को प्यार से बताया है
बेटे को ये एतबार भी दिलाया है
कल जब सुबह होगी 
सूरज दिखेगा और अँधेरा मिटेंगा
तब हम बाहर जायेंगें 
और तुम्हारे लिए 
खूब सारा दूध ले आयेंगें 
शायद इसी एहसास में 
दूध मिलने कि आस में 
चुपचाप सा मुहँ खोले सोया है 
शांत है और अब तलक न रोया है 
पर अचानक जब आया भूकंप 
मन कि आशाएं बेमौसम ही  जल गयीं 
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी

मेरा मन सोचता है कि  
ये नबयौब्ना चुपचाप क्यों सोती है 
न मुस्कराती है और न रोती है 
सोचा था कि ,कल जब पिया आयेंगें
बहुत दिनों के बाद मिल पायेंगें
जी भर के उनसे बातें करेंगें
प्यार का एहसास साथ साथ करेंगें
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही  जल गयीं 
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी

मेरा मन सोचता है कि 
आखिर क्यों ?
युबक ,बृद्ध पुरुष ,बालक,नबयौबना पर
अचानक ये कौन सा कहर  बरपा है 
किन्तु इन सब बातों का
किसी पर भी, कुछ नहीं हो रहा असर
बही रेडियो ,टीवी का संगीतमय शोर 
घृणा ,लालच स्वार्थ की आजमाइश और जोर
मलबा ,टूटे हुयें  घर ,स्त्री पुरुषों की धेर सारी  लाशें
बिखरतें हुयें सपनें और सिसकती हुईं आसें
इन सबको देखने और सुनने के बाद  
भोगियों को दिए गये बही खोखले बादे
अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिये
 कार्य करने के इरादे
बही नेताओं के जमघतो का मंजर
आश्बास्नों में छिपा हुआ घातक सा खंजर

मेरा मन सोचता है कि
आखिर  ऐसा क्यों हैं कि
क्या इसका कोई निदान नहीं है
आपसी बैमन्सय नफरत स्वार्थपरता को देखकर
एक बार फिर अपनी धरती माँ कापें
इससे पहले ही हम सब 
आइए 
हम सब आपस में साथ हो
भाईचारे प्यार कि आपस में बात हो 
ताकि  
युबक ,बृद्ध पुरुष ,बालक,नबयौबना 
सभी के सपनें और पुरे अरमान हों 
सारी धरती पर फिर से रोशन जहान हो ....... 

   
 प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना






 


Wednesday, April 22, 2015

चार पल

चार पल



प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल  से

दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल से

बँट  गयी सारी जमी फिर बँट गया ये आसमान
अब खुदा बँटने  लगा है इस तरह की तूल से

सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल से

आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

चार पल की जिंदगी में चंद  साँसों का सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

Thursday, April 9, 2015

प्यार ही प्यार

प्यार ही प्यार


प्यार रामा में है प्यारा अल्लाह लगे ,प्यार के सूर तुलसी ने किस्से लिखे
प्यार बिन जीना दुनिया में बेकार है ,प्यार बिन सूना सारा ये संसार है

प्यार पाने को दुनिया में तरसे सभी, प्यार पाकर के हर्षित हुए हैं सभी
प्यार से मिट गए सारे शिकबे गले ,प्यारी बातों पर हमको ऐतबार है

प्यार के गीत जब गुनगुनाओगे तुम ,उस पल खार से प्यार पाओगे तुम
प्यार दौलत से मिलता नहीं है कभी ,प्यार पर हर किसी का अधिकार है

प्यार से अपना जीवन सभारों जरा ,प्यार से रहकर इक पल गुजारो जरा
प्यार से मंजिल पाना है मुश्किल नहीं , इन बातों से बिलकुल न इंकार है

प्यार के किस्से हमको निराले लगे ,बोलने के समय मुहँ में ताले लगे
हाल दिल का बताने  हम जब  मिले ,उस समय को हुयें हम लाचार हैं

प्यार से प्यारे मेरे जो दिलदार है ,जिनके दम से हँसीं मेरा संसार है
उनकी नजरो से नजरें जब जब मिलीं,उस पल को हुए उनके दीदार हैं

प्यार जीवन में खुशियाँ लुटाता रहा ,भेद आपस के हर पल मिटाता रहा
प्यार जीवन की सुन्दर कहानी सी है ,उस कहानी का मदन एक किरदार है


मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, March 11, 2015

ग़ज़ल (ये कैसा परिवार )

ग़ज़ल (ये कैसा परिवार )

मेरे जिस टुकड़े को दो पल की दूरी बहुत सताती थी
जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार हुआ .
रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या ब्यबहार हुआ ..
दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से
धर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्यापार हुआ …
मेरे प्यारे गुलशन को न जानें किसकी नजर लगी है
युबा को अब काम नहीं है बचपन अब बीमार हुआ ….
जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रेंड हो गए
शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ …..
ताई ताऊ , दादा दादी ,मौसा मौसी दूर हुएँ अब
हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ.

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

Friday, February 13, 2015

एक पुरानी कहानी


एक पुरानी कहानी।

प्रेम कभी अकेला नहीं जाता. प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं.
 
 
 
 

एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा. वह उन्हें जानती नहीं थी. औरत ने कहा – कृपया भीतर आइये और भोजन ...करिये.
संत बोले – क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?
औरत ने कहा – नहीं, वे अभी बाहर गए हैं.
संत बोले – हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों.
शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया.
औरत के पति ने कहा – जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ.
औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा.
संत बोले – हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते.
पर क्यों? – औरत ने पूछा.
उनमें से एक संत ने कहा – मेरा नाम धन है – फिर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं. हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है. आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है.
औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया. उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला – यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए. हमारा घर खुशियों से भर जाएगा.
लेकिन उसकी पत्नी ने कहा – मुझे लगता है कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए.
उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी. वह उनके पास आई और बोली – मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए. प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं है.
तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए – उसके माता-पिता ने कहा.
औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में प्रवेश कर भोजन ग्रहण करें.
प्रेम घर की ओर बढ़ चले. बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे. औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था. आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?
उनमें से एक ने कहा – यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता. आपने प्रेम को आमंत्रित किया है. प्रेम कभी अकेला नहीं जाता. प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं.

Tuesday, January 13, 2015

क्यों हर कोई परेशां है

क्यों हर कोई परेशां है

दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है
ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है

अपनों संग समय गुजरे इससे बेहतर क्या होगा
कोई तन्हा रहना नहीं चाहें मजबूरी बनाती है

किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है
बिना मेहनत के मंजिल कब किसके हाथ आती है

क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से
दशा कैसी भी अपनी हो किसको रास आती है

दिल की बात दिल में ही दफ़न कर लो तो अच्छा है
पत्थर दिल ज़माने में कहीं ये बात भाती है

भरोसा खुद पर करके जो समय की नब्ज़ को जानें
“मदन ” हताशा और नाकामी उनसे दूर जाती है

मदन मोहन सक्सेना

Monday, December 1, 2014

कल शाम एक घटना टीवी पर देखी

कल शाम एक घटना टीवी पर देखी






मूक बधिर बस यात्री 
अपने आसपास घटित घटना से बेपरबाह 
हरियाणा रोडवेज के ड्राइवर और कंडक्टर 
अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते  हुए 
लाचार सिस्टम की खामियों का फायदा उठाते हुए 
तीन नौजबान  
और इन सबसे बहादुरी से अपना बचाव करती 
और प्रतिकूल जबाब देती हुयी 
दो कॉलेज से आती देश की दो बहादुर बेटियां 
सलाम उनके जज्बे को 
और लानत सोये हुए समाज और प्रशासन और उसकी ब्यबस्था को 

 
 मदन मोहन सक्सेना 



Tuesday, November 25, 2014

पाने की लिये ख़्वाहिश





पाने की लिये ख़्वाहिश जब बाज़ार जाता हूँ
लुटने का अजब एहसास  दिल मायूस कर देता

मदन मोहन सक्सेना