Monday, July 29, 2013

अंतर्मन की बेदना

अंतर्मन की बेदना 

परिबर्तन संसार का नियम है 
ज्यों समय बदलता है ,मौसम बदलता है 
बचपन जबानी में और जबानी बृद्धा अबस्था में 
तब्दील हो जाती है 
समय के चक्र के साथ 
अपने बेगाने में रूपान्तरित हो जाते हैं 
अजबनी अपनेपन का अहसास करातें हैं 
कभी दुनिया  पराई ब जालिम लगती है
तो कभी रंगीनियों का साक्षात्  प्रतिबिम्ब नजर आती है 
समय के इस चक्र में फँसा हुआ 
मैं अपने को पहचानने के लिए 
खुद से संपर्क स्थापित करना चाहता हूँ 
इसलिये दिन में दो बार 
और कभी कभी उससे अधिक बार 
आइनें में खुद को निहारता रहता हूँ 
जब मैनें खुद को सतही तौर  पर
जाननें की कोशिश की 
मैं खुद के अंत: सागर में तैरने लगता हूँ 
जब खुद को गहराई से जानने की 
तो असीम बिस्तार बाले अन्तासागर के गर्त में 
खुद को डूबा हुआ सा पाता हूँ 
अक्सर मेरे साथ ये होता है 
जो कहना चाहता हूँ ,बह कह नहीं पाता हूँ 
और जो कहता हूँ ,बह कहा मेरा नहीं लगता है 
मैं जो हूँ ,क्या बह नहीं हूँ 
और जो मैं नहीं हूँ ,क्या  मैं बह  हूँ
ये विचार मेरे अंतर्मन में गूंजता रहता है 
अपने अंतर्मन की बेदना को अभिब्यक्त 
करने के लिए मैंने लेखनी का कागज से स्पर्श  किया


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

Friday, July 19, 2013

मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र




















मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र ,तुझे खोजती है मेरी नजर
तुम्हें हो ख़बर की न हो ख़बर ,मुझे सिर्फ तेरी तलाश है

मेरे साथ तेरा प्यार है ,तो जिंदगी में बहार है
मेरी जिंदगी तेरे दम से है ,इस बात का एहसाश है

तेरे इश्क का है ये असर ,मुझे सुबह शाम की ना  ख़बर
मेरे दिल में तू रहती सदा , तू ना दूर है और ना पास है

ये तो हर किसी का ख्याल   है ,तेरे रूप की न मिसाल है
कैसें कहूँ  तेरी अहमियत, मेरी जिंदगी में खास है

तेरी झुल्फ जब लहरा गयी , काली घटायें छा गयी
हर पल तुम्हें देखा करू ,आँखों में फिर भी प्यास है

 


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 


Thursday, July 18, 2013

परमाणु पुष्प में पूर्ब प्रकाशित मेरी कबिता और ग़ज़ल

कवर पेज
रचनाएँ


परमाणु पुष्प में पूर्ब प्रकाशित मेरी कबिता और ग़ज़ल:
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अपने अनुभबों,एहसासों ,बिचारों को
यथार्थ रूप में
अभिब्यक्त करने के लिए
जब जब मैनें लेखनी का कागज से स्पर्श किया
उस समय  मुझे एक बिचित्र प्रकार के
समर से आमुख होने का अबसर मिला
लेखनी अपनी परम्परा प्रतिष्टा मर्यादा  के लिए प्रतिबद्ध थी
जबकि मैं यथार्थ चित्रण के लिए बाध्य था 
इन दोनों के बीच कागज मूक दर्शक सा था 
ठीक उसी तरह जैसे 
आजाद भारत की इस जमीन पर 
रहनुमाओं तथा अन्तराष्ट्रीय बित्तीय संस्थाओं के बीच हुए 
जायज और दोष पूर्ण अनुबंध    को 
अबाम   को मानना अनिबार्य सा है 
जब जब लेखनी के साथ समझौता किया 
हकीकत के साथ साथ  कल्पित बिचारों को न्योता दिया 
सत्य से अलग हटकर लिखना चाहा
उसे पढने बालों ने खूब सराहा 
ठीक उसी तरह जैसे 
बेतन ब्रद्धि   के बिधेयक को पारित करबाने में
बिरोधी पछ   के साथ साथ  सत्ता पछ  के राजनीतिज्ञों 
का बराबर का योगदान रहता है 
आज मेरी प्रत्येक रचना 
बास्तबिकता  से कोसों दूर
कल्पिन्कता का राग अलापती हुयी 
आधारहीन तथ्यों पर आधारित 
कृतिमता के आबरण में लिपटी हुयी
निरर्थक बिचारों से परिपूरण है 
फिर भी मुझको आशा रहती है कि
पढने बालों को ये 
रुचिकर सरस ज्ञानर्धक लगेगी 
ठीक उसी तरह जैसे
हमारे रहनुमा बिना किसी सार्थक प्रयास के
जटिलतम समस्याओं का समाधान 
प्राप्त होने कि आशा 
आये दिन करते रहतें हैं
अब प्रत्येक रचना को
लिखने के बाद 
जब जब पढने  का अबसर मिलता है 
तो लगता है कि 
ये लिखा मेरा नहीं है 
मुझे जान पड़ता है कि
 मेरे खिलाफ
ये सब कागज और लेखनी कि
सुनियोजित साजिश का हिस्सा है
इस लेखांश में मेरा तो नगण्य हिस्सा है
मेरे  हर पल कि बिबश्ता का किस्सा है
ठीक उसी तरह जैसे
भेद भाब पूर्ण किये गए फैसलों
दोषपूर्ण नीतियों के  नतीजें आने  पर
उसका श्रेय 
कुशल राजनेता 
पूर्ब बर्ती सरकारों को दे कर के
अपने कर्तब्यों कि इतिश्री कर लेते हैं


 प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना
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नरक की अंतिम जमीं तक गिर चुके है आज जो
नापने को कह रहे , हमसे बह दूरियां  आकाश की ..

इस कदर भटकें हैं युबा आज की इस दौर में
खोजने से मिलती नहीं अब गोलियां सल्फ़ास की

आज हम महफूज है क्यों दुश्मनों के बीच में
दोस्ती आती नहीं है रास अब बहुत ज्यादा पास की

बँट  गयी सारी जमी ,फिर बँट  गया ये आसमान
क्यों आज फिर हम बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की

हर जगह महफ़िल सजी पर दर्द भी मिल जायेगा
हर कोई कहने लगा अब आरजू बनवास की

मौत के साये में जीती चार पल की जिंदगी
क्या मदन ये सारी दुनिया, है बिरोधाभास की

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 


मदन मोहन सक्सेना .

Monday, July 15, 2013

साला मैं तो साहब बन गया

अणु भारती में पूर्ब  प्रकाशित मेरा ब्यंग्य :







साला मैं तो साहब बन गया :

मदन मोहन सक्सेना .

Wednesday, July 10, 2013

स्वार्थ



















स्वार्थ



प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है प्यार से

दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल से

बँट  गयी सारी जमी फिर बँट गया ये आसमान
अब खुदा बँटने  लगा है इस तरह की तूल से

सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल से

आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

चार पल की जिंदगी में चंद  सासों  का सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

Thursday, June 27, 2013

त्रासदी

















त्रासदी



धर्म निर्पेक्षता का नारा बुलंद करने बाले
आम आदमी का नाम लेने बाले
किसान पुत्र नेता
दलित की बेटी 
सदी के महा नायक 
क्रिकेट के भगबान
सत्यमेब जयते की घोष करने बाले
घूम घूम कर चैरिटी करने बाले सेलुलर सितारें 
अरबों खरबों का ब्यापार करने बाले घराने 
त्रासदी के इस समय में 
पीड़ित लोगों को नजर
क्यों नहीं आ रहे .


मदन मोहन सक्सेना

Thursday, June 20, 2013

कुदरत का कहर

पहले का मंदिर का चित्र




फिर एक बार कुदरत का कहर 
फिर एक बार मीडिया में शोर 
फिर एक बार नेताओं का हवाई दौरा 
फिर एक बार दानबीरों की कर्मठता 
 फिर एक बार प्रशाशन का  कुम्भकर्णी नींद से जागना
फिर एक बार 
मन में कौंधता
अनुत्तरित प्रश्न 
आखिर ये कब तक 
हम चेतेंगें भी या नहीं 
आखिर 
जल जंगल जमीन की अहमियत कब जानेगें?




अभी का मंदिर का चित्र


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, June 12, 2013

जरुरत


 














हुयी है आज बारिश और  तन मन को भिगोती है
सर्दी हो या गर्मी हो किस्मत आज रोती  है
किस्मत बनाने बाले .क्या नहीं तेरे खजाने में
देता क्यों उनको है ,जरुरत जिनको नहीं होती है 



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

Friday, June 7, 2013

बिनती


 

















सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्
शान्तिः शान्तिः शान्तिः

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उत्थान पतन मेरे भगवन है आज तुम्हारे हाथों में
प्रभु जीत तुम्हारें हाथों में प्रभु हर तुम्हारें हाथों में

मुझमें तुममें है फर्क यही में नर हूँ तुम नारायण हो
मैं खेलूँ जग के हाथों में संसार तुम्हारें हाथों में

तुम दीनबंधु दुखहर्ता हो तुम जग के पालन करता हो
इस मुर्ख खल और कामी का उद्धार तुम्हारे हाथों में

मेरे तन मन के तुम स्वामी हो भगवन तुम अंतर्यामी हो
मेरे जीवन की इस नौका का प्रभु भर तुम्हारे हाथों में

तुम भक्तों के रखबाले हो दुःख दर्द मिटने बाले हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में



मदन मोहन सक्सेना

Monday, May 20, 2013

मेरी पोस्ट कोशिश जागरण जंक्शन पर




















मेरी पोस्ट कोशिश जागरण जंक्शन पर



प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत प्रसन्न्ता हो रही है की मेरी पोस्ट कोशिश जागरण जंक्शन पर छपी है.
पोस्ट पर आप की प्रतिक्रिया अबश्य दें .

http://madansbarc.jagranjunction.com/?p=441


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Thanks!
JagranJunction Team