Thursday, September 13, 2012

मुक्तक




भटक रही थी मेरी नजर जिस हमसफ़र की तलाश में
मैं जी रहा था अब तलक जिस खूब सूरत आस में
देखा तुम्हें नजरें मिली मानों प्यार मेरा मिल गया
कल तलक ब्याकुल था जो दिल  अब करार मिल गया




मुक्तक प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

Monday, September 10, 2012

मुक्तक


















मयखाने की चौखट को कभी मदिर न समझना तुम
मयखाने जाकर पीने की मेरी आदत नहीं थी ...

चाहत से जो देखा मेरी ओर उन्होंने
आँखों में कुछ छलकी मैंने थोड़ी पी थी.




प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना  


Friday, September 7, 2012

मुक्तक




















ख़यालों  में  बो मेरे आते भी हैं
रातो को नीदें   चुराते   भी हैं 
कहतें नहीं राज दिल का  बह  हमसे  
चोरी से    नजरे  मिलातें  भी हैं


मुक्तक प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना