Tuesday, July 26, 2011

अर्थ का अनर्थ















एक रोज  हम  यूँ ही बृन्दावन गये
भगबान कृष्ण हमें बहां मिल गये
भगवान बोले ,बेटा मदन क्या हाल है ?
हमने कहा दुआ है सब मालामाल हैं 

कुछ देर बाद  हमने एक सवाल कर दिया 
भगवान बोले तुमने तो बबाल कर दिया 
सवाल सुन करके बो कुछ  लगे सोचने
मालूम चला ,लगे कुछ बह खोजने


हमने उनसे  कहा ,ऐसा तुमने क्या किया ?
जिसकी बजह से इतना नाम कर लिया
कल तुमने जो किया था ,बह ही आज हम कर रहे
फिर क्यों लोग ,हममें तुममें भेद कर रहे 


भगवान बोले प्रेम ,कर्म का उपदेश दिया हमनें
युद्ध में भी अर्जुन को सन्देश दिया हमनें
जब कभी अपनों ने हमें दिल से है पुकारा
हर मदद की उनकी ,,दुष्टों को भी संहारा 


मैनें उनसे कहा ,सुनिए ,हम कैसे काम  करते है
करता काम कोई है हम अपना  नाम  करते हैं 
देखकर के दूसरों की माँ बहनों को ,हम अपना बनाने की सोचा करते
इसी दिशा में सदा कर्म किया है, कल क्या होगा ,ये ना सोचा करते 


माता पिता मित्र सखा आये कोई भी 
किसी भी तरह हम डराया करते 
साम दाम दण्डं भेद किसी भी तरह 
रूठने से उनको मनाया करते 


बात  जब फिर भी नहीं है बनती 
कर्म कुछ ज्यादा हम किया करतें 
सजा दुष्टों को हरदम मिलती रहे 
ये सोचकर कष्ट हम दिया करते 

मार काट लूट पाट हत्या राहजनी 
अपनें हैं जो ,मर्जी हो बो करें
कहना तो अपना सदा से ये है
पुलिस के दंडें से फिर क्यों डरे 

धोखे से जब कभी बे पकड़े गए
पल भर में ही उनको छुटाया करते
जब अपनें है बे फिर कष्ट क्यों हो
पल भर में ही कष्ट हम मिटाया करते

ये सुनकर के भगबान कहने लगे
क्या लोग दुनियां में इतना सहने लगे
बेटा तुने तो अर्थ का अनर्थ कर दिया
ऐसे कर्मों से जीवन अपना ब्यर्थ कर दिया 

तुमसे कह रहा हूँ मैं हे पापी मदन 
पाप अच्छे कर्मों से तुमको डिगाया करेंगें  
दुष्कर्मों के कारण हे पापी मदन 
हम तुम जैसों को फिर से मिटाया करेंगें 

  
   
 
प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना
      
     


Wednesday, June 29, 2011

नज्म




मेरे  हमनसी  मेरे दिलबर अपने प्यार का पता दे
तू दूर क्यों है हमसे इतना जरा पता दे 
तेरे प्यार के ही खातिर ,दुनियां बसायी मैनें
तेरे प्यार को ही पाकर महफ़िल सजाई मैनें

जितने भी गम थे मेरे उनको मैं भूलता था
मेरी दिलरुबा मेरे दिलबर तुमको ही पूजता था
मंजूर  क्या खुदा को ये जान मैं न पाता
जो जान से  है प्यारा बह दूर होता  जाता

मेरे दिल की बस्ती सुनी तू अब तो दिल में आ जा
तेरी चाहत में जीयें हम तू छोड़कर अब न  जा
सूरज से है तू सुन्दर चंदा से दिखती प्यारी
दुनियां में जितने दीखते उन सबमें तू है न्यारी

तुम से दूर रहकर दिलवर जीते जी मर रहे हैं
क्या खता है मेरी ये सोच डर रहे  हैं 
दुनियां है मेरी सूनी दिल में भी हैं अँधेरा 
जो कुछ भी कल था अपना बह अब रहा न मेरा

मेरे  हमनसी  मेरे दिलबर अपने प्यार का पता दे
तू दूर क्यों है हमसे इतना जरा पता दे 



काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना