चाल ,चरित्र और चेहरा की बात करने बाले आम आदमी के साथ होने का दाबा करने बाले धर्म निरपेक्ष्ता का राग अलापने बाले दलित चेतना की बात करने बाले समाज बाद की दुहाई देने बाले किसान ,गरीब ,शोषित की याद रखने बाले सब ने मिलकर कुछ ही पल में मुख्य सुचना आयुक्त्य द्वारा आम जनता को दिए गए जानकारी के अधिकार को जबरदस्ती छीन लिया अब जनता नहीं जान सकेगी कितनी परेशानी से जनता के हितैषी कैसे कैसे क्रिया कलाप जनता के हित के लिए किया करते हैं .
जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा शहर में ठिकाना खोजा पता नहीं आजकल हर कोई मुझसे आँख मिचौली का खेल क्यों खेला करता है जिसकी जब जरुरत होती है बह बहाँ से गायब मिलता है और जब जिसे जहाँ नहीं होना चाहियें जबरदस्ती कब्ज़ा जमा लेता है कल की ही बात है मेरी बहुत दिनों के बात उससे मुलाकात हुयी सोचा गिले शिक्बे दूर कर लूँ पहले गाँव में तो उससे रोज का मिलना जुलना होता था जबसे मुंबई में इधर क्या आया या कहिये मुंबई जैसेबड़े शहरों की दीबारों के बीच आकर फँस गया पूछा क्या बात है आजकल आती नहीं हो इधर। पहले तो हमारे आंगन भर-भर आती थी दादी की तरह छत पर पसरी रहती थी हमेशा तंग दिल पड़ोसियों ने अपनी इमारतों की दीवार
क्या ऊँची की तुम तो इधर का रास्ता ही भूल गयी तुम्हें अक्सर सुबह देखता हूं कि पड़ी रहती हो तंगदिल और धनी लोगों के छज्जों पर हमारी छत तो अब तुम्हें भाती ही नहीं है क्या करें बहुत मुश्किल होती है जब कोई अपना (बर्षों से परिचित) आपको आपके हालत पर छोड़कर चला जाता है लेकिन याद रखो ऊँची इमारतों के ऊँचे लोग बड़ी सादगी से लूटते
हैं फिर चाहे वो दौलत हो या इज्जत हो महीनों के बाद मिली हो इसलिए सारी शिकायतें सुना डाली उसने कुछ बोला नहीं बस हवा में खुशबु घोल कर खिड़की के पीछे चली गई सोचा कि उसे पकड़कर आगोश में भर लूँ धत्त तेरी की फिर गायब ये महानगर
की धूप भी न बिलकुल तुम पर गई है हमेशा आँख मिचौली का खेल खेला करती है बिना ये जाने कि इस समय इस का मौका है भी या नहीं …
आज शिक्षक दिवस है यानि भारत के पूर्व राष्ट्रपति और दार्शनिक तथा शिक्षाविद डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन प्रश्न है कि आज शिक्षक दिबस की कितनी जरुरत है शिक्षक लोग आज के दिन बच्चों से मिले तोहफे से खुश हो जाते हैं और बच्चे शिक्षक को खुश देख कर खुश हो जातें हैं शिक्षा का मतलब सिर्फ जानकारी देना ही नहीं है जानकारी और तकनीकी गुर का अपना महत्व है लेकिन बौद्धिक झुकाव और लोकतांत्रिक भावना का भी महत्व है इन भावनाओं के साथ छात्र उत्तरदायी नागरिक बनते हैं जब तक शिक्षक ,शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होगा तब तक शिक्षा को अपना उद्देश्य नहीं मिल पायेगा हमारी संस्कृति में शिक्षक और गुरु का दर्जा तो भगवान से भी ऊपर माना गया है लेकिन आज का गुरु गुरु कहलाने लायक है इस पर प्रश्नचिह्न हैं कितने ही गुरु ऐसे हैं जिन पर घिनौने अपराधों के आरोप लगे हुए हैं शिक्षक भी गुरु के पद से तो उतर ही चुका है अब वह शिक्षक भी रह पाएगा इसमें संदेह है परिणाम ये हुआ है कि आज न तो छात्रों के लिए कोई शिक्षक उनका आर्दश , उनका मार्गदर्शक गुरू और जीवनभर की प्रेरणा बन पाता है और न ही शिक्षक बनने को उत्सुक भी हैं बही घिसी पिटी शिक्षा प्रणाली को उम्र भर खुद ढोता है और छात्रों की पीठ पर लादता हुआ एक शिक्षक अब इस आस में कभी नहीं रहता कि उसका कोई छात्र देश और समाज के निर्माण में कोई बडी सकारात्मक भूमिका निभाएगा सवाल ये कि इन सब के लिए कौन जिम्मेदार है शिक्षक , शिक्षा ब्यबस्था या समाज शिक्षक को जिस सम्मान से देखा जाना चाहियें जो सुबिधाएं शिक्षक को मिलनी चाहियें ,क्या मिल रहीं हैं अगर नहीं तो आज के भौतिक बादी युग में कौन शिक्षक बनना चाहेंगा यदि शिक्षक संतुष्ट नहीं रहेगा तो हमारे बच्चों का भबिष्य क्या होगा देश सेबा में उनका कितना योगदान होगा और हम किस दिशा में जा रहें हैं समझना ज्यादा मुश्किल नहीं हैं।