Friday, June 1, 2012

गीत




अपना दिल कभी था जो, हुआ है आज बेगाना
आकर के यूँ चुपके से, मेरे दिल में जगह पाना 
दुनियां में तो अक्सर ही ,सभल कर लोग गिर जाते 
मगर उनकी ये आदत है की  गिरकर भी सभल जाना

आकर पास मेरे फिर धीरे से यूँ मुस्काना
पाकर पास मुझको फिर धीरे धीरे शरमाना
देखा तो मिली नजरें फिर नजरो का झुका जाना 
ये उनकी ही अदाए  है  मुश्किल है कहीं पाना

जो बाते रहती दिल में है ,जुबां पर भी नहीं लाना
बो लम्बी झुल्फ रेशम सी और नागिन सा लहर खाना
बो नीली झील सी आँखों में दुनियां का  नजर आना
बताओ तुम दे दू क्या ,अपनी नजरो को मैं नज़राना




काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना
   

Wednesday, May 23, 2012

मुक्तक






रोता  नहीं है कोई भी किसी और  के लिए
सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं

प्यार की दौलत को कभी छोटा न समझना तुम
होते है बदनसीब ,जो पाकर इसे खोते हैं  


मुक्तक प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना