Wednesday, April 22, 2015

चार पल

चार पल



प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल  से

दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल से

बँट  गयी सारी जमी फिर बँट गया ये आसमान
अब खुदा बँटने  लगा है इस तरह की तूल से

सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल से

आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

चार पल की जिंदगी में चंद  साँसों का सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

Thursday, April 9, 2015

प्यार ही प्यार

प्यार ही प्यार


प्यार रामा में है प्यारा अल्लाह लगे ,प्यार के सूर तुलसी ने किस्से लिखे
प्यार बिन जीना दुनिया में बेकार है ,प्यार बिन सूना सारा ये संसार है

प्यार पाने को दुनिया में तरसे सभी, प्यार पाकर के हर्षित हुए हैं सभी
प्यार से मिट गए सारे शिकबे गले ,प्यारी बातों पर हमको ऐतबार है

प्यार के गीत जब गुनगुनाओगे तुम ,उस पल खार से प्यार पाओगे तुम
प्यार दौलत से मिलता नहीं है कभी ,प्यार पर हर किसी का अधिकार है

प्यार से अपना जीवन सभारों जरा ,प्यार से रहकर इक पल गुजारो जरा
प्यार से मंजिल पाना है मुश्किल नहीं , इन बातों से बिलकुल न इंकार है

प्यार के किस्से हमको निराले लगे ,बोलने के समय मुहँ में ताले लगे
हाल दिल का बताने  हम जब  मिले ,उस समय को हुयें हम लाचार हैं

प्यार से प्यारे मेरे जो दिलदार है ,जिनके दम से हँसीं मेरा संसार है
उनकी नजरो से नजरें जब जब मिलीं,उस पल को हुए उनके दीदार हैं

प्यार जीवन में खुशियाँ लुटाता रहा ,भेद आपस के हर पल मिटाता रहा
प्यार जीवन की सुन्दर कहानी सी है ,उस कहानी का मदन एक किरदार है


मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, March 11, 2015

ग़ज़ल (ये कैसा परिवार )

ग़ज़ल (ये कैसा परिवार )

मेरे जिस टुकड़े को दो पल की दूरी बहुत सताती थी
जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार हुआ .
रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या ब्यबहार हुआ ..
दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से
धर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्यापार हुआ …
मेरे प्यारे गुलशन को न जानें किसकी नजर लगी है
युबा को अब काम नहीं है बचपन अब बीमार हुआ ….
जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रेंड हो गए
शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ …..
ताई ताऊ , दादा दादी ,मौसा मौसी दूर हुएँ अब
हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ.

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

Friday, February 13, 2015

एक पुरानी कहानी


एक पुरानी कहानी।

प्रेम कभी अकेला नहीं जाता. प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं.
 
 
 
 

एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा. वह उन्हें जानती नहीं थी. औरत ने कहा – कृपया भीतर आइये और भोजन ...करिये.
संत बोले – क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?
औरत ने कहा – नहीं, वे अभी बाहर गए हैं.
संत बोले – हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों.
शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया.
औरत के पति ने कहा – जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ.
औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा.
संत बोले – हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते.
पर क्यों? – औरत ने पूछा.
उनमें से एक संत ने कहा – मेरा नाम धन है – फिर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं. हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है. आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है.
औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया. उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला – यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए. हमारा घर खुशियों से भर जाएगा.
लेकिन उसकी पत्नी ने कहा – मुझे लगता है कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए.
उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी. वह उनके पास आई और बोली – मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए. प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं है.
तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए – उसके माता-पिता ने कहा.
औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में प्रवेश कर भोजन ग्रहण करें.
प्रेम घर की ओर बढ़ चले. बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे. औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था. आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?
उनमें से एक ने कहा – यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता. आपने प्रेम को आमंत्रित किया है. प्रेम कभी अकेला नहीं जाता. प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं.

Tuesday, January 13, 2015

क्यों हर कोई परेशां है

क्यों हर कोई परेशां है

दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है
ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है

अपनों संग समय गुजरे इससे बेहतर क्या होगा
कोई तन्हा रहना नहीं चाहें मजबूरी बनाती है

किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है
बिना मेहनत के मंजिल कब किसके हाथ आती है

क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से
दशा कैसी भी अपनी हो किसको रास आती है

दिल की बात दिल में ही दफ़न कर लो तो अच्छा है
पत्थर दिल ज़माने में कहीं ये बात भाती है

भरोसा खुद पर करके जो समय की नब्ज़ को जानें
“मदन ” हताशा और नाकामी उनसे दूर जाती है

मदन मोहन सक्सेना

Monday, December 1, 2014

कल शाम एक घटना टीवी पर देखी

कल शाम एक घटना टीवी पर देखी






मूक बधिर बस यात्री 
अपने आसपास घटित घटना से बेपरबाह 
हरियाणा रोडवेज के ड्राइवर और कंडक्टर 
अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते  हुए 
लाचार सिस्टम की खामियों का फायदा उठाते हुए 
तीन नौजबान  
और इन सबसे बहादुरी से अपना बचाव करती 
और प्रतिकूल जबाब देती हुयी 
दो कॉलेज से आती देश की दो बहादुर बेटियां 
सलाम उनके जज्बे को 
और लानत सोये हुए समाज और प्रशासन और उसकी ब्यबस्था को 

 
 मदन मोहन सक्सेना 



Tuesday, November 25, 2014

पाने की लिये ख़्वाहिश





पाने की लिये ख़्वाहिश जब बाज़ार जाता हूँ
लुटने का अजब एहसास  दिल मायूस कर देता

मदन मोहन सक्सेना

Thursday, November 21, 2013

कलाम

मित्रों कभी मैनें एक शायर का कलाम पढ़ा था उससे  प्रेरित होकर एक शेर लिखा है आपके विचारों कि प्रतीक्षा रहेगी।

अँधेरा भी भला है मैं उस कि कद्र करता हूँ
शबे महताब में अक्सर हुयीं है चोरियां मेरी  (अज्ञात)

अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
 
ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल  (मदन मोहन सक्सेना)

Wednesday, November 20, 2013

पति पत्नी




चुनाब का दौर चल रहा है एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का खेल चालू है।  पेपर मीडिया जिधर देखो मनमुटाब  ही ज्यादा नजर आ रहा है। मन कि खीझ मिटाने  के लिए कुछ हल्का फुल्का जोक का आईडिया बुरा तो नहीं है 

सुख आदमी को उतना मिलेगा जितना उसने पुण्य किया होगा
लेकिन   शांति आदमी को उतनी ही मिलेगी जितनी उसकी बीवी की मर्ज़ी होगी

पति के जन्मदिन पर पत्नी ने पूछा, क्या गिफ्ट दूँ?
पति: तुम मुझे प्यार करो, इज्ज़त करो और मेरा कहना मानो, यही काफ़ी है।
पत्नी: नहीं मैं तो 'गिफ्ट' ही दूंगी।




मदन मोहन सक्सेना।

Thursday, November 14, 2013

क्या करें बेचारें (बाल दिबस)



















आज बाल दिबस है
यानि पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म दिन है
बच्चों ने स्कूल में खूब धमाल किया
और चाचा नेहरू को याद किया
बच्चों को पता है
गांधी (इंद्रा ,राजीव ) के बारे में
भगत सिहं किस  का नाम था
राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्लाह  ने क्या किया ,नहीं पता
ये उधम सिहं कौन ?
ये खुदी राम बोस कौन 
ये बाबू गेणू कौन
ये नाना साहब पेशवा कौन
ये झांसी की रानी कौन 
ये महाराजा रंजीत सिहं कौन
ये मंगल पांडे कौन
ये सुभाष चंद्र बोस कौन
ये लाला लाजपत राय कौन
ये महाराणा प्रताप कौन
ये विपिन चंद्र पाल कौन
ये बाल गंगाधर तिलक कौन
ये चंद्र शेखर आजाद कौन
आज के बच्चें  इनमे से किसी को नहीं जानते
कब इनका जन्मदिन आकर चला जाता है
न मीडिया को याद रहता है
मीडिया बॉलीवूड और क्रिकेट कि चकाचौंध में मशगूल रहता है
न ही इस देश कि जनता को नमन करने का ख्याल रहता है
क्या करे दो जून कि रोटी का जुगाड़ करने में ही
मशगूल रहतें हैं
आज के बच्चें सिर्फ़ नेहरु- गांधी खानदान को ही जानते हैं
क्या करें बेचारें



मदन मोहन सक्सेना