भारत के दुर्गम तीर्थस्थल
शिखर जी: झारखंड के गिरीडीह ज़िले में छोटा नागपुर पठार पर स्थित शिखरजी या
श्री शिखरजी या पारसनाथ विश्व का सबसे महत्वपूर्ण जैन तीर्थ स्थल है।
1,350 मीटर (4,430 फ़ुट) ऊंचा यह पहाड़ झारखंड का सबसे ऊंचा स्थान भी है,
पारसनाथ पर्वत विश्व प्रसिद्ध है। यहां देश भर से हर साल लाखों जैन
धर्मावलंबियों आते हैं। गिरीडीह स्टेशन से पहाड़ की तलहटी मधुवन तक 14 से
18 मील दूर है। पहाड़ की चढ़ाई और उतराई की यह यात्रा करीब 18 मील की है,
जो बेहद दुर्गम होती है।
पावागढ़: गुजरात की प्राचीन राजधानी चंपारण के पास स्थित पावागढ़ मंदिर
वडोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। पावागढ़ मंदिर ऊंची पहाड़ी की
चोटी पर स्थित है। काफी ऊंचाई पर बने इस दुर्गम मंदिर की चढ़ाई बेहद कठिन
है। अब सरकार ने यहां रोप-वे सुविधा उपलब्ध करवा दी है।
नैनादेवी : हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थति नैनादेवी देवी
शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियो पर स्थित देवी मंदिर है। यह देवी के 51
शक्ति पीठों में शामिल है। ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां जाने का मार्ग
दुर्गम है। हालांकि अब तो यहां उड़्डनखटोले, पालकी आदि की भी व्यवस्था है।
यह समुद्र तल से 11000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
बद्रीनाथ: उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नाम के
दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित बद्रीनाथ देश के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल
में से एक है। गंगा नदी की मुख्य धारा के किनारे बसा यह तीर्थस्थल हिमालय
में समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भगवान विष्णु की
प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसके पश्चिम
में 27 किमी की दूरी पर स्थित बद्रीनाथ शिखर कि ऊंचाई 7,138 मीटर है। यहां
पहुंचने की यात्रा भी बेहद दुर्गम है। हर साल यहां लाखों लोग पहुंचते हैं।

गंगोत्री और यमनोत्री: गंगोत्री और यमुनोत्री दोनों ही उत्तरकाशी जिले में
है। यमनोत्री समुद्रतल से 3235 मी. ऊंचाई है और यहां देवी यमुना का मंदिर
है। तीर्थ स्थल से यह एक कि. मी. दूर यह स्थल 4421 मी. ऊंचाई पर स्थित है।
दुर्गम चढ़ाई होने के कारण श्रद्धालू इस उद्गम स्थल को देखने की हिम्मत
नहीं जुटा पाते। यहां पांच किलोमीटर की सीधी खड़ी चढ़ाई है। इसी तरह गंगोत्री
गंगा नदी का उद्गम स्थान है। गंगाजी का मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की
ऊंचाई पर स्थित है। भागीरथी के दाहिने ओर का परिवेश अत्यंत आकर्षक एवं
मनोहारी है। यह स्थान उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर स्थित है। इस
क्षेत्र में बर्फीले पहाड़,ग्लेशियर,लंबी पर्वत श्रेणियां,गहरी
घाटियां,खड़ी चट्टानें और संकरी घाटियां हैं। यह भी काफी दुर्गम है। इस
स्थान की समुद्र तल से ऊंचाई 1800 से 7083 मीटर के बीच है।

वैष्णोदेवी : वैष्णो देवी जम्मू-कश्मीर के कटरा जिले में आता है। यह
हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह मंदिर 5,200 फ़ीट की ऊंचाई और कटरा
से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है। कटरा समुद्रतल से
2500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। माता के मंदिर में जाने की यात्रा बेहद
दुर्गम है। कटरा से 14 किमी की खड़ी चढ़ाई पर मां वैष्णोदवी की गुफा है।
हालांकि अब हेलीकॉप्टर से भी आप यहां पहुंच सकते हैं। सर्दियों में यहां
का न्यूनतम तापमान -3 से -4 डिग्री तक चला जाता है और इस मौसम से चट्टानों
के खिसकने का खतरा भी रहता है।
हेमकुंड साहेब : हेमकुंड साहेब सिखों का पावनधाम है। यहां पहुंचने की
यात्रा बहुत ही दुर्गम है। यह तकरीबन 19 किलोमीटर की पहाड़ी यात्रा है।
पैदल या खच्चरों पर पूरी होने वाली यात्रा में जान का जोखिम भी होता है।
गहरी खाई से सटी इस यात्रा में यात्रियों का अक्सर गिरने का डर बना रहता
है।पिछले साल खाई में गिरने से ही तकरीबन दो दर्जन यात्रियों की मौत हो गई
थी।
अमरनाथ : अमरनाथ बेहद ही दुर्गम और प्रमुख तीर्थस्थल है। श्रीनगर शहर के
उत्तर-पूर्व में 135 किलोमीटर दूर यह तीर्थस्थल समुद्रतल से 13600 फुट की
ऊंचाई पर स्थित है। अमरनाथ की यात्रा बेहद दुर्गम प्राकृतिक परिस्थितियों
से होकर गुजरती है। यहां तापमान अक्सर माइनस 1 में चला जाता है और यहां
बारिश, भूस्खलन कभी भी हो सकता है। सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही
संवेदनशील और संदिग्ध मानी जाने वाली यात्रा के लिए पहले पंजीयन कराना
होता है जबकि बीमार और कमजोर यात्री अक्सर इस यात्रा से लौटा दिए जाते
हैं। इस यात्रा पर भारत सरकार की पूरी नजर होती है और भारतीय सेना के जवान
यहां 24 घंटे श्रद्धालुओं की सहायता के लिए तैनात रहते हैं।

कैलाश मानसरोवर : यह भारत के सबसे दुर्गम तीर्थस्थानों में से एक है। सन्
1962 में चीन से युद्ध के बाद चीन ने इसे भारत से कब्जे में ले लिया। पूरा
कैलाश पर्वत 48 किलोमीटर में फैला हुआ है। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से लगभग
4556 मीटर है। इस तीर्थस्थल की यात्रा अत्यधिक कठिन यात्राओं में से एक
यात्रा मानी जाती है। इस यात्रा का सबसे अधिक कठिन मार्ग भारत के पड़ोसी
देश चीन से होकर जाता है। इस यात्रा के बारे में कहा जाता है कि वहां वे ही
लोग जा पाते हैं, जिन्हें भोले बाबा स्वयं बुलाते हैं। यह यात्रा 28 दिन
की होती है। हालांकि अभी तक इस्तेमाल होने वाला लिपुलेख दर्रा बहुत दुर्गम
माना जाता रहा है और केवल युवा लोग ही यह यात्रा कर पाते थे जबकि निर्बल,
अशक्त बुजुर्ग के लिए यह जान का जोखिम लेने के अलावा कुछ नहीं है। हालांकि
इसी साल से चीन के उत्तराखंड से ही नाथुलादर्रे का मार्ग खोल देने से यह
यात्रा अब आसान हो गई है, लेकिन फिर भी यह उतनी आसान नहीं है।