Friday, February 13, 2015

एक पुरानी कहानी


एक पुरानी कहानी।

प्रेम कभी अकेला नहीं जाता. प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं.
 
 
 
 

एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा. वह उन्हें जानती नहीं थी. औरत ने कहा – कृपया भीतर आइये और भोजन ...करिये.
संत बोले – क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?
औरत ने कहा – नहीं, वे अभी बाहर गए हैं.
संत बोले – हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों.
शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया.
औरत के पति ने कहा – जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ.
औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा.
संत बोले – हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते.
पर क्यों? – औरत ने पूछा.
उनमें से एक संत ने कहा – मेरा नाम धन है – फिर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं. हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है. आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है.
औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया. उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला – यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए. हमारा घर खुशियों से भर जाएगा.
लेकिन उसकी पत्नी ने कहा – मुझे लगता है कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए.
उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी. वह उनके पास आई और बोली – मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए. प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं है.
तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए – उसके माता-पिता ने कहा.
औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में प्रवेश कर भोजन ग्रहण करें.
प्रेम घर की ओर बढ़ चले. बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे. औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था. आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?
उनमें से एक ने कहा – यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता. आपने प्रेम को आमंत्रित किया है. प्रेम कभी अकेला नहीं जाता. प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं.

Tuesday, January 13, 2015

क्यों हर कोई परेशां है

क्यों हर कोई परेशां है

दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है
ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है

अपनों संग समय गुजरे इससे बेहतर क्या होगा
कोई तन्हा रहना नहीं चाहें मजबूरी बनाती है

किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है
बिना मेहनत के मंजिल कब किसके हाथ आती है

क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से
दशा कैसी भी अपनी हो किसको रास आती है

दिल की बात दिल में ही दफ़न कर लो तो अच्छा है
पत्थर दिल ज़माने में कहीं ये बात भाती है

भरोसा खुद पर करके जो समय की नब्ज़ को जानें
“मदन ” हताशा और नाकामी उनसे दूर जाती है

मदन मोहन सक्सेना

Monday, December 1, 2014

कल शाम एक घटना टीवी पर देखी

कल शाम एक घटना टीवी पर देखी






मूक बधिर बस यात्री 
अपने आसपास घटित घटना से बेपरबाह 
हरियाणा रोडवेज के ड्राइवर और कंडक्टर 
अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते  हुए 
लाचार सिस्टम की खामियों का फायदा उठाते हुए 
तीन नौजबान  
और इन सबसे बहादुरी से अपना बचाव करती 
और प्रतिकूल जबाब देती हुयी 
दो कॉलेज से आती देश की दो बहादुर बेटियां 
सलाम उनके जज्बे को 
और लानत सोये हुए समाज और प्रशासन और उसकी ब्यबस्था को 

 
 मदन मोहन सक्सेना 



Tuesday, November 25, 2014

पाने की लिये ख़्वाहिश





पाने की लिये ख़्वाहिश जब बाज़ार जाता हूँ
लुटने का अजब एहसास  दिल मायूस कर देता

मदन मोहन सक्सेना

Thursday, November 21, 2013

कलाम

मित्रों कभी मैनें एक शायर का कलाम पढ़ा था उससे  प्रेरित होकर एक शेर लिखा है आपके विचारों कि प्रतीक्षा रहेगी।

अँधेरा भी भला है मैं उस कि कद्र करता हूँ
शबे महताब में अक्सर हुयीं है चोरियां मेरी  (अज्ञात)

अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
 
ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल  (मदन मोहन सक्सेना)

Wednesday, November 20, 2013

पति पत्नी




चुनाब का दौर चल रहा है एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का खेल चालू है।  पेपर मीडिया जिधर देखो मनमुटाब  ही ज्यादा नजर आ रहा है। मन कि खीझ मिटाने  के लिए कुछ हल्का फुल्का जोक का आईडिया बुरा तो नहीं है 

सुख आदमी को उतना मिलेगा जितना उसने पुण्य किया होगा
लेकिन   शांति आदमी को उतनी ही मिलेगी जितनी उसकी बीवी की मर्ज़ी होगी

पति के जन्मदिन पर पत्नी ने पूछा, क्या गिफ्ट दूँ?
पति: तुम मुझे प्यार करो, इज्ज़त करो और मेरा कहना मानो, यही काफ़ी है।
पत्नी: नहीं मैं तो 'गिफ्ट' ही दूंगी।




मदन मोहन सक्सेना।

Thursday, November 14, 2013

क्या करें बेचारें (बाल दिबस)



















आज बाल दिबस है
यानि पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म दिन है
बच्चों ने स्कूल में खूब धमाल किया
और चाचा नेहरू को याद किया
बच्चों को पता है
गांधी (इंद्रा ,राजीव ) के बारे में
भगत सिहं किस  का नाम था
राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्लाह  ने क्या किया ,नहीं पता
ये उधम सिहं कौन ?
ये खुदी राम बोस कौन 
ये बाबू गेणू कौन
ये नाना साहब पेशवा कौन
ये झांसी की रानी कौन 
ये महाराजा रंजीत सिहं कौन
ये मंगल पांडे कौन
ये सुभाष चंद्र बोस कौन
ये लाला लाजपत राय कौन
ये महाराणा प्रताप कौन
ये विपिन चंद्र पाल कौन
ये बाल गंगाधर तिलक कौन
ये चंद्र शेखर आजाद कौन
आज के बच्चें  इनमे से किसी को नहीं जानते
कब इनका जन्मदिन आकर चला जाता है
न मीडिया को याद रहता है
मीडिया बॉलीवूड और क्रिकेट कि चकाचौंध में मशगूल रहता है
न ही इस देश कि जनता को नमन करने का ख्याल रहता है
क्या करे दो जून कि रोटी का जुगाड़ करने में ही
मशगूल रहतें हैं
आज के बच्चें सिर्फ़ नेहरु- गांधी खानदान को ही जानते हैं
क्या करें बेचारें



मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, November 13, 2013

जग की रीत

 
जग की रीत

पाने को आतुर रहतें हैं खोने को तैयार नहीं है
जिम्मेदारी ने मुहँ मोड़ा ,सुबिधाओं की जीत हो रही


साझा करने को ना मिलता , सब अपने गम में ग़मगीन हैं
स्वार्थ दिखा जिसमें भी यारों उससे केवल प्रीत हो रही


कहने का मतलब होता था , अब ये बात पुरानी है
जैसा देखा बैसी बातें .जग की अब ये रीत हो रही


अब खेलों में है राजनीति और राजनीति ब्यापार हुई
मुश्किल अब है मालूम होना ,किस से किसकी मीत हो रही


क्यों अनजानापन लगता है अब, खुद के आज बसेरे में
संग साथ की हार हुई और तन्हाई की जीत हो रही

 
प्रस्तुति: मदन मोहन सक्सेना

Monday, November 11, 2013

चुनौती

केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कल स्वीकार किया कि प्रधानमंत्री पद के भाजपा के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को कांग्रेस पार्टी चुनौती देने वाले नेता के तौर पर देखती है।
और आज गृह मंत्री शिंदे ने कहा मोदी चुनौती नहीं हैं
बिश्बास करना मुश्किल है कौन सही कह रहा है

Thursday, November 7, 2013

चित्रगुप्त पूजा और महत्त्ब


चित्रगुप्त पूजा और महत्त्ब

भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज के सहयोगी हैं. इनकी कथा इस प्रकार है कि सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अत: ये ब्रह्मा कहलाये. इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया. इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था. धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरूष उत्पन्न हुआ. इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कायस्थ जाति को उत्पन्न करनेवाले भगवान चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन हुआ।  इसी दिन कायस्थ जाति के लोग अपने घरों में भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं। उन्हें मानने वाले इस दिन कलम और दवात का इस्तेमाल नहीं करते।  के आखिर में वे सम्पूर्ण आय-व्यय का हिसाब लिखकर भगवान को समर्पित करते हैं। चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन ही हुआ. इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि रचयिता भगवान ब्रह्मा ने एक बार सूर्य के समान अपने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा कि वह किसी विशेष प्रयोजन से समाधिस्थ हो रहे हैं और इस दौरान वह यत्नपूर्वक सृष्टि की रक्षा करें।  
इसके बाद ब्रह्माजी ने 11 हजार वर्ष की समाधि ले ली। जब उनकी समाधि टूटी तो उन्होंने देखा कि उनके सामने एक दिव्य पुरुष, कलम दवात लिए खडा है। बह्माजी ने उससे उसका परिचय पूछा तो वह बोला, मैं आप के शरीर से ही उत्पन्न हुआ हूं। आप मेरा नामकरण करने योग्य है और मेरे  लिये कोई काम है तो बतायें। व्रह्माजी ने हंसकर कहा, मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुए हो, इसलिये  कायस्थ तुम्हारी संज्ञा है और तुम पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से विख्यात होगे। धर्म-अधर्म पर धर्मराज की यमपुरी में विचार तुम्हारा काम होगा। अपने वर्ण में जो उचित है उसका पालन करने के साथ-साथ तुम संतान उत्पन्न करो। इसके बाद ब्रह्माजी चित्रगुप्त को आशीर्वाद देकर अंतर्धान हो गये। बाद में चित्रगुप्त का विवाह एरावती और सुदक्षणा से हुआ।   सुदक्षणा से उन्हें श्रीरीवास्तव, सूरजध्वज, निगम, और कुलश्रेष्ठ नामक चार पुत्र प्राप्त हुये, जबकि एरावती से आठ पुत्र रत्न प्राप्त हुये जो पृथ्वी पर माथुर, कर्ण, सक्‍सेना, गौड़, अस्थाना, अम्बष्ठ, भटनागर और बाल्मीक नाम से विख्यात हुये।चित्रगुप्त ने अपने पुत्रों को धर्म साधने की शिक्षा दी और कहा कि वे देवताओं का पूजन, पितरों का श्राद्ध तथा तर्पण और ब्राह्मणों का पालन यत्न पूर्वक करें। इसके बाद चित्रगुप्त स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गये और यमराज की यमपुरी में मनुष्य के पाप-पुण्य का विवरण तैयार करने का काम करने लगे।
जो भी प्राणी धरती पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है क्योकि यही विधि का विधान है. विधि के इस विधान से स्वयं भगवान भी नहीं बच पाये और मृत्यु की गोद में उन्हें भी सोना पड़ा. चाहे भगवान राम हों, कृष्ण हों, बुध और जैन सभी को निश्चित समय पर पृथ्वी लोक आ त्याग करना पड़ता है. मृत्युपरान्त क्या होता है और जीवन से पहले क्या है यह एक ऐसा रहस्य है जिसे कोई नहीं सुलझा सकता. लेकिन जैसा कि हमारे वेदों एवं पुराणों में लिखा और ऋषि मुनियों ने कहा है उसके अनुसार इस मृत्युलोक के उपर एक दिव्य लोक है जहां न जीवन का हर्ष है और न मृत्यु का शोक वह लोक जीवन मृत्यु से परे है.
इस दिव्य लोक में देवताओं का निवास है और फिर उनसे भी Šৠपर विष्णु लोक, ब्रह्मलोक और शिवलोक है. जीवात्मा जब अपने प्राप्त शरीर के कर्मों के अनुसार विभिन्न लोकों को जाता है. जो जीवात्मा विष्णु लोक, ब्रह्मलोक और शिवलोक में स्थान पा जाता है उन्हें जीवन चक्र में आवागमन यानी जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है और वे ब्रह्म में विलीन हो जाता हैं अर्थात आत्मा परमात्मा से मिलकर परमलक्ष्य को प्राप्त कर लेता है.
जो जीवात्मा कर्म बंधन में फंसकर पाप कर्म से दूषित हो जाता हैं उन्हें यमलोक जाना पड़ता है. मृत्यु काल में इन्हे आपने साथ ले जाने के लिए यमलोक से यमदूत आते हैं जिन्हें देखकर ये जीवात्मा कांप उठता है रोने लगता है परंतु दूत बड़ी निर्ममता से उन्हें बांध कर घसीटते हुए यमलोक ले जाते हैं. इन आत्माओं को यमदूत भयंकर कष्ट देते हैं और ले जाकर यमराज के समक्ष खड़ा कर देते हैं. इसी प्रकार की बहुत सी बातें गरूड़ पुराण में वर्णित है.
यमराज के दरवार में उस जीवात्मा के कर्मों का लेखा जोखा होता है. कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले भगवान हैं चित्रगुप्त. यही भगवान चित्रगुप्त जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवों के सभी कर्मों को अपनी पुस्तक में लिखते रहते हैं और जब जीवात्मा मृत्यु के पश्चात यमराज के समझ पहुचता है तो उनके कर्मों को एक एक कर सुनाते हैं और उन्हें अपने कर्मों के अनुसार क्रूर नर्क में भेज देते हैं.
 भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और जल है. ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है. कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है. इस दिन भगवान चित्रगुप्त और यमराज की मूर्ति स्थापित करके अथवा उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धा पूर्वक सभी प्रकार से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर एवं भांति भांति के पकवान, मिष्टान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा करें. और फिर जाने अनजाने हुए अपराधों के लिए इनसे क्षमा याचना करें. यमराज और चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है.

 मदन मोहन सक्सेना।