Thursday, July 28, 2016

आज हम फिर बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की


 



नरक की अंतिम जमीं तक गिर चुके हैं  आज जो
नापने को कह रहे , हमसे बह दूरियाँ आकाश की

आज हम महफूज है क्यों दुश्मनों के बीच में
आती नहीं है रास अब दोस्ती बहुत ज्यादा पास की

बँट  गयी सारी जमी ,फिर बँट  गया ये आसमान
आज  हम फिर  बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की

हर जगह महफ़िल सजी पर दर्द भी मिल जायेगा
अब हर कोई कहने लगा है  आरजू बनवास की

मौत के साये में जीती चार पल की जिंदगी
क्या मदन ये सारी दुनिया, है बिरोधाभास की

 

आज  हम फिर  बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की

मदन मोहन सक्सेना 

Monday, July 25, 2016

सांसों के जनाजें को तो सब ने जिंदगी जाना








देखा जब नहीं उनको और हमने गीत ना  गाया
जमाना हमसे ये बोला की फागुन क्यों नहीं आया

फागुन गुम हुआ कैसे ,क्या   तुमको कुछ चला मालूम
कहा हमने ज़माने से कि हमको कुछ नहीं मालूम

पाकर के जिसे दिल में  ,हुए हम खुद से बेगाने
उनका पास न आना ,ये हमसे तुम जरा पुछो

बसेरा जिनकी सूरत का हमेशा आँख में रहता
उनका न नजर आना, ये हमसे तुम जरा पूछो

जीवित है तो जीने का मजा सब लोग ले सकते
जीवित रहके, मरने का मजा हमसे जरा पूछो

रोशन है जहाँ   सारा मुहब्बत की बदौलत ही
अँधेरा दिन में दिख जाना ,ये हमसे तुम जरा पूछो

खुदा की बंदगी करके  मन्नत पूरी सब करते
इबादत में सजा पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो

तमन्ना  सबकी रहती है  जन्नत उनको मिल जाए
जन्नत रस ना आना ये हमसे तुम जरा पूछो

सांसों के जनाजें को  तो सब  ने जिंदगी जाना
दो पल की जिंदगी पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो


सांसों के जनाजें को  तो सब  ने जिंदगी जाना

मदन मोहन सक्सेना 


Thursday, July 21, 2016

गज़ल (तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा)

                            
तुम्हारी याद जब आती तो मिल जाती ख़ुशी हमको
तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या होगा

तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है
मेरे पास तुम होगें तो यादों का फिर क्या होगा

तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहती
दिल में जो बसी सूरत उस सूरत का फिर क्या होगा

अपनी हर ख़ुशी हमको अकेली ही लगा करती
तुम्हार साथ जब होगा नजारा ही नया होगा

दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ
तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा


गज़ल (तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा)
मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, July 20, 2016

बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था




जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी
बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था

बारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़री
भोले भाले चेहरे में सयानापन समाता था

मिलते हाथ हैं लेकिन दिल मिलते नहीं यारों
मिलाकर हाथ, पीछे से मुझको मार जाता था

सुना है आजकल कि बह नियमों को बनाता है
बचपन में गुरूजी से जो अक्सर मार खाता था

उधर माँ बाप तन्हा थे इधर बेटा अकेला था
पैसे की ललक देखो दिन कैसे दिखाता था

जिसे देखे हुआ अर्सा , उसका हाल जब पूछा
बाकी ठीक है कहकर वह ताना मार जाता था



मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, July 13, 2016

मुहब्बत को बयाँ करना किसके यार बश में है






 मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है

किसकी कुर्बानी को किसने याद रक्खा है दुनिया में
जलता तेल और बाती है कहते दीपक जलता है

मुहब्बत को बयाँ करना किसके यार बश में है
उसकी यादों का दिया अपने दिल में यार जलता है

बैसे जीवन के सफर में तो कितने लोग मिलते हैं
किसी चेहरे पे अपना  दिल  अभी भी तो मचलता है

समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारों
रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है

मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है


मुहब्बत को बयाँ करना किसके यार बश में है 

 मदन मोहन सक्सेना




Saturday, June 11, 2016

ये दीवानगी अपनी नहीं तो और फिर क्या है


हम आज तक खामोश हैं  और वो भी कुछ कहते नहीं
दर्द के नग्मों  में हक़ बस मेरा नजर आता है 


देकर दुआएँ  आज फिर हम पर सितम वो  कर गए
अब क़यामत में उम्मीदों का सवेरा नजर आता है


क्यों रोशनी के खेल में अपना आस का पँछी  जला
हमें अँधेरे में हिफाज़त का बसेरा नजर आता है


इस कदर अनजान हैं  हम आज अपने हाल से
हकीकत में भी ख्वावों का घेरा नजर आता है 


ये दीवानगी अपनी नहीं तो और  फिर क्या है मदन
हर जगह इक शख्श का मुझे  चेहरा नजर आता है



मदन मोहन सक्सेना

Saturday, May 7, 2016

मातृदिवस पर शुभकामनाएं

मातृदिवस पर शुभकामनाएं

बदलते बक्त में मुझको दिखे बदले हुए चेहरे
माँ का एक सा चेहरा , मेरे मन में पसर जाता

नहीं देखा खुदा को है ना ईश्वर से मिला मैं हुँ
मुझे माँ के ही चेहरे मेँ खुदा यारों नजर आता

मुश्किल से निकल आता, करता याद जब माँ को
माँ कितनी दूर हो फ़िर भी दुआओं में असर आता

उम्र गुजरी ,जहाँ देखा, लिया है स्वाद बहुतेरा
माँ के हाथ का खाना ही मेरे मन में उतर पाता

खुदा तो आ नहीं सकता ,हर एक के तो बचपन में
माँ की पूज ममता से अपना जीबन , ये संभर जाता

जो माँ की कद्र ना करते ,नहीं अहसास उनको है
क्या खोया है जीबन में, समय उनका ठहर जाता

Thursday, May 5, 2016

पानी पॉलिटिक्स और प्रीमियर लीग






वो तो भला हो सुप्रीम कोर्ट का 
और महाराष्ट्र हाई कोर्ट का 
जिसकी बजह से
सूखाग्रस्त प्रदेश से 
लीग का आयोजन बाहर चला गया
बरना मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन और आई पी एल  ने तो 
पूरी बेशर्मी से अपने कुतर्को को सामने रखने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। 
झूठे बादे किये गए थे 
यदि आयोजन यहाँ हो रहा होता तो 
प्यासे ,सूखा ग्रस्त लोगों के हिस्से का पानी 
पेप्सी और कोक के इशारों पर नाचने बाले 
तथाकथित खिलाड़ियों के पैरों तले रौंदने बाली घास को
हरा  भरा रखने में खर्च हो रहा होता 
और आम जनता 
ये सब देखने को बिबश रहती
मराठी होते हुए भी गावस्कर और बेंगसर्कर को
जितनी फिक्र क्रिकेट को बचाने की है 
उतनी चिंता प्यासे ,सूखा ग्रस्त लोगों की नहीं है 
ये समझ से परे  है। 
भले ही राजीब शुक्ल का ताल्लुक कांग्रेस से हो 
अनुराग ठाकुर का सम्बन्ध भारतीय जनता पार्टी से हो 
और  शरद पवार राष्ट्रिय कांग्रेस पार्टी से हों 
पर 
क्रिकेट की भलाई के लिए सब एक मत हैं। 



 पानी पॉलिटिक्स और प्रीमियर लीग 

मदन मोहन सक्सेना


Thursday, March 31, 2016

जिधर देखता हूँ उधर तू मिला है


सपने सजाने लगा आजकल हूँ
मिलने मिलाने लगा आज कल हूँ
हुयी शख्शियत उनकी  मुझ पर हाबी
खुद को भुलाने लगा आजकल हूँ


इधर तन्हा  मैं था उधर तुम अकेले
किस्मत ,समय ने क्या खेल खेले
गीत ग़ज़लों की गंगा तुमसे ही पाई
गीत ग़ज़लों को गाने लगा आजकल हूँ


जिधर देखता हूँ उधर तू मिला है
ये रंगीनियों का गज़ब सिलसिला है
नाज क्यों ना मुझे अपने  जीवन पर हो
तुमसे रब को पाने लगा  आजकल हूँ



सपने सजाने लगा आजकल हूँ
मिलने मिलाने लगा आज कल हूँ
हुयी शख्शियत उनकी  मुझ पर यूँ  हाबी
खुद को भुलाने लगा आजकल हूँ




 

(जिधर देखता हूँ उधर तू मिला है)


मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, March 23, 2016

आयी आज होली है

आयी आज होली है

मन से मन भी मिल जाये , तन से तन भी मिल जाये
प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है

मौसम आज रंगों का छायी अब खुमारी है
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है

ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है

क्या जीजा हों कि साली हों ,देवर हो या भाभी हो
दिखे रंगनें में रंगानें में , सभी मशगूल होली है

ना शिकबा अब रहे कोई , ना ही दुश्मनी पनपे
गले अब मिल भी जाओं सब, आयी आज होली है

प्रियतम क्या प्रिया क्या अब सभी रंगने को आतुर हैं
चलो हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .

आयी आज होली है

मदन मोहन सक्सेना