Tuesday, December 11, 2012

ये खेल जिंदगी






किसी के खो गए अपने किसी ने पा लिए सपनें
क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी।


दिल के पास हैं लेकिन निगाहों से बह ओझल हैं
क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी।


उम्र बीती और ढोया है सांसों के जनाजे को
जीवन सफर में हँसने रोने का खेल जिंदगी।


जिनके साथ रहना हैं नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।


किसी को मिल गयी दौलत कोई तो पा गया शोहरत
मदन कहता कि काटने और बोने का ये खेल जिंदगी।



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

Monday, December 10, 2012

प्यार से प्यार






प्यार  से प्यार करना गुनाह है अगर 
तो जुर्म ऐ मुहब्बत को बार बार हमने किया 
इबादत का हक़ है मुयस्सर सभी को
फिर  इबादत का हक़ हमने लिया

अपने खुदा के इक दर्श पाने की खातिर
हर पल कयामत का इंतजार हमने किया
बसा के सूरत अपने दिल में खुदा की 
हमने दिल से ना पार  उनको जाने दिया

मेरे अपने खुदा को जो भी प्यारा लगे
उन सबसे बेशुमार प्यार हमने किया
देख दीवानापन और चाहत को मेरी
बोले  अदाओं ने बेकरार हमको किया

प्यार की रोशनी से है रोशन जहाँ
सो कहता मदन दिल हार हमने दिया.

काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, December 4, 2012

पैसों की दुनिया







ये पैसों की दुनिया ये काँटों की दुनिया
यारों ये दुनिया जालिम बहुत है
अरमानो की माला मैनें जब भी पिरोई
हमको ये दुनिया तो माला पिरोने नहीं देती..

ये गैरों की दुनियां ये काँटों की दुनिया
दौलत के भूखों और प्यासों की दुनिया
सपनो के महल मैंने जब भी संजोये 
हमको ये दुनिया तो सपने संजोने नहीं देती..

जब देखा उन्हें और उनसे नजरें मिली 
अपने दिल ने ये माना की हमको दुनिया मिली
प्यार पाकर के जब प्यारी दुनिया बसाई
हमको ये दुनिया तो उसमें भी सोने नहीं देती..

ये काँटों की दुनिया -ये खारों की दुनिया
ये बेबस अकेले लाचारों की दुनिया
दूर रहकर उनसे जब मैं रोना भी चाहूं
हमको ये दुनिया अकेले भी रोने नहीं देती..


ये दुनिया तो हमको तमाशा ही लगती
हाथ अपने   हमेशा निराशा ही लगती
देख दुनिया को जब हमने खुद को बदला 
हमको ये दुनिया तो बैसा भी होने नहीं देती... 

काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

माँ दुर्गा के नौ स्वरूप


तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने  बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में


नब रात्रि में भक्त लोग माँ दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा अर्चना करके माँ का आश्रिबाद  प्राप्त करतें है।


पहले दिन मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है।
वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्।।

मां दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। माता शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में सती के नाम से प्रजापति दक्ष के यहां उत्पन्न हुई थीं और भगवान शंकर से उनका विवाह हुआ था।

मां शैलपुत्री वृषभ पर सवार हैं। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं। पार्वती एवं हैमवती भी इन्हीं के नाम है। मां शैलपुत्री दुर्गा का महत्व एवं शक्तियां अनंत हैं। नवरात्र पर्व पर प्रथम दिवस इनका पूजन होता है। इस दिन साधक अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करके साधना प्रारम्भ करते हैं। इससे मन निश्छल होता है और काम-क्रोध आदि शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।










मां दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है.
दधानां करपद्माभ्यामक्ष मालाकमण्डलू.
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा..
यहां ब्रह्मशब्द का अर्थ तपस्या है. ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी-तप का आचरण करने वाली. कहा भी है-वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म-वेद, तत्व और तप ब्रह्मशब्द के अर्थ हैं. ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है. इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डल रहता है.
अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री-रूप में उत्पन्न हुई थीं तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यन्त कठिन तपस्या की थी. इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया.
मां दुर्गा जी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फल देने वाला है. इसकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है. दुर्गापूजन के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है. इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठानचक्र में स्थित होता है. इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है.









मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चन्द्रघण्टाहै.
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैयरुता.
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता..
मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चन्द्रघण्टाहै. नवरात्र उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है. इनका यह स्वरूप परम शान्तिदायक और कल्याणकारी है. इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है, इसी कारण से इन्हें चन्द्रघण्टा देवी कहा जाता है.
इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है. इनके दस हाथ हैं. इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं. इनका वाहन सिंह है.
नवरात्र की दुर्गा उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है. इस दिन साधक का मन मणिपूरचक्र में प्रविष्ट होता है. मां चन्द्रघण्टा की कृपा से उसे अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं. मां चन्द्रघण्टा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएं विनष्ट हो जाती हैं. इनकी आराधना सद्य: फलदायी हैं. 
हमें निरन्तर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखते हुए साधना की ओर अग्रसर होने का प्रयत्न करना चाहिए. उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिए परमकल्याणकारी और सद्गति को देने वाला है.





मां दुर्गाजी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है।
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।

अपनी मन्द , हलकी हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रहृाण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है।

जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अन्धकार-ही-अन्धकार परिव्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने 'ईषत्' हास्य से ब्रहृाण्ड की रचना की थी। अत: यही सृष्टि-आदि की स्वरूपा, आदि शक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमण्डल के भीतर के लोक में है। इनकी आठ भुजाएं हैं। अत: ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।

नवरात्र पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में अवस्थित होता है। अत: इस दिन उसे अत्यन्त पवित्र और अचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।



मां दुर्गाजी के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है।
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
ये भगवान् स्कन्द 'कुमार कात्र्तिकेय' की माता  है। इन्हीं भगवान् स्कन्द की माता होने के कारण मां दुर्गा जी के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना नवरात्र-पूजा के पांचवें दिन की जाती है। इस दिन  साधक का मन 'विशुद्ध' चक्र में अवस्थित होता है।
स्कन्दमातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान् स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं और दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी हुई है उसमें कमल-पुष्प है। बायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा वर मुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल-पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णत: शुभ्र है।
ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण से इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है। मां स्कन्दमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शान्ति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वयमेव सुलभ हो जाता है

मां दुर्गा के छठवें स्वरूप का नाम कात्यायनी है।
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवद्यातिनी।।
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

प्रसिद्ध महर्षि कत के पुत्र ऋषि कात्य के गोत्र में महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। उन्होंने भगवती पराम्बा की घोर उपासना की और उनसे अपने घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने का आग्रह किया। कहते हैं, महिषासुर का उत्पात बने पर ब्रहृा, विष्णु, महेश तीनों के तेज के अंश से देवी कात्यायनी महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थीं।

मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। ये ब्रजमण्डल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएं हैं। इनका दाहिना ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है तथा नीचे वाला वर मुद्रा में है। बायें ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं।

इनका वाहन सिंह है। इनकी पूजा के लिए साधक को मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित करना चाहिए।



नवरात्र के सातवें दिन आदिशक्ति मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की उपासना की जाती है.  
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।
मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं. इसी कारण इनका एक नाम 'शुभंकरी' भी है.दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की आराधना का विधान है. इस दिन साधक का मन 'सहस्रर' चक्र में स्थित रहता है. उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है.मां कालरात्रि के शरीर का रंग घने अंधकार के समान पूरी तरह काला है. सिर के बाल बिखरे हुए और गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है.
मां के तीनों नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं. इनसे बिजली के समान चमकीली किरणें निकलती रहती हैं. नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं. इनका वाहन गर्दभ है.चार भुजाओं वाली मां के ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ से सभी को वर प्रदान करती हैं. दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है. बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है.मां कालरात्रि की पूजा करने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में सातवें दिन इसका जाप करना चाहिए.






मां दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। इनका वर्ण पूर्णत: गौर है।
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा।।
इस गौरता की उपमा शंख, चन्द्र और कुन्द के फूल से दी गयी है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गयी है। 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी'। इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। इनकी चार भुजाएं है। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय-मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बायें हाथ में डमरू और नीचे के बायें हाथ में वर-मुद्रा है। इनकी मुद्रा अत्यन्त शान्त है।
दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्य: फलदायिनी है। मां महागौरी का ध्यान स्मरण, पूजन-आराधन भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए।









मां दुर्गाजी की नवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है।
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। मार्कण्डेयपुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व-ये आठ सिद्धियां होती हैं।
मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आासीन होती है। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है। नवरात्र-पूजन के नवें दिन इनकी उपासना की जाती है।

नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अन्तिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा-उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा-पूजा के नवें दिन इनकी उपासना में प्रवृत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री मां की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।


Sunday, November 25, 2012

वक़्त





वक़्त की साजिश समझ कर, सब्र करना सीखियें
दर्द से ग़मगीन वक़्त यू ही गुजर जाता है

जीने का नजरिया तो, मालूम है उसी को बस
अपना गम भुलाकर जो हमेशा मुस्कराता है

अरमानो के सागर में ,छिपे चाहत के मोती को
बेगानों की दुनिया में ,कोई अकेला जान पाता है

शरीफों की शरारत का नजारा हमने देखा है
मिलाता जिनसे नजरें है ,उसी का दिल चुराता है

न जाने कितनी यादो के तोहफे हमको दे डाले
खुदा जैसा ही बो होगा ,जो दे के भूल जाता है

मर्ज ऐ इश्क में बाज़ी लगती हाथ उसके है
दलीलों की कसौटी के ,जो जितने पार जाता है

मदन मोहन सक्सेना

Monday, November 19, 2012

बस्ती




खुशबुओं  की   बस्ती में  रहता  प्यार  मेरा  है 
आज प्यारे प्यारे सपनो ने आकर के मुझको घेरा है 
उनकी सूरत का आँखों में हर पल हुआ यूँ बसेरा है
अब काली काली रातो में मुझको दीखता नहीं अँधेरा है  

जब जब देखा हमने दिल को ,ये लगता नहीं मेरा है 
प्यार पाया जब से उनका हमने ,लगता हर पल ही सुनहरा है 
प्यार तो है  सबसे परे ,ना उसका कोई चेहरा है
रहमते उदा की जिस पर सर उसके बंधे सेहरा है

प्यार ने तो जीबन में ,हर पल खुशियों को बिखेरा है
ना जाने ये मदन ,फिर क्यों लगे प्यार पे  पहरा है


काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

Sunday, November 18, 2012

अपना दिल



अपना दिल जब ये पूछें की दिलकश क्यों नज़ारे हैं
परायी  लगती दुनिया में बह लगते क्यों हमारे हैं
ना उनसे तुम अलग रहना ,मैं कहता अपने दिल से हूँ
हम उनके बिन अधूरें है ,बह जीने के सहारे हैं


जीबन भर की सब खुशियाँ, उनके बिन अधूरी है
पाकर प्यार उनका हम ,उनसे सब कुछ हारे हैं 
ना उनसे दूर हम जाएँ ,इनायत मेरे रब करना
आँखों के बह तारे है ,बह लगते हमको प्यारे हैं

पाते जब कभी उनको , तो  आ जाती बहारे हैं 
मैं कहता अपने दिल से हूँ ,सो दिलकश यूँ नज़ारे हैं



काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

Sunday, November 11, 2012

दीवाली और दौलत



















बह हमसे बोले हसंकर कि आज है दीवाली
उदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं ताली

मैं कैसें उनसे बोलूं कि जेब मेरी ख़ाली
जब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ ताली

बो बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुम
देखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुम

इन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते हम
जिसके ना पास दौलत उससे न बोलते हम

मैंने जो देखा उनको खड़ें बो मुस्करा रहे थे
दीवाली के दिन तो बो दौलत लुटा रहे थे

मैनें कहा ,सच्चाई मेरी पूजा इंसानियत से नाता
तुम जो कुछ भी कह रहे हो ,नहीं है मुझको भाता

बो बोले हमसे हसकर ,कहता हूँ बो तुम सुन लो
दुनियां में मिलता सबकुछ खुशियों से दामन भर लो

बातों में है क्या रक्खा मौके पे बात बदल लो
पैसों कि खातिर दुनियां में सब से तुम सौदा कर लो

बो बोले हमसे हंसकर ,हकीकत भी तो यही है
इंसानों क़ी है दुनिया पर इंसानियत नहीं है

Friday, November 9, 2012

दीपावली




मंगलमय हो आपको दीपो का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..

मुझको जो भी मिलना हो ,बह तुमको ही मिले दौलत
तमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरत
सदा मिलती रहे शोहरत  ,रोशन नाम तेरा हो
ग़मों का न तो साया हो, निशा में न अँधेरा हो

दिवाली आज आयी है, जलाओ प्रेम के दीपक
जलाओ प्रेम के दीपक  ,अँधेरा दूर करना है
दिलों में जो अँधेरा है ,उसे हम दूर कर देंगें
मिटा कर के अंधेरों को, दिलों में प्रेम भर देंगें

मनाएं हम तरीकें से तो रोशन ये चमन होगा
सारी दुनियां से प्यारा और न्यारा  ये बतन होगा
धरा अपनी ,गगन अपना, जो बासी  बो भी अपने हैं 
हकीकत में बे बदलेंगें ,दिलों में जो भी सपने हैं

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।



काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना


Thursday, November 1, 2012

करवाचौथ


करवाचौथ

कल करवाचौथ के दिन भारतबर्ष में सुहागिनें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए चाँद दिखने तक निर्जला उपबास रखती है . पति पत्नी का रिश्ता समस्त उतार चदाबों   के साथ इस धरती पर सबसे जरुरी और पवित्र रिश्ता है .आज के इस दौर में जब सब लोग एक दुसरे की जान लेने पर तुलें हुयें हों तो आजकल  पत्नी का उपवास रखना किसी अजूबे से कम नहीं हैं।  
मेरी  पत्नी (शिवानी सक्सेना )को समर्न्पित एक कबिता :


अर्पण आज तुमको हैं जीवन भर की सब खुशियाँ 

पल भर भी न तुम हमसे जीवन में जुदा होना
रहना तुम सदा मेरे दिल में दिल में ही खुदा बनकर 
ना हमसे दूर जाना तुम और ना हमसे खफा होना 

अपनी तो तमन्ना है सदा हर पल ही मुस्काओ 
सदा तुम पास हो मेरे ,ना हमसे दूर हो पाओ 
तुम्हारे साथ जीना है तुम्हारें साथ मरना है 
तुम्हारा साथ काफी हैं बाकि फिर  क्या करना है

अनोखा प्यार का बंधन इसे तुम तोड़ ना देना 
पराया जान हमको अकेला छोड़ ना देना 
रहकर दूर तुमसे हम जियें तो बो सजा होगी 
ना पायें गर तुम्हें दिल में तो ये मेरी सजा होगी  

कबिता :
मदन मोहन सक्सेना