Thursday, July 30, 2015

आँख मिचौली













जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा
शहर में ठिकाना खोजा
पता नहीं आजकल
हर कोई मुझसे
आँख मिचौली का खेल क्यों खेला  करता है
जिसकी जब जरुरत होती है
गायब मिलता है
और जब जिसे नहीं होना चाहियें
जबरदस्ती कब्ज़ा जमा लेता है
कल की ही बात है
मेरी बहुत दिनों के बात उससे मुलाकात हुयी
सोचा गिले शिक्बे दूर कर लूं
पहले गाँव में तो उससे रोज का मिलना जुलना था
जबसे इधर क्या आया
या कहिये कि मुंबई जैसे महानगर की 

दीबारों के बीच आकर फँस गया
पूछा
क्या बात है
आजकल आती नहीं हो इधर।
पहले तो आंगन भर-भर आती थी।
दादी की तरह छत पर पसरी रहती थी हमेशा।
पड़ोसियों ने अपनी इमारतों की दीवार क्या ऊँची की
तुम तो इधर का रास्ता ही भूल गयी।
अक्सर सुबह देखता हूं
पड़ी रहती हो
आजकल उनके छज्जों पर
हमारी छत तो अब तुम्हें सुहाती ही नहीं ना
लेकिन याद रखो
ऊँची इमारतों के ऊँचे लोग
बड़ी सादगी से लूटते हैं
फिर चाहे वो इज्जत हो या दौलत।
महीनों के  बाद मिली हो
इसलिए सारी शिकायतें सुना डाली
उसने कुछ बोला नहीं
बस हवा में खुशबु घोल कर
खिड़की के पीछे चली गई
सोचा कि उसे पकड़कर आगोश में भर लूँ
धत्त तेरी की
फिर गायब
ये महानगर की धूप भी न
बिलकुल तुम पर गई है
हमेशा आँख मिचौली का खेल खेल करती है
और मैं न जाने क्या क्या सोचने लग गया 

उसके बारे में 
महानगर के बारे में 
और 
जिंदगी के बारे में


 मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, June 23, 2015

जागरण जंक्शन में मेरी पोस्ट बारिश के रंग , मुंबई के संग




 जागरण जंक्शन में मेरी पोस्ट बारिश के रंग , मुंबई के संग


प्रिय मित्रों मुझे ये बताते हुए बाहर हर्ष हो रहा है कि मेरी पोस्ट बारिश के रंग , मुंबई के संग को जागरण जंक्शन में शामिल किया गया है।
आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएं





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बारिश के रंग , मुंबई के संग


हर बार की तरह
इस बार भी इंद्र देव
मुंबई पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गए
जीब जंतु पशु पक्षी की प्यास
लम्बे अंतराल के बाद शांत हो गयी
तालाब पोखर झील फूल कर
अपने भाग्य पर इतराने लगे
मुंबई बालों को पाने पीने के लिए
अब कटौती नहीं सहन करनी पड़ेगी
हर बार की तरह
इस बार भी लोगो को परेशानी झेलनी पड़ी
कुछ लोग ट्रेन और रस्ते में फँस गए
मुंबई के कुछ आधुनिक इलाकें
हिंदमाता , अंधेरी ,दादर ,परेल , कुर्ला
हर बार की तरह इस बार भी पानी में डूबने लगे
हर बार की तरह में उस दिन
मीडिया बाले चर्चा करके
टी आर पी बटोरने लगे
हर बार की तरह इस बार भी
जो लोग घर पर रहे चटकारे लेकर
ख़बरों का आनंद लेने लगे कि बो बच गए परेशानी से
हर बार की तरह इस बार भी
बी एम सी के लोग
अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने की कोशिश करते दिखे
आमची मुंबई के लोग भी
हर बार की तरह परेशान दिखे
करते तो क्या करते
स्थानीय लोगों की पार्टी का ही कब्ज़ा है
बी एम सी पर
काफी समय से
नाराज हों बो भी अपनों से
चलो इस बार कुछ नहीं बोलते हैं
शायद अगले साल
कुछ सुधार देखने को मिले
अगले दिनों का इन्तजार करने लगें



मदन मोहन सक्सेना

Friday, June 19, 2015

समय के इस दौर में

समय के इस दौर में



जब समय ही समय था 
समय जानने के लिए घड़ी नहीं थी 
आज समय जानने के लिए 
मोबाइल ,घड़ी क्या क्या नहीं है 
किन्तु  क्या दौर है 
माँ बाप के पास बच्चों के लिए समय नहीं है 
और बच्चों के लिए माँ बाप के लिए समय नहीं है 
सब अपने अपने घेरे में कैद हैं
सब अपने अपने तरीके से 
समय की कमी से जूझ रहें हैं 
साथ ही साथ बोर भी हो रहें हैं 
हर कोई एकांतबास   से रुबरु हो रहा है 
समय के इस दौर में



मदन मोहन सक्सेना

Saturday, June 13, 2015

अपनापन

अपनापन


अक्सर पास  रहकर के ना अपनापन नजर आता
सुना है दूर रहने पर  अपने याद आते हैं

मदन मोहन सक्सेना

Friday, June 5, 2015

मैगी , मम्मी और मजबूर बच्चें ( बाजार की चाल )


 मैगी , मम्मी और मजबूर बच्चें ( बाजार की चाल  )


कितना अजीब लगता है जब 
सचिन तेंदुलकर हमें बताते हैं की हमारे बच्चों को कौन सा खाना खाना चाहियें 
अमिताभ बच्चन दो मिनट की मैगी की पैरबी करते नजर आतें हैं 
सलमान खान कोल्ड ड्रिंक पीने  के लिए बच्चों को प्रेरित करते नजर आते हैं 
हमारे बच्चे इन के पीछे छिपे खेल को नहीं समझ पाते 
और सितारों की बातों में आ जाते हैं 
कितना अच्छा हो की ये सितारे 
पैसों की भूख के सामने 
देश के बच्चों के स्वास्थ्य को ज्यादा महत्तब देते 
तो आज ये हालत देश को ना देखना होता 
कहतें हैं ना की हम हिंदुस्तानी लोग भेड़ चल बाले हैं।  
बाराबंकी में एक सैंपल में मैगी में कुछ गलत पाया गया ,
देखते ही देखते मैगी का मामला सारे मीडिया पर छा  गया 
 कुछ राज्य सरकारें जल्दी सक्रिय हो गयीं। 
 लेकिन लगता है की किसी भी स्तर पर समाज के महत्वपूर्ण लोगों ने 
अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया.
 मैगी पकाना और खाना आधुनिकता का हिस्सा बन गई. 
बड़े-बुजुर्ग भी स्वाद आजमाने लगे. 
चना, चबैना, सत्तू पिछड़ेपन की निशानी हो गए. 
फिल्म व खेल जगत के लोकप्रिय चेहरों में 
क्या एक बार भी यह विचार नहीं आया कि वह अपनी तरफ से इन खाद्य पदार्थो के सेवन की बच्चों को प्रेरणा न दें.
बहुत संभव था कि इतने नामी चेहरे मैगी का विज्ञापन न करते तो इसे इतनी लोकप्रियता ना मिलती.
तब किसी ने इसमें प्रयुक्त होने वाली सामग्री पर विचार नहीं किया. 
अब पता चल रहा है कि मैगी बनाने वाली कंपनी नेस्ले पर खाद्य सुरक्षा मानकों की अनदेखी का आरोप लगाया गया है
 यहां खाद्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी भी आरोप के घेरे में हैं.
 इतने वर्षो से मैगी की धूम थी
 लेकिन एक भी अधिकारी ने इसके खाद्य मानकों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी.
 मैगी के नमूनों में इतने वर्ष बाद खुलासा हुआ 
 कि मोनोसोडियम ब्लूटामेट और सीसे की मात्रा तय सीमा से 17 गुना ज्यादा थी.
इस मामले में कौन कितना दोषी है, यह तो जांच के बाद पता चलेगा.
 मामला अब न्यायपालिका में है. 
लेकिन यह तो मानना पड़ेगा कि किसी भी स्तर पर
 समाज के महत्वपूर्ण लोगों ने 
अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया. 
इसके विज्ञापन की शुरुआत बस दो मिनट से हुई थी. 
मतलब इसे मात्र दो मिनट में पकाकर बच्चों के सामने परोसा जा सकता है. 
आधुनिक माताएं भी खुश, बच्चे भी खुश. 
इस खुशी में स्वास्थ्य की बात पीछे छूट गई.
मैगी आधुनिक जीवनशैली की एक प्रतीक बन गई थी.
 इसके प्रत्येक पहलू में आधुनिकता की छाप थी. 
 इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इससे समाज 
खासतौर पर बच्चों के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है.
 इसका विज्ञापन करने वालों की मानसिकता भी इससे ऊपर नहीं रही.
केवल धन मिलता रहे, फिर चाहे जिस वस्तु का विज्ञापन करा लो.
 इन लोगों को समाज के कारण ही लोकप्रियता मिली, 
जिसके चलते इन्हें विज्ञापन के लिये उपयुक्त माना गया, लेकिन उसी समाज के प्रति इनका दायित्वबोध क्या था.
अमिताभ बच्चन हो, या माधुरी दीक्षित अथवा कोई और, 
आज इन लोगों का कहना है 
कि उन्होंने नेस्ले के भरोसे पर विज्ञापन किया था. 
तकनीकी रूप से ये बातें इनका बचाव कर सकती है.
 लेकिन नैतिकता के पक्ष पर इनका बचाव नहीं हो सकता.
 जिस विषय का वह विशेषज्ञ न हो, उसका विज्ञापन वह कैसे कर सकता है.
अमिताभ और माधुरी ने कभी 'खाद्य-विज्ञान' का अध्ययन नहीं किया होगा
 ऐसे में ये किसी खाद्य सामग्री के विज्ञापन को कैसे कर सकते हैं.
 लेकिन फिर भी ऐसा होता है. 
जिस विषय से कोई लेना देना नहीं,
 उसके विज्ञापन के लिए भी नामी चेहरे फौरन तत्पर हो जाते हैं. 
समाज हित पर निजी हित भारी होने के कारण ही ऐसा होता है.
वह मैगी या किसी तेल को अपने जीवन की सफलता का श्रेय दे सकते हैं,
लेकिन बच्चों को उचित खान-पान की सही शिक्षा नहीं दे सकते.

खासतौर पर खाद्य पदार्थो के बारे में तो कोई विशेषज्ञ ही बता सकता है
 लेकिन उसके लिए भी फिल्म और क्रिकेट के सितारे तैयार रहते हैं.
 इनकी एक भी बात तर्कसंगत नहीं होती.
साफ लगता है कि पूरी उछल-कूद केवल पैसों के लिए की जा रही है.
इनके विज्ञापनों पर विश्वास करें तो मानना पड़ेगा कि फास्ट फूड सम्पूर्ण पोषण है
लेकिन चिकित्सा विज्ञान इससे सहमत नहीं.
सीलिए धनी परिवार के बच्चे भी कुपोषण के शिकार होते हैं.
मैगी मामला निश्चित ही आंख खोलने वाला साबित हो सकता है.
उन वस्तुओं का उत्पादन न किया जाए
 जिन वस्तुओं की प्रमाणिक जानकारी न हो,
उसका विज्ञापन न किया जाए.
वहीं यह अभिभावकों की जिम्मेदारी है
 कि वह अपने बच्चों को उचित खान-पान के लिए प्रेरित करें.

मदन मोहन सक्सेना


Thursday, May 28, 2015

मेरे हमसफ़र

मेरे हमसफ़र




मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र ,तुझे खोजती है मेरी नजर
तुम्हें हो ख़बर की न हो ख़बर ,मुझे सिर्फ तेरी तलाश है

मेरे साथ तेरा प्यार है ,तो जिंदगी में बहार है
मेरी जिंदगी तेरे दम से है ,इस बात का एहसास  है

तेरे इश्क का है ये असर ,मुझे सुबह शाम की ना  ख़बर
मेरे दिल में तू रहती सदा , तू ना दूर है और ना पास है

ये तो हर किसी का खयाल है ,तेरे रूप की न मिसाल है
कैसें कहूँ  तेरी अहमियत, मेरी जिंदगी में खास है

तेरी झुल्फ जब लहरा गयी , काली घटायें छा गयी
हर पल तुम्हें देखा करू ,आँखों में फिर भी प्यास है


मदन मोहन सक्सेना

Monday, May 25, 2015

या फिर ये खेल ऐसे ही चलता रहेगा (गुर्जर आंदोलन)


 



मुझे नहीं पता
कि उनका ये आंदोलन जायज है या नहीं
इसका फैसला तो  कानूनबिदों और न्यायलय को करना है

लेकिन इस आंदोलन से जिस आम जनता को समस्या हो रही है 
उसको समझने के लिए कोई तैयार नहीं है 
ना ही रेलये अपनी जिम्मेदारी निभा रही है 
सिबाय
विशेष रिफंड काउंटर, हेल्पलाइन तथा सहायता बूथ की व्यवस्था 

करके अपने कर्तब्यों की इतिश्री कर ली 
राज्य  सरकार भी कोई प्रभाबी कदम नही उठा पा रही है 
पहले पंजे की सरकार थी और अब कमल की है 
लेकिन आंदोलन से निपटने का तरीका एक सा ही है 
जनता की परेशानियों से किसी को कोई सरोकार नहीं है 
गर्मी के दिन 
बच्चो की छुट्टियों  का मौसम 
चार चार महीने पहले से रिजर्वेशन करबाए हुए आम जनता (रेल यात्री)
और अब 
ट्रैन कैंसिलेशन की सौगात 
रेलबे ट्रैक की सुरक्षा की जिम्मेदारी किनकी है 
रेलवे पुलिस की 
रेलवे की 
राज्य सरकार की 
या फिर 
देश के गृह मंत्री की 
ऐसी घटनाओं का संघान स्वता न्यायलय क्यों नहीं लेता है 
सब ने आँख बंद कर के 
मानों  देश की जनता को 
नयी नयी परेशानी देने का मन बना लिया है 
क्या इसका कोई 
समाधान नहीं है 
कोई भी आकर समूह में 
सरकारी जमीन पर कब्ज़ा करले 
और अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए 
आम देश की जनता को 
परेशानी में डाल दे 
और पूरा प्रशाशन कोमा में बना  रहे 
कब बदलेगी ऐसी स्थिति 
और बदलेगी भी या नहीं 
या फिर ये खेल ऐसे ही चलता रहेगा 
और निजाम बदलेंगें 
पर ब्यबस्था नहीं बदलेगी। . 

मदन मोहन सक्सेना
 

 
 
 
 
 
 

 

Thursday, May 21, 2015

भारत के दुर्गम तीर्थस्‍थल

भारत के दुर्गम तीर्थस्‍थल

शिखर जी: झारखंड के गिरीडीह ज़िले में छोटा नागपुर पठार पर स्थित शिखरजी या श्री शिखरजी या पारसनाथ विश्व का सबसे महत्वपूर्ण जैन तीर्थ स्थल है। 1,350 मीटर (4,430 फ़ुट) ऊंचा यह पहाड़ झारखंड का सबसे ऊंचा स्थान भी है, पारसनाथ पर्वत विश्व प्रसिद्ध है। यहां देश भर से हर साल लाखों जैन धर्मावलंबियों आते हैं। गिरीडीह स्टेशन से पहाड़ की तलहटी मधुवन तक 14 से 18 मील दूर है। पहाड़ की चढ़ाई और उतराई की यह यात्रा करीब 18 मील की है, जो बेहद दुर्गम होती है।







 पावागढ़: गुजरात की प्राचीन राजधानी चंपारण के पास स्थित पावागढ़ मंदिर वडोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। पावागढ़ मंदिर ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। काफी ऊंचाई पर बने इस दुर्गम मंदिर की चढ़ाई बेहद कठिन है। अब सरकार ने यहां रोप-वे सुविधा उपलब्ध करवा दी है।



 नैनादेवी : हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थति नैनादेवी देवी शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियो पर स्थित देवी मंदिर है। यह देवी के 51 शक्ति पीठों में शामिल है। ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां जाने का मार्ग दुर्गम है। हालांकि अब तो यहां उड़्डनखटोले, पालकी आदि की भी व्यवस्था है। यह समुद्र तल से 11000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।



बद्रीनाथ: उत्‍तराखंड में अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नाम के दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित बद्रीनाथ देश के महत्‍वपूर्ण तीर्थ स्‍थल में से एक है। गंगा नदी की मुख्य धारा के किनारे बसा यह तीर्थस्थल हिमालय में समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसके पश्चिम में 27 किमी की दूरी पर स्थित बद्रीनाथ शिखर कि ऊंचाई 7,138 मीटर है। यहां पहुंचने की यात्रा भी बेहद दुर्गम है। हर साल यहां लाखों लोग पहुंचते हैं। 

गंगोत्री और यमनोत्री: गंगोत्री और यमुनोत्री दोनों ही उत्तरकाशी जिले में है। यमनोत्री समुद्रतल से 3235 मी. ऊंचाई है और यहां देवी यमुना का मंदिर है। तीर्थ स्थल से यह एक कि. मी. दूर यह स्थल 4421 मी. ऊंचाई पर स्थित है। दुर्गम चढ़ाई होने के कारण श्रद्धालू इस उद्गम स्थल को देखने की हिम्‍मत नहीं जुटा पाते। यहां पांच किलोमीटर की सीधी खड़ी चढ़ाई है। इसी तरह गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थान है। गंगाजी का मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भागीरथी के दाहिने ओर का परिवेश अत्यंत आकर्षक एवं मनोहारी है। यह स्थान उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर स्थित है। इस क्षेत्र में बर्फीले पहाड़,ग्लेशियर,लंबी पर्वत श्रेणियां,गहरी घाटियां,खड़ी चट्टानें और संकरी घाटियां हैं। यह भी काफी दुर्गम है। इस स्थान की समुद्र तल से ऊंचाई 1800 से 7083 मीटर के बीच है। 





 वैष्‍णोदेवी : वैष्‍णो देवी जम्मू-कश्‍मीर के कटरा जिले में आता है। यह हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्‍थल है। यह मंदिर 5,200 फ़ीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है। कटरा समुद्रतल से 2500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। माता के मंदिर में जाने की यात्रा बेहद दुर्गम है। कटरा से 14 किमी की खड़ी चढ़ाई पर मां वैष्‍णोदवी की गुफा है। हालांकि अब हेलीकॉप्‍टर से भी आप यहां पहुंच सकते हैं। सर्दियों में यहां का न्यूनतम तापमान -3 से -4 डिग्री तक चला जाता है और इस मौसम से चट्टानों के खिसकने का खतरा भी रहता है। 




 हेमकुंड साहेब : हेमकुंड साहेब सिखों का पावनधाम है। यहां पहुंचने की यात्रा बहुत ही दुर्गम है। यह तकरीबन 19 किलोमीटर की पहाड़ी यात्रा है। पैदल या खच्‍चरों पर पूरी होने वाली यात्रा में जान का जोखिम भी होता है। गहरी खाई से सटी इस यात्रा में यात्रियों का अक्‍सर गिरने का डर बना रहता है।पिछले साल खाई में गिरने से ही तकरीबन दो दर्जन यात्रियों की मौत हो गई थी। 





 अमरनाथ : अमरनाथ बेहद ही दुर्गम और प्रमुख तीर्थस्थल है। श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में 135 किलोमीटर दूर यह तीर्थस्‍थल समुद्रतल से 13600 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। अमरनाथ की यात्रा बेहद दुर्गम प्राकृतिक परिस्थितियों से होकर गुजरती है। यहां तापमान अक्‍सर माइनस 1 में चला जाता है और यहां बारिश, भूस्‍खलन कभी भी हो सकता है। सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही संवेदनशील और संदिग्ध मानी जाने वाली यात्रा के लिए पहले पंजीयन कराना होता है जबकि बीमार और कमजोर यात्री अक्‍सर इस यात्रा से लौटा दिए जाते हैं। इस यात्रा पर भारत सरकार की पूरी नजर होती है और भारतीय सेना के जवान यहां 24 घंटे श्रद्धालुओं की सहायता के लिए तैनात रहते हैं। 





 कैलाश मानसरोवर : यह भारत के सबसे दुर्गम तीर्थस्‍थानों में से एक है। सन् 1962 में चीन से युद्ध के बाद चीन ने इसे भारत से कब्‍जे में ले लिया। पूरा कैलाश पर्वत 48 किलोमीटर में फैला हुआ है। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 4556 मीटर है। इस तीर्थस्‍थल की यात्रा अत्यधिक कठिन यात्राओं में से एक यात्रा मानी जाती है। इस यात्रा का सबसे अधिक कठिन मार्ग भारत के पड़ोसी देश चीन से होकर जाता है। इस यात्रा के बारे में कहा जाता है कि वहां वे ही लोग जा पाते हैं, जिन्‍हें भोले बाबा स्‍वयं बुलाते हैं। यह यात्रा 28 दिन की होती है। हालांकि अभी तक इस्तेमाल होने वाला लिपुलेख दर्रा बहुत दुर्गम माना जाता रहा है और केवल युवा लोग ही यह यात्रा कर पाते थे जबकि निर्बल, अशक्त बुजुर्ग के लिए यह जान का जोखिम लेने के अलावा कुछ नहीं है। हालांकि इसी साल से चीन के उत्‍तराखंड से ही नाथुलादर्रे का मार्ग खोल देने से यह यात्रा अब आसान हो गई है, लेकिन फिर भी यह उतनी आसान नहीं है।






Wednesday, May 20, 2015

अलबिदा बा

  अलबिदा बा     
   टीवी की जानीमानी अभिनेत्री और दर्शकों की 'बा' सुधा शिवपुरी का आज सुबह निधन हो गया. वे 78 वर्ष की थी. वे लोकप्रिय टीवी सीरीयल 'क्‍योंकि सास भी कभी बहु थी' में 'बा' के किरदार में नजर आई थी और इसके बाद उनके फैंस उन्‍हें इसी नाम से जानते थे.



14 जुलाई 1937 को मध्यप्रदेश के इंदौर में पैदा हुईं सुधा शिवपुरी ने टीवी सीरियल्स के अलावा कई हिंदी फिल्मों में भी काम किया। उन्होंने अपनी बीमार मां को मदद देने के लिए बहुत कम उम्र में ही अभिनय शुरू कर दिया था। 1977 में प्रदर्शित बासु चटर्जी की फिल्म 'स्वामी' उनकी पहली फिल्म थी।
इस तरह उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ। जिसके बाद उन्होंने 'इंसाफ का तराजू', 'सावन को आने दो', 'विधाता', 'पिंजर', और 'माया मेमसाब' जैसी यादगार फिल्मों में काम किया।
सुधा शिवपुरी ने 1968 में एक्टर ओम शिवपुरी के साथ शादी की। ये तब की बात है, जब उनके पति संघर्ष कर रहे थे। इसके बाद दोनों ने एक थियेटर कंपनी शुरू की। 1990 में पति की मौत के बाद सुधा ने एक बार फिर एक्टिंग की दुनिया की तरफ रुख किया और उन्होंने 'मिसिंग', 'रिश्ते' और 'सरहदें बंधन', जैसे टीवी शो में काम किया।
लेकिन उन्हें बड़ा ब्रेक 2000 में प्रोड्यूसर एकता कपूर के पॉपुलर सीरियल 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' में मिला। इसमें उनके द्वारा निभाया गया 'बा' का किरदार घर-घर में लोकप्रिय हुआ।एकता कपूर के ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ में कुलमाता की भूमिका निभाने वाली सुधा ने कई टीवी धारावाहिकों में काम किया है, जिसमें ‘मिसिंग’, ‘रिश्ते’, ‘सरहदें’ और ‘बंधन’ शामिल हैं। उन्होंने ‘शीशे का घर’, ‘वक्त का दरिया’, ‘दमन’’, ‘संतोषी मां,’, ‘यह घर’, ‘कसम से’ और ‘किस देश में है मेरा दिल’ जैसे धारावाहिकों में भी काम किया है।  उनका एक बेटा और बेटी है.सुधा शिवपुरी ने कई स्‍टार परिवार अवार्ड्स भी अपने नाम किये थे. भगबान उनकी आत्मा को शांति दे और उनके परिबार को संकट की इस घड़ी  में धैर्य दे   

Friday, May 15, 2015

एक मुक्तक (तुम्हीं हो )

एक मुक्तक (तुम्हीं  हो )


मेरा पहला प्यार तुम्हीं  हो 
सच्चा प्यारा यार तुम्हीं हो 
तन में साँसें जब तक मेरे 
जीबन का आधार तुम्हीँ  हो 

मदन मोहन सक्सेना