Thursday, May 17, 2018

देखना है गर उन्हें ,साधारण दर्जें की रेल देखिये





साम्प्रदायिक कहकर जिससे  दूर दूर रहते थे
राजनीती में कोई  अछूत नहीं ,ये खेल देखिये

दूध मंहगा प्याज मंहगा और जीना मंहगा हो गया
छोड़ दो गाड़ी से जाना ,मँहगा अब तेल देखिये

कल तलक थे साथ जिसके, आज उससे दूर हैं
सेक्युलर कम्युनल का ऐसा घालमेल देखिये

हो गए कैसे चलन अब आजकल गुरूओं  के यार
मिलते नहीं बह आश्रम में ,अब  जेल देखिये

बात करते हैं सभी क्यों आज कल जनता की लोग
देखना है गर उन्हें ,साधारण दर्जें की रेल देखिये

देखना है गर उन्हें ,साधारण दर्जें की रेल देखिये
मदन मोहन सक्सेना

Friday, April 27, 2018

किसको दोस्त माने हम और किसको गैर कह दें हम

मिली दौलत ,मिली शोहरत,मिला है मान उसको क्यों
मौका जानकर अपनी जो बात बदल जाता है .

किसी का दर्द पाने की तमन्ना जब कभी उपजे
जीने का नजरिया फिर उसका बदल जाता है ..

चेहरे की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
तन्हाई के आलम में ये अक्सर बदल जाता है ...

किसको दोस्त माने हम और किसको गैर कह दें हम
जरुरत पर सभी का जब हुलिया बदल जाता है ....

दिल भी यार पागल है ना जाने दीन दुनिया को
किसी पत्थर की मूरत पर अक्सर मचल जाता है .....

क्या बताएं आपको हम अपने दिल की दास्ताँ
जितना दर्द मिलता है ये उतना संभल जाता है ......


किसको दोस्त माने हम और किसको गैर कह दें हम


मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, April 17, 2018

क़यामत से क़यामत तक हम इन्तजार कर लेंगें



बोलेंगे  जो  भी  हमसे  वो  हम ऐतवार कर  लेगें
जो कुछ  भी उनको प्यारा  है  हम उनसे प्यार कर  लेगें

वो  मेरे पास आयेंगे ये सुनकर के ही  सपनो  में
क़यामत  से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें

मेरे जो भी सपने है और सपनों में जो सूरत है
उसे दिल में हम सज़ा करके नजरें चार कर लेगें

जीवन भर की सब खुशियाँ  उनके बिन अधूरी है
अर्पण आज उनको हम जीबन हजार कर देगें

हमको प्यार है उनसे और करते प्यार वो हमको
अपना प्यार सच्चा है हर  मंजिल पर कर लेगें

क़यामत से क़यामत तक हम इन्तजार कर लेंगें


मदन मोहन सक्सेना

Friday, April 13, 2018

अब सन्नाटे के घेरे में ,जरुरत भर ही आबाजें





कंक्रीटों के जंगल में नहीं लगता है मन अपना
जमीं भी हो गगन भी हो ऐसा घर बनातें हैं

ना ही रोशनी आये ,ना खुशबु ही बिखर पाये
हालत देखकर घर की पक्षी भी लजातें हैं

दीबारें ही दीवारें नजर आये घरों में क्यों
पड़ोसी से मिले नजरें तो कैसे मुहँ बनाते हैं

मिलने का चलन यारों ना जानें कब से गुम अब है
टी बी और नेट से ही समय अपना बिताते हैं

ना दिल में ही जगह यारों ना घर में ही जगह यारों
भूले से भी मेहमाँ को नहीं घर में टिकाते हैं

अब सन्नाटे के घेरे में ,जरुरत भर ही आबाजें
घर में ,दिल की बात दिल में ही यारों अब दबातें हैं

अब सन्नाटे के घेरे में ,जरुरत भर ही आबाजें
मदन मोहन सक्सेना

Thursday, March 22, 2018

तन्हा रहता है भीतर से बाहर रिश्तों का मेला है

पैसोँ की ललक देखो दिन कैसे दिखाती है
उधर माँ बाप तन्हा हैं इधर बेटा अकेला है

रुपये पैसोँ की कीमत को वह ही जान सकता है
बचपन में गरीवी का जिसने दंश झेला है

अपने थे ,समय भी था ,समय वह और था यारों
समय पर भी नहीं अपने बस मजबूरी का रेला है

हर इन्सां की दुनियाँ में इक जैसी कहानी है
तन्हा रहता है भीतर से बाहर रिश्तों का मेला है

समय अच्छा बुरा होता ,नहीं हैं दोष इंसान का
बहुत मुश्किल है ये कहना किसने खेल खेला है

जियो ऐसे कि हर इक पल मानो आख़िरी पल है
आये भी अकेले थे और जाना भी अकेला है

तन्हा रहता है भीतर से बाहर रिश्तों का मेला है

मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, March 13, 2018

हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है





हर लम्हा तन्हाई का एहसास मुझको होता है
जबकि दोस्तों के बीच अपनी गुज़री जिंदगानी है

क्यों अपने जिस्म में केवल ,रंगत खून की दिखती
औरों का लहू बहता , तो सबके लिए पानी है

खुद को भूल जाने की ग़लती सबने कर दी है
हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है

दौलत के नशे में जो अब दिन को रात कहतें हैं
हर गलती की कीमत भी, यहीं उनको चुकानी है

मदन ,वक़्त की रफ़्तार का कुछ भी भरोसा है नहीं
किसको जीत मिल जाये, किसको हार पानी है

सल्तनत ख्वाबों की मिल जाये तो अपने लिए बेहतर है
दौलत आज है तो क्या , आखिर कल तो जानी है

हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है
मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, March 6, 2018

समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब समय ना है






दीवारें ही दीवारें नहीं दीखते अब घर यारों
बड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले है.

उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं

जिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता है
दुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं

जीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा है
खोया है उसी की चाह में ,ये दिल क्यों मचले है

समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब समय ना है
रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं


समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब समय ना है


मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, February 27, 2018

हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .





मन से मन भी मिल जाये , तन से तन भी मिल जाये
प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है

मौसम आज रंगों का छायी अब खुमारी है
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है

ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है

क्या जीजा हों कि साली हों ,देवर हो या भाभी हो
दिखे रंगनें में रंगानें में , सभी मशगूल होली है

ना शिकबा अब रहे कोई , ना ही दुश्मनी पनपे
गले अब मिल भी जाओं सब, आयी आज होली है

प्रियतम क्या प्रिया क्या अब सभी रंगने को आतुर हैं
चलो हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .

हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .


मदन मोहन सक्सेना

Thursday, January 25, 2018

उसकी यादों का दिया अपने दिल में यार जलता है

मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है

किसकी कुर्बानी को किसने याद रक्खा है दुनिया में
जलता तेल और बाती है कहते दीपक जलता है

मुहब्बत को बयाँ करना किसके यार बश में है
उसकी यादों का दिया अपने दिल में यार जलता है

बैसे जीवन के सफर में तो कितने लोग मिलते हैं
किसी चेहरे पे अपना  दिल  अभी भी तो मचलता है

समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारों
रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है

मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है

उसकी यादों का दिया अपने दिल में यार जलता है
मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, January 17, 2018

जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है


जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है


मेरे मालिक मेरे मौला ये क्या दुनिया बनाई है
किसी के पास खाने को  मगर वह खा नहीं पाये

तेरी दुनियां में कुछ बंदें, करते काम क्यों गंदें
किसी के पास कुछ भी ना, भूखे पेट सो जाये

जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है
तेरी बातोँ को तू जाने, समझ अपनी ना कुछ आये

तुझे पाने की कोशिश में कहाँ कहाँ मैं नहीं घूमा
जब रोता बच्चा मुस्कराता है तू ही तू नजर आये

ना रिश्तों की महक दिखती ना बातोँ में ही दम दीखता
क्यों मायूसी ही मायूसी जिधर देखो नज़र आये

गुजारिश अपनी सबसे है कि जीयो और जीने दो
ये जीवन कुछ पलों का है पता कब मौत आ जाये

मदन मोहन सक्सेना