Tuesday, January 22, 2013
Thursday, January 17, 2013
बोल
उसे हम बोल क्या बोलें जो दिल को दर्द दे जाये
सुकूं दे चैन दे दिल को , उसी को बोल बोलेंगें ..
जीवन के सफ़र में जो मुसीबत में भी अपना हो
राज ए दिल मोहब्बत के, उसी से यार खोलेंगें ..
जब अपनों से और गैरों से मिलते हाथ सबसे हों
किया जिसने भी जैसा है , उसी से यार तोलेंगें ..
अपना क्या, हम तो बस, पानी की ही माफिक हैं
मिलेगा प्यार से हमसे ,उसी के यार होलेंगें ..
जितना हो जरुरी ऱब, मुझे उतनी रोशनी देना
अँधेरे में भी डोलेंगें उजालें में भी डोलेंगें ..
मदन मोहन सक्सेना
Wednesday, January 9, 2013
झमेले
ख्बाबों में तो अरमानों के जाने कितने मेले हैं
भुला पायेंगें कैसे हम ,जिनके प्यार के खातिर
सूरज चाँद की माफिक हम दुनिया में अकेले हैं
महकता है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही
मुहब्बत को निभाने में फिर क्यों सारे झमेले हैं
ये उसकी बदनसीबी गर ,नहीं तो और फिर क्या है
जिसने पाया है बहुत थोड़ा ज्यादा गम ही झेले हैं
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
Thursday, January 3, 2013
सच्चा प्यार
बोलेंगे जो भी हमसे बो ,हम ऐतवार कर लेगें
जो कुछ भी उनको प्यारा है ,हम उनसे प्यार कर लेगें
बो मेरे पास आयेंगे ये सुनकर के ही सपनो में
क़यामत से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें
मेरे जो भी सपने है और सपनों में जो सूरत है
उसे दिल में हम सज़ा करके नजरें चार कर लेगें
जीवन भर की सब खुशियाँ ,उनके बिन अधूरी है
अर्पण आज उनको हम जीबन हजार कर देगें
हमको प्यार है उनसे और करते प्यार बो हमको
गर अपना प्यार सच्चा है तो मंजिल पर कर लेगें
मदन मोहन सक्सेना
Wednesday, January 2, 2013
ग़ज़ल
सजा क्या खूब मिलती है , किसी से दिल लगाने की
तन्हाई की महफ़िल में आदत हो गयी गाने की
हर पल याद रहती है , निगाहों में बसी सूरत
तमन्ना अपनी रहती है खुद को भूल जाने की
उम्मीदों का काजल जब से आँखों में लगाया है
कोशिश पूरी रहती है , पत्थर से प्यार पाने की
अरमानो के मेले में जब ख्बाबो के महल टूटे
बारी तब फिर आती है , अपनों को आजमाने की
मर्जे इश्क में अक्सर हुआ करता है ऐसा भी
जीने पर हुआ करती है ख्बहिश मौत पाने की
ग़ज़ल
मदन मोहन सक्सेना
Tuesday, December 25, 2012
नब बर्ष 2013
नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..
मुझको जो भी मिलना हो ,बह तुमको ही मिले दौलत
तमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरत
सदा मिलती रहे शोहरत और रोशन नाम तेरा हो
ग़मों का न तो साया हो निशा में ना अँधेरा हो
नब बर्ष आज आया है , जलाओ प्रेम के दीपक
गर जलाएं प्रेम के दीपक तो अँधेरा दूर हो जाए
गर रहें हम प्यार से यारों और जीएं और जीने दें
अहम् का टकराब पल में ही यारों चूर हो जाए
मनाएं हम सलीखें से तो रोशन ये चमन होगा
सारी दुनियां से प्यारा और न्यारा ये बतन होगा
धरा अपनी ,गगन अपना, जो बासी बो भी अपने हैं
हकीकत में बे बदलेंगें ,दिलों में जो भी सपने हैं
नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
काब्य प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
Monday, December 17, 2012
सत्ता की जुगलबंदी
कैसी सोच अपनी है किधर हम जा रहें यारों
गर कोई देखना चाहें बतन मेरे बो आ जाये
तिजोरी में भरा धन है मुरझाया सा बचपन है
ग़रीबी भुखमरी में क्यों जीबन बीतता जाये
ना करने का ही ज़ज्बा है ना बातों में ही दम दीखता
हर एक दल में सत्ता की जुगलबंदी नजर आयें .
कभी बाटाँ धर्म ने है कभी जाति में खो जाते
क्यों हमारें रह्नुमाओं का, असर सब पर नजर आये
ना खाने को ना पीने को ,ना दो पल चैन जीने को
ये जैसा तंत्र है यारों , जल्दी से गुजर जाये
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
Thursday, December 13, 2012
मेरे मालिक मेरे मौला
मेरे मालिक मेरे मौला ये क्या दुनिया बनाई है
किसी के पास सब कुछ है मगर बह खा नहीं पाये
तेरी दुनियां में कुछ बंदें, करते काम क्यों गंदें
कि किसी के पास कुछ भी ना, भूखे पेट सो जाये
जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है
तेरी बातोँ को तू जाने, समझ अपनी ना कुछ आये
ना रिश्तों की महक दिखती ना बातोँ में ही दम दीखता
क्यों मायूसी ही मायूसी जिधर देखो नज़र आये
तुझे पाने की कोशिश में कहाँ कहाँ मैं नहीं घूमा
जब रोता बच्चा मुस्कराता है तू ही तू नजर आये
गुजारिश अपनी सबसे है कि जीयो और जीने दो
ये जीवन कुछ पलों का है पता कब मौत आ जाये
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
Tuesday, December 11, 2012
ये खेल जिंदगी
किसी के खो गए अपने किसी ने पा लिए सपनें
क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी।
दिल के पास हैं लेकिन निगाहों से बह ओझल हैं
क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी।
उम्र बीती और ढोया है सांसों के जनाजे को
जीवन सफर में हँसने रोने का खेल जिंदगी।
जिनके साथ रहना हैं नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।
किसी को मिल गयी दौलत कोई तो पा गया शोहरत
मदन कहता कि काटने और बोने का ये खेल जिंदगी।
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
Monday, December 10, 2012
प्यार से प्यार
प्यार से प्यार करना गुनाह है अगर
तो जुर्म ऐ मुहब्बत को बार बार हमने किया
इबादत का हक़ है मुयस्सर सभी को
फिर इबादत का हक़ हमने लिया
अपने खुदा के इक दर्श पाने की खातिर
हर पल कयामत का इंतजार हमने किया
बसा के सूरत अपने दिल में खुदा की
हमने दिल से ना पार उनको जाने दिया
मेरे अपने खुदा को जो भी प्यारा लगे
उन सबसे बेशुमार प्यार हमने किया
देख दीवानापन और चाहत को मेरी
बोले अदाओं ने बेकरार हमको किया
प्यार की रोशनी से है रोशन जहाँ
सो कहता मदन दिल हार हमने दिया.
काब्य प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
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